एक समृद्ध व्यापारी गुरु से बोला- 'गुरुदेव धनार्जन हेतु मैं अपना गांव पीछे जरूर छोड़ आया हूं, पर हर समय मुझे लगता है कि वहां पर ऐसा देवालय बनाया जाए, जिसमें देवपूजन के साथ-साथ भोजन की भी व्यवस्था हो। अच्छे संस्कारों से लोगों को सुसंस्कृत किया जाए।‘ सुनते ही गुरु प्रसन्नतापूर्वक बोले- 'केवल गांव में ही क्यों, तुम ऐसा मंदिर अपने इस नगर में भी बनवाओ।‘ व्यापारी ने दो मंदिर, एक अपने गांव और दूसरा नगर में, जहां वह अपने परिवार के साथ रहता था, बनवा दिए।
दोनों देवालय शीघ्र ही लोगों की श्रद्धा के केंद्र बन गए, लेकिन कुछ दिन ही बीते थे कि कि नगर के लोग गांव के मंदिर में जाने लगे, जबकि गांव पहुंचने का रास्ता कठिन था। व्यापारी के समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है। कुछ भारी मन से वह गुरु जी के पास गया और सारा वृत्तांत कह सुनाया। गुरु जी ने विचार किया और फिर उसे परामर्श दिया कि वह गांव के मंदिर के पुजारी को नगर के मंदिर में बुला ले। उसने नगर के पुजारी को गांव और गांव के पुजारी को नगर में सेवा पर नियुक्त कर दिया।
कुछ ही दिन बीते थे कि वह यह देखकर स्तब्ध रह गया कि अब गांव के लोग नगर के मंदिर की ओर रुख करने लगे हैं। व्यापारी ने यह बात गुरुजी को बताई। गुरु जी सारी बात समझ गए और बोले- 'गांव वाले पुजारी के अच्छा स्वभाव के कारण लोग उसी देवालय में जाना चाहते हैं, जहां वे होते हैं। उनका लोगों से नि:स्वार्थ प्रेम, मित्रता का व्यवहार लोगों को उनकी ओर आकर्षित करता है।‘
सफलता में व्यवहार का योगदान
फ्रेंड्स, हमें भी यह बात समझनी चाहिए कि हमारा व्यक्तित्व हमारे बाहरी रंग-रूप से नहीं, हमारे व्यवहार से निर्धारित होता है। बिल्कुल एक समान ज्ञान और वेश-भूषा वाले दो पुजारियों में लोग कष्ट सहकर भी उसी के पास गए जो अधिक संवेदनशील और व्यवहारी था। इसी तरह हम चाहे जिस कार्यक्षेत्र से जुड़े हों, हमारी सफलता में हमारे व्यवहार का बहुत बड़ा योगदान होता है, जो पूरी तरह हमारे हाथ में है।
काम की बात
1. हमारा व्यक्तित्व हमारे बाहरी रंग-रूप से नहीं, हमारे व्यवहार से निर्धारित होता है।
2. हमारे अच्छे व्यवहार के कारण लोग हमसे जुड़ना चाहेंगे, जिसका अंतत: हमें ही फायदा मिलेगा।
सही निर्णय के लिए कूल रहना है बेहद जरूरी, इस कहानी से ले सकते हैं सीख
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