उनके अनुसार भारत के ख़िलाफ़ फ़र्ज़ी युद्ध में जिहादियों का इस्तेमाल कर रहा है पाकिस्तान और यह सब अमरीका से मिलने वाली मदद की बदौलत हो रहा है.
अपनी नई किताब 'मैगनिफ़िसेंट डिल्युज़न्स' के प्रकाशन पूर्व दौरे पर हक्क़ानी मुम्बई आए थे.
इस किताब में सन 1947 से अब तक अमरीका और पाकिस्तान के संबंधों का लेखाजोखा है.
बीबीसी से बातचीत में हक्क़ानी ने अपनी नई किताब के बारे में खुलकर बात की.
इस किताब में कई ऐसी बातों का ज़िक्र है, जो पाकिस्तान सरकार की नीतियों को उजागर करती है.
कूटनीतिज्ञ ज़िम्मेदार
हक्क़ानी के अनुसार, पाकिस्तान ने बंटवारे के बाद नहीं, उसके पहले से ही अमरीका से मदद लेने के प्रयास शुरू कर दिए थे.
वह कहते हैं कि पाकिस्तान ने भारत के ख़िलाफ़ अपनी सुरक्षा बढ़ाने के लिए अमरीका का इस्तेमाल किया.
ज़्यादातर पाकिस्तानी अमरीका से ख़ुश नहीं हैं.
साथ ही उनके मुताबिक़ अमरीका से मिले हथियार और पैसे को पाकिस्तान ने सांप्रदायिक चरमपंथियों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करने के बजाए भारत के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया.
यहाँ तक कि अमरीका की पाकिस्तान को परमाणु हथियार न बनाने या कम करने की तथा भारत के ख़िलाफ़ जिहादियों का इस्तेमाल न करने के लिए मनाने की कोशिशें भी नाकाम रहीं.
हक़्क़ानी कहते हैं, "पाकिस्तानी सियासतदानों ने अमरीकी सरकार को भरोसा दिलाया के वह और मध्य पूर्व एशिया के बाकी इस्लामिक मुल्क उनका हर तरह से साथ निभाएंगे और सोवियत रूस को पाकिस्तान और बाकी इस्लामिक मुल्कों पर आक्रमण करने से रोकने में फ़ौजी सहायता करेंगे."
अमरीका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत के अनुसार, "पाकिस्तानी सियासतदानों ने और फ़ौजी तानाशाहों ने हमेशा अमरीका का इस्तेमाल अपनी फ़ौजी ताक़त बढ़ाने के लिए किया. सबसे अहम बात यह है कि सन 1947 से अब तक अमरीका ने पाकिस्तान को 40 बिलियन डॉलर की मदद की है. लेकिन इतनी बड़ी राशि ख़र्च करने के बाद भी पाकिस्तानी अवाम आज बदतर हालात में जी रही है."
हक्क़ानी कहते हैं, "पाकिस्तान और अमरीका एक दूसरे को अपना दोस्त समझते हैं लेकिन आपसी संबंध को लेकर दोनों का नज़रिया एकदम अलग है. कई बार वादा करके भी पाकिस्तान ने अमरीका की किसी भी फ़ौजी मुहिम में साथ नहीं दिया. बल्कि अमरीकी सहायता का भारत के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया."
उनके अनुसार दोनों ही मुल्क इस तरह के संबंधों से ख़ुश नहीं है.
वह कहते हैं कि पाकिस्तान में बहुत बड़ी आबादी अमरीका के ख़िलाफ़ है और कई अमरीकी राष्ट्रपति पाकिस्तान को मदद करने के पक्षधर नहीं रहे. पाकिस्तान को मदद के औचित्य पर कई बार सवाल उठाए गए.
अमरीका का मानना है कि आतंक के ख़िलाफ़ जंग में पाकिस्तान विश्वसनीय सहयोगी नहीं रहा है
हक्क़ानी का कहना है, "लेकिन हर बार यह सवाल अमरीकी राष्ट्रपति के कार्यकाल के अंतिम दिनों में उठाए गए. अगर अमरीकी सियासतदानों ने पाकिस्तान को मदद करने के मसले पर आपस में चर्चा की होती तो आज हालात कुछ और होते."
उनके मुताबिक़ पाकिस्तान और अमरीका के संबंधों के लिए सियासतादानों से ज्यादा दोनों मुल्कों के कूटनीतिज्ञ ज़िम्मेदार हैं.
उन्होंने कहा, "अब समय आ गया है कि पाकिस्तान अपनी फ़ौजी ताक़त बढ़ाने के बजाए सामाजिक प्रगति पर ध्यान दे. किसी भी मुल्क के लिए सशक्त फ़ौज ज़रूरी होती है लेकिन फ़ौजी ताक़त और सामाजिक उन्नति में तालमेल होना बहुत ज़रूरी है."
तानाशाही का वक़्त ख़त्म
भारत और पाकिस्तान के बीच मौजूदा हालात के बारे में वह कहते हैं, "क़ायदे आज़म मोहम्मद अली जिन्ना का मानना था कि शुरुआती दौर में भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव होना स्वाभाविक है. लेकिन भविष्य में हमारा रिश्ता ऐसा हो जैसा अमरीका और कनाडा के बीच है."
"मैं हमेशा से इस बात का समर्थक रहा हूँ कि पाकिस्तान और भारत अपने रिश्ते सुधारने की कोशिश करें और जो भी विवादास्पद मुद्दे है, उन्हें फ़िलहाल अलग रखें. बंटवारा अब इतिहास बन चुका है बार-बार उसे उछालने और युद्ध करने से किसी को कुछ हासिल नहीं होगा."
जर्मनी और फ़्रांस का उदहारण देते हुए हक्क़ानी ने कहा कि दो विश्वयुद्ध होने के बावजूद आज जर्मनी और फ़्रांस के बीच मित्रता है और आपसी व्यापार बहुत उम्दा तरीक़े से चल रहा है.
हक्कानी का कहना है कि पाकिस्तान भारत के ख़िलाफ़ फ़र्ज़ी युद्ध में जिहादियों का इस्तेमाल कर रहा है
आसियान देशों में विएतनाम तथा फ़िलीपीन्स आर्थिक सहयोग का अच्छा उदहारण हैं. भारत तथा पाकिस्तानी सियासतदानों को इनसे सीख लेनी चाहिए.
भारत और पाकिस्तान के सौहार्दपूर्ण रिश्तों के लिए पाकिस्तान में लोकतंत्र का मज़बूत होना बहुत ज़रूरी है.
वह कहते हैं, "मैं जानता हूँ कि यह बहुत कठिन प्रक्रिया है लेकिन पाकिस्तान में इसकी शुरुआत हो चुकी है. राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी सरकार ने अपने पांच साल पूरे किए, और अब भी पाकिस्तान में लोकतान्त्रिक सरकार बनी है. यह लोकतंत्र की सदी है और फ़ौजी तानाशाही की कोशिशों को मान्यता नहीं मिलेगी."
"पाकिस्तान के फ़ौजी तानाशाहों ने अवाम के बीच भारत के लिए नफ़रत पैदा की है. इसके लिए उन्होंने पाठ्यक्रम भी बदलवा दिए. लेकिन अब यह रुकना चाहिए और पाकिस्तान सरकार को चाहिए कि नफ़रत फ़ैलाने के प्रयासों के ख़िलाफ़ कड़े क़दम उठाए."
हक्क़ानी ने पाकिस्तान में तालिबान और अल-क़ायदा को मिल रही सियासी शह पर टिप्पणी करते हुए हक्क़ानी ने कहा, "यह सरासर ग़लत है और इस नीति से पाकिस्तान का कोई फ़ायदा नहीं है, बल्कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय में बहुत ही ग़लत सन्देश जा रहा है. हमें एक बात समझनी चाहिए कि किसी भी देश का झंडा जलाने से अपने देश का झंडा ऊंचा नहीं हो जाता."
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