लेकिन क्या आप जानते हैं कि पिछले कुछ सालों में आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर रहा चीन, श्रीलंका में अरबों-खरबों डॉलर का निवेश कर रहा है. हालात ये हैं कि एक ज़माने में श्रीलंका के शहरों में दिखने वाली भारतीय व्यापार की छाप भी अब फीकी पड़ती दिख रही है.
जायजा जमीनी हालात का
राजधानी कोलंबो से 200 किलोमीटर दूर गॉल शहर तक जाने वाली सड़क पर लगा जैसे मक्खन बिखरा हुआ हो. चीन के रास्ते श्रीलंका पहुंच रहे लाखों डॉलरों की मदद से कुछ साल पहले बनकर तैयार हुई आठ लेनों वाली ये सड़क अपने आप में एक तजुर्बा है.
गॉल एक्सप्रेसवे की तरह ही श्रीलंका में कम से कम पांच और ऐसी सड़क परियोजनाएं हैं जिनमें चीन से क़र्ज़ के तौर पर लिए गए धन का जलवा साफ़ दिखता है.
चीन ने इस खूबसूरत से देश में जैसे विकास का बीड़ा उठा रखा है. पिछले साल की ही बात करें तो चीन की सरकार ने श्रीलंका के साथ 16 ऐसे समझौते किए हैं जिनमें विकास चीन के पैसे से होगा, जिसे श्रीलंका को मोटे सूद के साथ चुकाना होगा.
मिसाल बना हंबनटोटा बंदरगाह
दक्षिणी श्रीलंका में स्थित हम्बनटोटा बंदरगाह चीन और श्रीलंका की बढ़ती नजदीकी का जीता-जागता उदाहण है. राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के इस शहर में अरबों डॉलरों की मदद से बन रहे इस बंदरगाह में चीन से आने वाले माल को उतारकर देश के अन्य भागों तक पहुंचाने की योजना है.
लगभग आठ करोड़ अमरीकी डॉलर की मदद से बनकर जब ये बंदरगाह तैयार होगा तब इस पर 85% दावेदारी चीन के एक्सिम बैंक की ही होगी क्योंकि पैसा भी उसी का लगा है.
श्रीलंका में कहां है भारत
इस बात में कोई दोराय नहीं कि अभी भी श्रीलंका के किसी भी बड़े शहर की सड़क पर निकल जाएं तो भारतीय कंपनियों के बोर्ड, इश्तिहार या फिर उत्पाद आपसे रूबरू हो ही जाएंगे.
जानकार मानते हैं कि जब श्रीलंका सरकार और तमिल विद्रोहियों के बीच संघर्ष जारी था, तब भी भारतीय कंपनियों ने इस देश का दामन नहीं छोड़ा था.
आज भी भारत अपने इस पारंपरिक पड़ोसी को मदद देने वाले सबसे बड़े दानदाता देशों में से एक है. कोलम्बो की ही सड़कों पर मारूती और नैनो कार से लेकर ऑटो रिक्शा तक दिख जाते हैं जिन्हें भारत से ही आयात किया जाता है.दक्षिण एशिया में श्रीलंका ऐसा पहला देश था जहां भारतीय तेल कंपनियों ने पेट्रोल पम्प खोले थे.
बदलता मंजर
लेकिन इन दिनों मंज़र कुछ और है. श्रीलंकाई लोगों को भी लगने लगा है कि चीन की मदद से होने वाले आर्थिक विकास की पहुंच भारत से कहीं ज्यादा है.
जीबी सेक्युरिटीज के आर्थिक विश्लेषक मुर्तज़ा ज़फर्जी कहते हैं, ''श्रीलंका में चीन की आर्थिक भागीदारी बेहद मददगार रही है. अगर आप चीनी कंपनियों और इनके कर्मियों के काम करने का ढंग देखें तो ये असामान्य है.''
वे कहते हैं, ''निजी कम्पनियों तक के कर्मचारी यहां मौसम की परवाह किए बिना दिन-रात काम करते हैं जबकि स्थानीय लोग ऐसा नहीं करते थे. चीन के विकास के ढांचे से श्रीलंका को बहुत सीख मिली है.''
बहरहाल, श्रीलंका के दूरदराज़ के हिस्सों में इन दिनों आलम ये है कि प्राइमरी स्कूलों में बच्चों को चीनी भाषा का ज्ञान दिया जा रहा है और मुफ्त में किताबें भी बंटवाई जा रहीं है.
बदलती राय
श्रीलंका की सरकार भी चीन के साथ कदमताल करने को तत्पर है और देश के ज्यादातर लोग इसे बेहतर ही समझते हैं. राजधानी कोलम्बो के सबसे महंगे कहे जाने वाले गॉल-सी-फेस को ही लीजिए. अभी भी यहां का सबसे पुराना और नामचीन होटल ताज समुद्र है जिसे भारत की टाटा कंपनी चलाती है.
लेकिन इस पूरे इलाके में अब जैसे चीन की इमारतें और उसकी कारीगरी छा सी रही है. करीब 300 एकड़ की समुद्री ज़मीन को बसाने के लिए चीनी कम्पनियां दिन-रात काम कर रहीं हैं.
चीन के शांग्री ला होटल की एक गगनचुम्बी इमारत जब कुछ वर्षों में बन कर तैयार होगी, तब ताज होटल के कुछ ही कमरों से समुद्र का मनमोहक नज़ारा दिख सकेगा. ये वही समुद्र है जिसके दूसरे छोर पर भारत की सीमाएं शुरू होती हैं.
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