दधिचि वेदशास्त्रों के ज्ञाता और स्वभाव से बड़े दयालु थे। परम ज्ञानी होने के बावजूद उन्हें अहंकार छू तक नहीं पाया था। एक बार वृत्तासुर ने देवलोक पर आक्रमण कर दिया। देवताओं ने देवलोक की रक्षा के लिए वृत्तासुर पर अपने दिव्य अस्त्रों का प्रयोग किया, लेकिन सभी व्यर्थ गए। अंत में देवराज इंद्र को अपने प्राण बचाकर भागना पड़ा।
देवराज की दयनीय स्थिति देखकर भगवान शिव ने कहा कि पृथ्वी पर एक महामानव हैं दधिचि। उन्होंने तप साधना से अपनी हड्डियों को अत्यंत कठोर बना लिया है। उनसे निवेदन किया जाए कि संसार के कल्याण के लिए अपनी हड्डियों का दान कर दें।
इंद्र ने शिव की आज्ञा के अनुसार दधिचि से हड्डियों का दान मांगा। महर्षि दधिचि ने संसार के हित में अपने प्राण त्याग दिए। देव शिल्पी विश्वकर्मा ने इनकी हड्डियों से देवराज के लिए वज्र नामक अस्त्र का निर्माण किया और दूसरे देवताओं के लिए भी अस्त्र-शस्त्र बनाए।
इसके बाद इंद्र ने वृत्तासुर को युद्घ के लिए ललकारा। युद्घ में इंद्र ने वृत्तासुर पर वज्र का प्रहार किया, जिससे टकराकर वृत्तासुर का शरीर रेत की तरह बिखर गया। इस तरह देवताओं का फिर से देवलोक पर अधिकार हो गया।
कथासार
परोपकारी लोग समाज के कल्याण के लिए प्राण त्यागने से भी नहीं हिचकते हैं।
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