जब जीरो रन बनाये:
दायें हाथ के इस बल्लेबाज़ ने 1967 में कर्नाटक की तरफ से रणजी ट्राफी के अपने डेब्यू मैच में यादगार दोहरा शतक लगाया था। वहीं अपने टेस्ट पदार्पण मैच की पहली पारी में इन्होंने जीरो रन बनाये थे, लेकिन इसी टेस्ट की अगली पारी में 25 चौकों की मदद से 137 रन की शानदार पारी खेली थी।
भारत कभी नही हारा:
इनके बारे में कहा जाता है कि जब भी इन्होंने शतक लगाया भारत हमेशा जीता है। हालांकि इनका पहला टेस्ट तो ड्रा हो गया था, लेकिन इसके बाद उन्होंने एक नहीं 13 शतक लगाए। जिसमे भारत एक भी मैच नहीं हारा। 91 टेस्ट मैचों में इन्होंने 6080 रन बनाये हैं।
कप्तानी भी संभाली:
गुंडप्पा को मुश्किल विकेटों का बल्लेबाज भी माना जाता रहा है। इन्होंने भारत के लिए छोटी अवधि 1979-80 में दो टेस्ट मैचों में कप्तानी भी की है। जिसमें पहला टेस्ट ड्रा हो गया था और दूसरा मैच इंग्लैंड के खिलाफ गोल्डन जुबिली टेस्ट के तौर पर खेला गया था।
नए प्लेयर्स को मौका:
गुंडप्पा विश्वनाथ की खासियत रही है कि वे हमेशा साफ सुथरा खेल खेलने की कोशिश करते रहे हैं। इसके कई उदाहरण भी देखने को मिले हैं। इसके अलावा वह नए खिलाडियों को मौका देने की कोशिश में रहते थे। इसके लिए वह खुद –ब- खुद प्लेयिंग एकादश से बाहर हो जाते थे।
गावस्कर से दोस्ती:
70 के दौर में इनके और सुनील गावस्कर के फैन चर्चा करते थे कि कौन बेहतर बल्लेबाज है। जबकि सुनील और इनकी दोस्ती काफी गहरी रही है। विश्वनाथ ने सुनील की बहन कविता से शादी भी की। वहीं गावस्कर ने अपेन बेटे का अपने इस दोस्त के नाम पर रखा।
टॉप 100 में जगह:
इनकी यादगार पारियों में 1974-75 में वेस्टइंडीज के खिलाफ 97 रन की नाबाद पारी को याद किया जाता है। इसमें रोबर्ट सरीखे तूफानी गेंदबाज के सामने पूरी टीम 190 रन पर सिमट गयी थी। इन्होंने विजडन के टॉप 100 में जगह बनाई है।
सीके नायडू अवार्ड:
विश्वनाथ को 2009 का सीके नायडू लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया। सन्यास के बाद भी ये आईसीसी रेफरी, भारतीय टीम के राष्ट्रीय चयन समिति के अध्यक्ष, इंडियन क्रिकेट टीम के मैनेजर व राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी के कोच के रूप जुड़े रहे।
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