कैम्ब्रिज का रुख:
वैज्ञानिक होमी भाभा ने एलफिस्टन कॉलेज से 12वीं की परीक्षा पास की और फिर कैम्ब्रिज का रुख कर गए। उन्होंने 1930 में मैकेनिकल इंजीनियर की डिग्री हासिल की और 1934 में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। भाभा सन 1940 में भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलुरू में रीडर के रूप में नियुक्त हुए। इसके बाद उन्हें 1941 में रॉयल सोसाइटी का सदस्य चुन लिया गया था।
इंडियन एटॉमिक एनर्जी:
वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा ने परमाणु उर्जा के क्षेत्र अगाध मेहनत की। उन्होंने 1944 में इस दिशा में काम शुरू किया था। इस दौरान उनके साथ गिने चुने वैज्ञानिक ही साथ थे। जिससे शुरू किए गए नाभिकीय उर्जा पर अनुसंधान कार्य की सफलता को लेकर सवाल उठने लगे थे, लेकिन वह सफल हुए थे। इसके बाद से ही उन्हें 1948 में 'आर्किटेक्ट ऑफ इंडियन एटॉमिक एनर्जी प्रोग्राम' के नाम से बुलाया जाने लगा था।
विवाह भी नहीं रचाया:
भाभा ने विज्ञान एवं देश के अपने अगाध लगाव की वजह से विवाह भी नहीं रचाया था। उन्होने नाभकीय भौतिकी के क्षेत्र में मेहसाण नामक प्राथमिक तत्व की खोज की। उन्हीं के निर्देशन में एशिया का पहला एटॉमिक रिएक्टर 1956 में बॉम्बे के निकट ट्रॉम्बे में स्थापित किया गया। इसके अलावा उनकी तीन पुस्तकें क्वांम्टम थ्योरी, एलिमेंट्री फिजीकल पार्टिकल्स तथा कॉस्मिक रेडियेशन आज भी मशहूर हैं।
पद्मभूषण सम्मान:
भाभा को नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में अप्रतिम योगदानों के लिए 1941 में रॉयल सोसाइटी ने फैलो चुना। इसके बाद 1943 में एडम्स पुरस्कार से सम्मानित हुए। 1948 में हॉपकिन्स पुरस्कार भी उन्होनें प्राप्त किया। सन 1954 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया। इसके बाद 1966 से 1981 तक अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के सदस्य रहे।
दुनिया को अलविदा:
भाभा एक वैज्ञानिक होने के साथ साथ शास्त्रीय संगीत एवं मूर्तिकला के भी शौकीन थे। इनके कार्यक्रमों वह भाग भी लेते थे। इतना ही नही उनके अंदर पद का लालच तनिक भी नहीं था। शायद इसीलिए उन्हें एक बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने से मना कर दिया था। जीवन में ऐसी ही तमाम उपलब्िधयां पाने वाले भाभा स्विट्जरलैंड में एक हवाई जहाज दुर्घटना में 24 जनवरी, 1966 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।inextlive from Spark-Bites Desk
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