इस अध्ययन में पहली बार ये बात सामने आई है कि जो महिलाएं मोटी होती हैं उन पर मामूली से मामूली बीमारियों का असर भी ज्यादा होता है.

ये शोध बताता है कि जिन मोटी महिलाओं में इस बीमारी का पता चलता है उनमें समय से पहले मरने का खतरा ज्यादा होता है.

इसकी वज़ह शोधकर्ता हार्मोन संबंधी दिक्कते मानते हैं.

इस अध्ययन में जो नतीजे सामने आए हैं वो बताते है कि शरीर पर बढ़ी अधिक चर्बी हार्मोन में बदलाव और सूजन का कारण बनती है और इसकी वजह से कुछ मामलों में ये इलाज होने के बावजूद कैंसर फैल जाता है और दोबारा आ जाता है.

इससे पहले मोटी महिलाओं में इस बीमारी के दोबारा होने कारण उपचार और कीमोथेरेपी दवाइयां का इस्तेमाल माना जाता था.

शोध

साथ ही इस बात की आशंका भी मानी जा रही है कि इन महिलाओं को उनके वज़न को ध्यान में देखते हुए दवा दी गई हो.

ये अध्ययन 7000 महिला मरीज़ों पर किया गया है.

इस शोध का नेतृत्व न्ययॉर्क स्थित अल्बर्ट आइंस्टीन कॉलेज ऑफ मेडिसिन के मोंटेफिओरे मेडिकल सेंटर में डॉक्टर जोसेप स्पर्नों ने किया है.

उनका कहना है, ''हमने पाया कि बेहतरीन इजाल के बावजूद जिन मोटी महिलाओं का इलाज चल रहा था उनमें 30 प्रतिशत बीमारी दोबारा होने का खतरा होता है और करीब 50 प्रतिशत ज्यादा मौत का खतरा होता है.''

डॉक्टर जोसेप ने बताया, ''अगर मोटापे के कारण हुए हार्मोन में बदलावों और सूजन का इलाज किया जाता है तो इससे दोबारा बीमारी होने का खतरा कम किया जा सकता है.''

तुलना

इस शोध में मोटे और अधिक वजनदार मरीज़ों की अन्य मरीज़ों के साथ तुलना की गई. इन लोगों पर नेश्नल कैंसर इंस्टिट्यूट ने तीन तरह की जांच करवाई.

इस शोध में भाग लेने वालों के लिए जरुरी थी कि उनका दिल, गुर्दा, लीवर और बोन मेरो ठीक से काम करे और उन लोगों को इससे अलग रखा गया था जिन्हें स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें थी.

इसका नतीजा ये हुआ कि शोधकर्ता मोटापे से होने वाले प्रभाव को अन्य पहलुओं से अलग कर पाए.

शोधकर्ताओं ने पाया कि बढ़ता बीएमआई यानी (वज़न और लंबाई में संबंध) महिलाओं में कैंसर के दोबारा आने और जल्द मौत का खतरा बढ़ा सकता है.

सच्चाई

डॉक्टर स्पर्नो का कहना है, ''ये जैविक सच्चाई है कि वज़न बढ़ने से कैंसर के दोबारा होने का ज्यादा ख़तरा होता है.''

हालांकि अभी ये नहीं पता चला है कि जांच के बाद वज़न घटने से कैंसर के दोबारा आने का खतरा कम होता है लेकिन कुछ शोध के अनुसार वज़न घटने से इन्सुलिन का स्तर कम होता है जो प्रभावकारी हो सकता है.

ब्रैस्ट कैंसर केयर में क्लिनिकल नर्स विशेषज्ञ कैथरीन प्रेस्टली का कहना है, ''हमें पता है कि सही वज़न कई तरह की बीमारियों के खतरे को कम करने के लिए फायदेमंद होता है.''

ब्रैस्ट कैंसर कैंपन के डॉक्टर स्टूयर्ट ग्रिफ्त्स का कहना है, ''ये अध्ययन इस बात का सबूत है कि मोटापे का हानिकारक प्रभाव हो सकता है.''

अगर सही वज़न पर ध्यान रखा जाए तो उससे खासतौर पर मासिक धर्म के समाप्त होने के बाद स्तन कैंसर के खतरे को कम किया जा सकता है.

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