तमिल नेशनल अलांयस (टीएनए) ने 38 सदस्यों वाली काउंसिल के लिए शनिवार को हुए चुनावों में 30 सीटों पर जीत हासिल की है.
श्रीलंका की राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के गठबंधन को इस चुनाव में सात सीटों पर विजय मिली है.
श्रीलंका मुस्लिम कांग्रेस को एक सीट पर जीत हासिल हुई.
चार साल पहले तमिल विद्रोहियों की हार के बाद इस इलाक़े में पहली बार चुनाव हो रहे हैं.
दशकों पहले तमिल बाहुल्य वाले उत्तरी क्षेत्र में इस तरह की परिषद के गठन का वायदा किया गया था. श्रीलंका के केवल इसी क्षेत्र को कभी अपनी परिषद हासिल नहीं हुई.
इन नतीजों के बाद टीएनए इस तमिल बहुल इलाके में पहली कार्यकारी सरकार बनाएगी.
तमिल बाहुल्य उत्तरी क्षेत्र को दशकों पहले इस तरह की परिषद के गठन का वायदा किया गया था. श्रीलंका का यह एक मात्र क्षेत्र था, जिसके पास अपनी परिषद थी.
विद्रोही
जाफ़ना में मौजूद बीबीसी संवाददाता चार्ल्स हेवीलैंड के अनुसार इन चुनावों से पता चलता है कि इस इलाके की तमिल जनता शासन में ज़्यादा अधिकार चाहती है, लेकिन इसके लिए उन्हें श्रीलंका की केंद्रीय सरकार से काफी तोलमोल करनी होगी.
चुनाव प्रचार के दौरान इनमें सैन्य हस्तक्षेप के आरोप लगे लेकिन अधिकारियों ने इन आरोपों का पूरी तरह खंडन किया.
इस क्षेत्र के कई इलाकों में तमिल विद्रोहियों का वर्चस्व था. ये लड़ाके सिंहली प्रभाववाली सेना से स्वतंत्र तमिल राष्ट्र बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे.
दोनों पक्षों के बीच करीब 26 साल तक खूनी गृहयुद्ध चलता रहा था.
श्रीलंका की सेना ने विद्रोहियों को मई, 2009 में संघर्ष के आख़िरी चरण में निर्णायक रूप से पराजित कर दिया था.
इस संबंध में श्रीलंका सरकार पर युद्ध के नियमों की अनदेखी के आरोप लगे थे और मानव अधिकार संबंधी दस्तावेजों की कड़ी आलोचना हुई थी.
इन चुनावों को संयुक्त राष्ट्र सहित विश्व समुदाय ने तमिलों और बहुसंख्यक सिंहलियों के बीच समझौते के रूप में देख रहे हैं. श्रीलंका की सरकार और सेना में सिंहलियों का काफी अधिक प्रभाव है.
International News inextlive from World News Desk