एनके सोमानी (फ्रीलांसर)। लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर चीन की आक्रामकता तथा पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान की ओर से आ रही चुनौतियों के बीच जब वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने साल 2021-22 के लिए बजट पेश किया तो इस बात की उम्मीद की जा रही थी कि रक्षा क्षेत्र के लिए कुछ खास प्रावधान किए जाएंगे। कोरोना महामारी में अर्थव्यवस्था में आई गिरावट के बावजूद बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए 1.4 फीसदी का इजाफा पर्याप्त कहा जा सकता हैं। इससे सेना को आधुनिक बनाने की दिशा में किए जा रहे प्रयास तो सफल होंगे ही साथ ही नए हथियारों की खरीद को भी बल मिलेगा। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने भी बजट पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा है कि यह पिछले 15 सालों में सबसे ज्यादा कैपिटल आउटले है।
पिछले बजट के मुकाबले 7000 करोड़ रुपये अधिक है रक्षा बजट
बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए 4 लाख 78 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है, जो पिछले बजट के मुकाबले 7000 करोड़ रुपये अधिक है। पिछले वर्ष यह राशि 4 लाख 71 करोड़ रुपये थी। रक्षा क्षेत्र को जो राशि आंवटित की गई है, उसमें 3.38 लाख करोड़ रुपये खर्च के लिए रखे गए हैं। इस राशि में सैनिकों को दी जाने वाली पेंशन की राशि भी शामिल है और बचे हुए 1.40 लाख करोड़ रुपये विभिन्न योजनाओं पर खर्च किए जाएंगे। चीन एलएसी पर नजरें गड़ाए हुए है साथ ही वह हिंद महासागर और अरब सागर में भी अपनी गतिविधियां बढ़ा रहा है। दूसरी और पाकिस्तान ने भी भारत के विरूद्ध मोर्चा खोल रखा है। इन विषम परिस्थितियों का मुकाबला जिस ढंग से भारत ने किया उसकी प्रशंसा वैश्विक मंचों पर आज भी हो रही है। पिछले साल संसद की स्टैंडिंग कमेटी ने रक्षा क्षेत्र की जरूरतों को ध्यान में रखकर ठीक ढंग से बजट का आवंटन न किए जाने को लेकर सरकार की आलोचना की थी। इसलिए इस बार उम्मीद की जा रही थी कि बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए कुछ विशेष प्रावधान किए जा सकते हैं और वित्तमंत्री द्वारा प्रस्तुत बजट उम्मीदों पर खरा उतरा। रक्षा बजट के 4.78 लाख करोड़ में 1.35 लाख करोड़ कैपिटल बजट के लिए रखा गया है। जिसका इस्तेमाल नए हथियार, वायुयान, युद्धपोत और अन्य सैन्य उपकरण खरीदने और सेना के आधुनिकीकरण के दूसरे उपायों के लिए किया जाएगा। कैपिटल बजट में इस साल सबसे ज्यादा राशि (करीब 53 हजार करोड़) वायु सेना की मिली है। थल सेना को 36 हजार करोड़ और नौसेना को 37 हजार करोड़ का बजट आंवटन किया गया है। रक्षा बजट में रेवेन्यू-एक्सपेंडिचर के मद में 2।27 लाख करोड़ का प्रावधान किया गया है, जिसमें वेतन व्यय और रक्षा प्रतिष्ठानों का रख-रखाव शामिल है।
भारत केवल 71 अरब डॉलर खर्च करता है सेना पर
कुल मिलाकर कहें तो साल 2021-22 के बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए वृद्धि के जो प्रावधान किए गए हैं, वह हमारी कुल जीडीपी का 1.63 फीसदी है और अगर इसमें पेंशन की राशि जोड़ दी जाए तो यह जीडीपी का 2.15 फीसदी हो जाता है। अमेरिका अपनी जीडीपी का कुल चार फीसदी, जबकि चीन अपनी जीडीपी का तीन फीसदी रक्षा पर खर्च करता है। चीन और पाकिस्तान लगातार अपने रक्षा बजट को बढ़ा रहे हैं। ऐसे में 1.4 फीसदी की वृद्धि बहुत ज्यादा नहीं तो कम भी नहीं कही जा सकती हैं।हालांकि, रक्षा मंत्रालय को आपातकालीन खरीद के लिए आंवटन का प्रावधान है, जिसके जरिए वह बजट के अतिरिक्त भी धन खर्च कर सकता है। पिछले साल लद्दाख में संकट के बाद भारतीय सेना ने करीब 21 हजार करोड़ रुपये की रकम बजट से परे आपात रक्षा खर्च में यूज किया था। अमेरिका के बाद रक्षा पर सबसे ज्यादा खर्च करने वाले देश चीन ने 2020 के बजट में रक्षा क्षेत्र में 6।6 प्रतिशत का इजाफा कर 1270 अरब युआन (करीब 179 अरब डॉलर) का आंवटन किया था। यह भारत के रक्षा बजट से 3 गुना है। चीन रक्षा क्षेत्र में करीब 261 अरब डॉलर यानी 19 लाख करोड़ रुपये खर्च करता है, दूसरी ओर भारत केवल 71 अरब डॉलर यानि 5 लाख करोड़ रुपये सेना पर खर्च करता है।
पाक-चीन गठबंधन की चुनौती देखते हुए इस कदम का हो सम्मान
हालांकि, डेढ़ फीसदी से भी कम की वृद्घि के चलते फिलहाल रक्षा मंत्रालय को सेना के आधुनिकीकरण और युद्ध सामग्री पर खर्च के लिए अपने हाथ पीछे खींचने पड़ सकते हैं। थल सेना के लिए एम-777 हल्के तोप और के-9 सेल्फ प्रोपेल्ड गन जैसे आधारभूत हथियारों की खरीद की प्रक्रिया भी प्रभावित हो सकती है। इसी तरह नौ सेना के लिए साल 2027 तक अपने बेड़े में 200 जहाज शामिल किए जाने की योजना पर दोबारा विचार करना पड़ सकता है। डोकलाम विवाद के बाद जिस तरह से चीन भारत को अलग-अलग मोर्चों पर घेरने की कोशिशों में जूटा है, उसे देखते हुए अब भारतीय नेतृत्व ने भी दुनिया के दूसरे देशों की तरह सेना के आधुनिकीकरण और परंपरागत सशस्त्रों के बजाए भविष्य की टेक्नोलॉजी में निवेश करना शुरू कर दिया है, जिसका परिणाम अगले कुछ वर्षों में दिखाई देने लगेगा। नौसेना और वायु सेना को पिछले साल के बजट से इस बार क्रमश 10,854 करोड़ और 11,774 करोड़ रुपये ज्यादा आवंटित किए गए हैं। पाक-चीन गठबंधन की चुनौती को देखते हुए सरकार के इस कदम का सम्मान किया जाना चाहिए।