कानपुर (फीचर डेस्क)। असल में रिविर शूज के तहत एस्पाड्रिल्स (पट्टेदार फाइबर सोल वाले हल्के कैनवास के जूते) और हाई टॉप व लो टॉप कैनवास स्नीकर्स का प्रोडक्शन किया जाता है। अंकिता बताती हैं कि इन स्नीकर्स की खासियत ये होती है कि इनपर खूबसूरत पेंटिंग्स या डिजाइंस बनी होती हैं। इसकी यही खासियत इसे औरों से डिफरेंट बनाती है। सिर्फ यही नहीं, अंकिता आगे कहती हैं कि उनके पास रेडीमेड स्नीकर्स के लिए उनकी ऑफीशियल वेबसाइट पर 150 डिजाइंस मौजूद हैं, समय के साथ इन डिजाइंस को अपडेट भी किया जाता है। वहीं अगर कस्टमर शूज पर अपनी खुद की डिजाइन चाहें, तो इनके सेल्समैन उन तक पहुंचते हैं और उनकी जरूरतों को समझते हैं।

बचपन की एक घटना से मिला आइडिया

अंकिता बताती हैं कि स्कूल के दिनों में जब पहली बार उन्हें शूज मिले थे, तो वे व्हाइट कलर के पेंट किए हुए फेडेड शूज थे। वह शूज उन्हें उनकी बड़ी बहन ने दिए थे। उनकी फैमिली को उम्मीद थी कि अंकिता इन शूज को देखकर भड़क जाएंगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। एक बार अंकिता एक एक्स्ट्रा क्लास में उन शूज को पहने हुई थीं, तभी उनके टीचर की नजर उन शूज पर पड़ी। वह कहती हैं, कि टीचर ने उनके रंग-बिरंगे शूज देखे और उन्हें एनकरेज किया कि वह अपने खुद के डिजाइन किए हुए शूज ही पहनने की कोशिश करें। अंकिता बताती हैं, 'उन्होंने मुझे 500 रुपये दिए और कहा कि मैं पेंट करने के लिए और शूज खरीदूं।' उन्होंने ठीक वैसा ही किया और एक स्कूल इवेंट में उन्हें शोकेस किया। स्कूल के इस वाक्ये ने उन्हें सोचने की पावर दी कि फ्यूचर में अपने इस आइडिया को वो ग्रो करेंगी, इसीलिए स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने इंजीनियरिंग और एमबीए की पढ़ाई करने का ऑप्शन चुना।

ऐसे मिले चैलेंजेस

कोर्स पूरा करते-करते अंकिता की शादी हो गई और शादी के बाद उन्होंने अपने हसबैंड वीरेश के साथ मिलकर गुरुग्राम में खुद का स्टार्टअप फैशन टेक ब्रांड रिविर शूज के नाम से शुरू किया। कंपनी में अंकिता ने डिजाइन और वीरेश ने मैनेजमेंट का काम संभाला। उन्होंने अंकिता के डिजाइन वाले स्नीकर्स बनाने के लिए मैन्युफैक्चरर्स से कॉन्टेक्ट करना शुरू किया। शुरुआती दिनों में ही दोनों ने फील किया कि उनका मॉडल काम नहीं कर रहा था। कई सारी युनिट्स स्टॉक के तौर पर जमा हो रही थीं और बिकने की भी कोई गारंटी नहीं थी। काम नहीं हो रहा था, फिर भी उन्हें लेबर चार्ज देना पड़ रहा था। अंकिता कहती हैं, 'स्टॉकिंग से हमारे पास पैसे खत्म हो रहे थे, क्योंकि हमारा पैसा जूतों में फंस गया था, जो बिक नहीं रहे थे और अगर शूज को यूज नहीं किया जाता, तो वे तेजी से खराब हो जाते हैं।' हालांकि, मांग थी। अब सवाल था कि कैसे अंकिता उन एक्सपेक्टेड कस्टमर्स तक अपने डिजाइनर शूज को पहुंचा सकती थीं, वो भी उस तरीके से जिससे ज्यादा कमाई भी नहीं हो रही थी? एक ट्रायल के तौर पर उन्होंने एक मेड-टू-ऑर्डर अप्रोच को अपनाया और ऑर्डर पर शूज बनाने का उनका ये ट्रायल काम कर गया।

ऐसे बढ़ रही हैं बुलंदियों की ओर

अब कंपनी अपने डेली प्रोडक्शन में 25 से 30 परसेंट शूज ऑडर्स पर बनाती है। अंकिता कहती हैं कि उनके 50 परसेंट कस्टमर मुंबई और बेंगलुरु से हैं और उन्हें हैदराबाद और नॉर्थ ईस्ट इंडिया के कुछ शहरों से भी अच्छा ट्रैक्शन मिल रहा है। वे कहती हैं कि इन जगहों से लोग हमेशा बड़े ब्रांड्स के जूते नहीं खरीदते हैं। वे फैशन के साथ एक्सपेरिमेंट करना पसंद करते हैं और रिविर का ये एक्सपेरिमेंट उन्हें पसंद आ रहा है। इन शहरों के बाद अंकिता का अगला टारगेट इंडिया की साउथ और नॉर्थ सिटीज के साथ ही साथ यूएस की ब्रॉड मार्केट भी है।कस्टमर अगर अपने शूज पर खुद के पसंद की कोई डिजाइन चाहता है, तो हमारे सेल्समैन उन तक पहुंचकर उनकी जरूरतों को समझते हैं।

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