बदल सकते हैं राजनीतिक परिदृश्य
जम्मू-कश्मीर में सातवीं बार राज्यपाल शासन लागू होने के साथ पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के गठबंधन के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग चुका है। दोनों दलों द्वारा एक दूसरे पर नई शर्तें थोपे जाने की अटकलों के बीच कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी के कश्मीर दौरे ने पूरा राजनीतिक परिदृश्य बदलते हुए भाजपा को बैकफुट पर ला दिया है। स्थिति को भांपते हुए भाजपा केंद्रीय कमान ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को रविवार को दिवंगत नेता के रस्म-ए-चहार्रुम में शामिल होने के लिए कश्मीर भेजा। कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी की महबूबा मुफ्ती से लगभग 20 मिनट तक हुई बैठक के बाद नीतिन गडकरी ने भी डॉ. निर्मल सिंह संग करीब 35 मिनट तक पीडीपी अध्यक्ष के साथ मौजूदा हालात पर चर्चा की है।
शपथ ग्रहण में देर ने पैदा किया संशय
हालांकि, पीडीपी के वरिष्ठ नेता सांसद मुजफ्फर हुसैन बेग ने जरूर भाजपा को कुछ राहत देते हुए कहा कि गठबंधन की सभी शर्तें पहले ही तय हैं। छह साल के लिए मुख्यमंत्री पीडीपी का ही रहना है और मुझे पूरी उम्मीद है कि लोगों को एक बेहतर सरकार मिलेगी। लेकिन मुफ्ती मुहम्मद सईद को कश्मीर में इंदिरा गांधी का सबसे विश्वस्त का खिताब प्राप्त रहा है। ऐसे में सोनिया गांधी की महबूबा से मुलाकात राज्य में नए राजनीतिक समीकरणों का संकेत देती दिख रही है। भाजपा-पीडीपी के गठबंधन को लेकर सवाल न उठते, अगर महबूबा मुफ्ती अपने पिता के निधन के फौरन बाद शपथ लेती और भाजपा द्वारा उन्हें समर्थन पत्र फौरन जारी कर दिया जाता। ऐसे हालात में भाजपा के भीतर से ही रोटेशनल सीएम की शर्त के साथ कैबिनेट में अपने लिए और प्रतिनिधित्व की मांग रखे जाने से सियासी हचलचल और बढ़ गई है। इसके अलावा कई संगठनों ने पीडीपी पर भाजपा की हिदूवादी छवि का हवाला देते हुए उससे अलग होने का दबाव भी बनाया है।
पीडीपी ने भी रखीं शर्तें
संबंधित सूत्रों की मानें तो पीडीपी ने भी स्थिति को भांपते हुए भाजपा के समक्ष केंद्र से अधिक उदार सहायता, उप मुख्यमंत्री की भूमिका सीमित करने व सेना और अफास्पा वापसी जैसी शर्र्तें रख दी हैं। दोनों दलों के बीच बढ़ते तनाव को टालने के लिए भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव व उपाध्यक्ष अविनाश राय खन्ना भी महबूबा से मिले। इसी मुलाकात के बाद ही राज्यपाल ने दोनों दलों के नेताओं को पत्र लिखकर सरकार के गठन पर अपना पक्ष स्पष्ट करने को कहा था। सूत्रों ने बताया कि नई दिल्ली लौटने से पहले गुलाम नबी आजाद ने महबूबा से भेंट की थी और आज सोनिया गांधी व अंबिका सोनी के साथ वापस श्रीनगर लौट आए। वह पीडीपी के साथ जम्मू कश्मीर में पुनः सरकार बनाने की सभी संभावनाओं को तलाश रहे हैं।
फैसला पीडीपी के हाथ में
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि महबूबा भाजपा से नाता तोड़ेंगी ऐसा कहना मुश्किल होगा, क्योंकि वर्ष 2008 में इसी कार्ड पर उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की सरकार से समर्थन वापस लिया था। लेकिन जब चुनाव हुए तो पीडीपी को सत्ता गंवानी पड़ी थी। फिलहाल, वह चुप्पी साधे हुए हैं और चुप्पी टूटने पर ही सियासी अटकलों पर लगाम लगेगी। फिल्हाल राज्य विधानसभा में विभिन्न दलों की स्थिति कुछ इस तरह है। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के 28 विधायक जिनमें से एक सीट मुफ्ती मुहम्मद सईद के निधन से एक रिक्त हो चुकी है। इसके बाद भाजपा के 25, नेशनल कांफ्रेंस के 15, कांग्रेस के 12, पीपुल्स कांफ्रेंस के 2, माकपा के एक और अन्य के चार विधायक हैं।
जब फफक पड़ी महबूबा
जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे स्थित दारा शिकोह बाग में रविवार को उस समय सभी की आंखें भर आई, जब महबूबा मुफ्ती अपने पिता मुफ्ती मुहम्मद सईद के मजार पर फफक रो पड़ी। पूरा माहौल गमजदा हो गया। दिवंगत नेता के नाम पर हो रही नारेबाजी भी थम गई। रविवार को मुफ्ती मुहम्मद सईद का रस्म-ए-चहार्रुम था। एक लंबी बीमारी के बाद गुरुवार सुबह स्वर्ग सिधारे मुफ्ती को दारा शिकोह बाग में ही दफनाया गया है। दक्षिण कश्मीर के बीजबेहाड़ा स्थित दारा शिकोह बाग में दिवंगत मुख्यमंत्री मुफ्ती मुहम्मद सईद अपने बचपन के दिनों में खेला करते थे। उन्हें यह बाग बहुत प्रिय था और उन्होंने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत करते हुए इसी बाग में कई रैलियों में भी भाग लिया था।
फातेहा की नमाज मौलाना जिया उल हक ने पढ़ाई। दिवंगत नेता की पत्नी गुलशन नजीर के अलावा तीनों बेटियां महबूबा मुफ्ती, महमूदा सईद, डॉ. रुबैया सईद और पुत्र तस्सुद्दुक हुसैन समेत परिवार के सभी सदस्य तथा निकट व दूर के संबंधी, डॉ. निर्मल सिंह समेत पीडीपी, भाजपा व अन्य दलों के सभी प्रमुख नेता मौजूद थे। महबूबा अपने पिता की कब्र के सामने खड़े होकर जब दुआ मांग रही थी तो वह खुद को रोक नहीं पाई और फफक-फफक कर रोक पड़ी।
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