कहानी :
मौजी और ममता के सच हुए मुंगेरीलाल के हसीन सपनो की कहानी है सुई धागा मेड इन इंडिया।

समीक्षा :
शरद जी की दम लगा के हईशा अब भी जब भी कभी टीवी पे आ रही होती है तो मन प्रसन्न हो जाता है क्योंकि ये फिल्म मेरे जैसे मध्यवर्गीय इंसान के ज़िंदगी का आईना जैसे थी। इससे रिलेट करना बहुत आसान है। सुई धागा मेड इन इंडिया का फर्स्ट हाफ बिल्कुल वैसा ही है। एक छोटी और बेहद टाइरिंग नौकरी में फसा बेटा, ताने मारने वाला बाप, रेगुलर हिंदी फिल्मी माँ और सर पे घूंघट धरे बहु और उनकी जिंदगी का सफर। यहां तक तो फिल्म सही जा रही थी पर जैसे ही सेकंड हाफ शुरू होता है किरदार गिरगिट की तरह बदल जाते हैं। ऐसा लगता है कि सपने में मौजी को मोदी और रामदेव बाबा दर्शन देते हैं और मेक इन इंडिया का गुरुमंतर फूंक के जाते हैं और इसके बाद खुद शरत भी भूल जाते हैं कि ओवरनाइट कोई बिज़नेस टाइकून या फैशन ब्रांड नहीं बन जाता यहां से ही फिल्म बेहद फिल्मी हो जाती है और मैले कुचैले सस्ते कपड़ों के नीचे के जिम वाली बॉडी निकल कर दिखने लागती है फिर उसके बाद सब माया है। फिल्म आत्मसम्मान और स्वरोजगार के मेन ट्रैक से देशभक्ति की पटरी पे चल देती है, क्यों समझ में नहीं आता।

sui dhaga review: मुंगेरीलाल के हसीन सपनों सी कहानी है सुई धागा

अदाकारी:
वरुण भारी क्यूट हैं, सच में उनके एब्स और बाइसेप्स की कसम और इसी वजह से उनपे गरीबी और मुफलिसी सूट नही करती, वो एक्टिंग तो बहुत अच्छी करते हैं, सही समय पर सही एक्सप्रेशन भी देते हैं पर फिर भी इस रोल के लिए मिसकास्ट हैं। सेम यही समस्या अनुष्का के साथ भी है ऊपर से भगवान झूठ न बुलाये कई इंटेस सीन में तो अनुष्का के रो मीम ज़हन में आने लगते और पूरे सीन के फील का सत्यानाश हो जाता है। रघुवीर यादव और वरुण की माँ का रोल कर रही अदाकारा इस फिल्म की सबसे बिलिवेबल किरदार हैं।

 

वर्डिक्ट :
फिल्म जय संतोषी माँ की तरह शुरू होती है, आगे नया दौर और एन्ड तक आते आते फैशन बन जाती है, पर 'नॉट इन अ गुड़ वे'. फिल्म की ब्लोटेड लार्जर देन लाइफ सेकंड हाफ पे realism के पैबंद की सख्त जरूरत है, उसके लिए सच्चाई के सुई धागे की ज़रूरत है, किसी के पास हो तो सिल दो कोई।

रेटिंग : 2.5 STAR

Review by : Yohaann Bhaargava
Twitter : yohaannn

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