स्वीडन में एक ऐसी मशीन का इस्तेमाल हो रहा है जो पसीने से भीगे कपड़ों से नमी लेकर उसे पीने के पानी में तब्दील कर देती है.
ये उपकरण कपड़े को घुमाकर और गर्म करके उसमें से पसीना निकाल देता है, फिर उससे निकले वाष्प को एक ख़ास पतली झिल्ली से गुज़ारा जाता है. उस झिल्ली से सिर्फ़ पानी के ही अणु गुज़र सकते हैं.
इसे बनाने वालों के मुताबिक़ सोमवार को इस मशीन के लॉन्च के बाद से गोथेनबर्ग में लगभग 1000 लोग दूसरों का पसीना पी चुके हैं.
उन्होंने कहा है कि उस मशीन से बनने वाला पानी स्थानीय नल के पानी से ज़्यादा साफ़ है.
ये उपकरण बच्चों के संयुक्त राष्ट्र के संगठन यूनिसेफ़ के एक अभियान के लिए बनाया गया है जिसमें ये बताने की कोशिश की जा रही है कि दुनिया के 78 करोड़ लोगों को पीने का साफ़ पानी तक नहीं मिल पा रहा है.
इंजीनियर आंद्रियास हैमर ने ये मशीन बनाई है.
कुल्ला भर पानी
उन्होंने बताया, "ये मशीन एक तकनीक का इस्तेमाल करती है जिसे मेम्ब्रेन डिस्टिलेश यानी झिल्ली के ज़रिए होने वाला आसवन कहा जाता है."
हैमर के मुताबिक़, "हम गोर्टेक्स जैसे एक पदार्थ का इस्तेमाल करते हैं जो सिर्फ़ भाप को आगे जाने देता है मगर विषाणुओं, विभिन्न सॉल्ट यानी लवण, कपड़े के रेशे और अन्य चीज़ों को बाहर ही रखता है."
उन्होंने बताया, "अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र पर भी कुछ ऐसी ही व्यवस्था है जहाँ अंतरिक्ष यात्रियों के मूत्र से जल बनाया जाता है मगर हमारी मशीन बनाने में सस्ती थी."
वह कहते हैं, "इससे कितना पानी बनता है ये इस बात पर निर्भर करता है कि उस व्यक्ति का पसीना कितना निकलता है. मगर एक व्यक्ति के पसीने से आम तौर पर 10 मिलीलीटर या एक कुल्ला भर पानी निकल आता है."
इस मशीन का सार्वजनिक प्रदर्शन करने वालों के मुताबिक़ मशीन से यूनिसेफ़ के बारे में जागरूकता तो बढ़ी है मगर असलियत में इसकी अपनी सीमाएँ हैं.
स्टॉकहोम स्थित विज्ञापन एजेंसी डेपोर्टिवो के मुख्य कार्यकारी मैटियास रोंगे कहते हैं, "हमें जितनी उम्मीद थी लोगों से उतना पसीना मिला नहीं. इसलिए हमने बगल में एक्सरसाइज़ करने वाली साइकिलें लगा रखी हैं और लोग पागलों की तरह उसे चलाकर पसीना निकाल रहे हैं."
वैसे रोंगे के मुताबिक़, "फिर भी जितने पसीने की ज़रूरत है उसके मुक़ाबले आपूर्ति काफ़ी कम है. साथ ही मशीन कभी भी बड़े पैमाने पर शायद न ही बने क्योंकि पानी साफ़ करने वाली गोलियों जैसे कुछ और सस्ते साधन लोगों के पास उपलब्ध हैं."
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