एक तालिबान प्रवक्ता के अनुसार उसने आम लोगों से चुनाव में हिस्सा न लेने की अपील की है और अपने लड़ाकों को चुनाव बाधित करने के निर्देश दिए हैं.
समाचार एजेंसी एपी के अनुसार तालिबान प्रवक्ता ज़बिउल्लाह मुजाहिद का कहना है कि तालिबान पूरे देश में धार्मिक नेताओं को यह प्रचार करने के लिए कह रहे हैं कि राष्ट्रपति चुनाव 'एक अमरीकी षड्यंत्र' है.
मुजाहिद ने अपना बयान सोमवार को सभी मीडियाकर्मियों को ई-मेल के ज़रिए भेजा.
5 अप्रैल के राष्ट्रपति चुनाव में बाधा पहुँचाने के लिए तालिबान ने पहली बार औपचारिक धमकी दी है.
इस बयान में अफ़ग़ान नागरिकों से कहा गया है कि वे चुनाव का पूरी तरह से बहिष्कार करें और मतदान केंद्रों तक जाकर अपनी ज़िंदगी को ख़तरे में न डालें.
पहले हुई हिंसा
तालिबान की धमकी का चुनावों पर असर पड़ सकता है.
हालांकि तालिबान के बयान से यह साफ़ नहीं है कि वो किस तरह के हमले करेंगे.
2009 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान उन्होंने चुनाव से जुड़े अधिकारियों, उम्मीदवारों और उनके कार्यकर्ताओं और यहां तक कि मतदाताओं को निशाना बनाया था. कई जगह उन्होंने लोगों की उंगलियां काट दी थीं.
2009 में केवल चुनाव के दिन ही 31 आम शहरी और 26 सुरक्षाकर्मी मारे गए थे.
अगर इस बार भी हिंसा होती है, तो अफ़ग़ानिस्तान को आर्थिक सहायता देने वाले देशों के उस दावे को धक्का लगेगा, जिसमें वे कहते रहे हैं कि 2001 के बाद से अफ़ग़ानिस्तान में अंतरराष्ट्रीय दख़ल ने वहां के हालात बेहतर बनाने में सफलता हासिल की है.
अफ़ग़ानिस्तान में सैन्य ऑपरेशन और विकास के नाम पर अरबों रुपए ख़र्च किए जा चुके हैं, लेकिन अफ़ग़ानिस्तान अभी भी हिंसा और ग़रीबी का शिकार बना हुआ है.
सरकारी तंत्र बहुत कमज़ोर है और अर्थव्यवस्था विदेशी मदद पर निर्भर है.
नए राष्ट्रपति के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी कि नैटो सेना के जाने के बाद अफ़ग़ानिस्तान पुलिस और सुरक्षाबल तालिबान का मुक़ाबला कैसे करते हैं और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मदद कम होने के बाद देश का प्रशासन कैसे चलेगा.
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