यह ट्रेन पुराने रजवाड़ों के राजसी ठाठ-बाट के साथ यात्रियों को शाही अंदाज़ में सफ़र करवाने के लिए शुरू की गई थी.
इस ट्रेन में वो कोच लगाए गए थे, जिनका इस्तेमाल पहले के महाराजाओं ने किया था.
हालांकि बाद में 1991 में उन कोचों को बदल दिया गया.
इस शाही ट्रेन में कुल 22 कोच हैं. जिनमें 14 कोच के नाम पुराने रजवाड़ों; अलवर, भरतपुर, बीकानेर, बूंदी, धौलपुर, डूंगरपुर, जैसलमेर, जयपुर, झालावाड़, जोधपुर, किशनगढ़, कोटा, सिरोही और उदयपुर के नाम पर हैं.
ट्रेन के हर कोच में चार केबिन हैं और ये यात्री सैलून ख़ास शैली में सजाए गए हैं.
ढोला मारू और बूंदी शैली के चित्र, जैसलमेर की हवेलियों और सोनार क़िले से लेकर, उदयपुर के शाही मयूर की झलक, यहां मौजूद है.
साथ ही खूबसूरत फर्नीचर, गलीचे, परदे, सुसज्जित बार, महाराजा और महारानी नाम से दो रेस्टोरेंट इस ट्रेन में मौजूद हैं.
ट्रेन में लज़ीज़ खाना, स्पा और राजपूती साफे और पोशाक में तैनात खिदमतगार भी आपकी सेवा में लगे रहते हैं.
पूरी तरह वातानुकूलित, चैनल, म्यूज़िक, इंटरकॉम, गर्म पानी, अख़बार, पत्रिकाओं सहित अनेक सुविधाएं इस ट्रेन की ख़ासियत हैं.
इस ट्रेन में स्टाफ़ के लिए अलग से दो कोच हैं.
पैलेस ऑन व्हील्स का पहला फेरा 1982 में शुरू हुआ था. शुरू के सालों में यह बहुत लोकप्रिय रही, लेकिन पिछले कुछ सालों से इसका आकर्षण कम होता जा रहा है.
2007-2008 से 2013-14 के बीच इस ट्रेन के यात्रियों की संख्या में 43 प्रतिशत की गिरावट आई है.
इस ट्रेन को सबसे बड़ा झटका पिछले महीने लगा जब बुकिंग के अभाव में 30 मार्च का इसका फेरा रद्द करना पड़ा.
ऐसा कहा गया कि अप्रैल में दिए जाने वाले "लीन सीज़न डिस्काउंट" की वजह से यात्रियों ने अपनी बुकिंग रद्द कर दी थी.
लेकिन अप्रैल के महीने में भी महज़ 40 प्रतिशत ही बुकिंग हो पाई.
इसके लिए कुछ लोग नए यात्रा विकल्पों की तरफ लोगों की बढ़ती रूचि को ज़िम्मेदार मानते हैं.
वहीं कुछ लोग इसके लिए राजस्थान पर्यटन विभाग की बुरी व्यवस्था को ज़िम्मेदार मानते हैं.
बेहतर मार्केटिंग की कमी और सड़क मार्ग की यात्रा के लिए सैलानियों को लुभाने की ट्रैवल एजेंट्स की कोशिश को भी, इसका एक कारण बताया जा रहा है.
वहीं डेक्कन ओडिसी और गोल्डन चेरियट जैसी अन्य शाही ट्रेनों की ओर यात्रियों का रुझान बढ़ रहा है, जो राजस्थान से गुज़रते हुए अन्य प्रदेशों की सैर करवाती हैं.
इस ट्रेन को पिछले साल अमरीकी ट्रेवल मैगज़ीन 'कोन्डे नास्ट' ने दुनिया की सर्वश्रेष्ठ ट्रेनों में पांचवां स्थान दिया है.
राज्य की एक दूसरी शाही ट्रेन 'रॉयल राजस्थान ऑन व्हील्स' का किराया इससे कम है, लेकिन पिछले दिसंबर में उसके भी दो फेरों को बुकिंग के अभाव में रद्द करना पड़ा था.
एक विदेशी पर्यटक के लिए, अक्टूबर से मार्च के बीच किसी एक फेरे में सफ़र करने पर पैलेस ऑन व्हील्स का किराया क़रीब 6 हज़ार डॉलर, यानी क़रीब चार लाख रुपये पड़ता है.
भारतीय पर्यटकों के लिए यह किराया क़रीब 3.63 लाख़ रुपये है.
इसका एक सफ़र या एक फेरा सात दिन और आठ रातों का होता है. इसमें ड्रिंक्स के अलावा भोजन, पर्यटक स्थलों का दर्शन और घूमना शामिल है.
यह ट्रेन हर साल सितंबर से अप्रैल के बीच चलती है और एक महीने में तीन से चार फेरे लगाती है.
इस ट्रेन के लिए अक्टूबर से मार्च तक का समय पीक सीज़न माना जाता है.
यह ट्रेन राजस्थान पर्यटन विकास निगम की है और इसे भारतीय रेल के सहयोग से चलाया जाता है.
Spark-Bites News inextlive from Spark-Bites Desk
Interesting News inextlive from Interesting News Desk