दरअसल यह एक बेहद असामान्य घटना है- पिछले 35 साल में ये पहला निलंबन है.
बीबीसी के टॉम डि कास्टेला ने जानने की कोशिश की कि बुल फ़ाइटिंग कितनी ख़तरनाक होती है.
रोहैम्पटन विश्वविद्यालय में ह्यूमन-एनिमल स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर गैरी मार्विन कहते हैं कि बुल फ़ाइटिंग "बहुत ही ख़तरनाक कला" है.
वो कहते हैं, "अगर कोई सामान्य आदमी लड़ने वाले साँड़ के सामने रिंग में उतर जाए तो मैं उम्मीद करूंगा कि या तो वह बुरी तरह सींगों से घायल हो जाएगा या फिर कुछ ही क्षणों में मारा जाएगा. हालांकि, मैटाडोर बेहद कुशल होते हैं और कई सीज़न तक बिना घायल हुए लड़ सकते हैं.''
रिंग में मौत
लेकिन आंकड़े क्या कहते हैं?
स्पेन में बुल फ़ाइटिंग का आयोजन शिक्षा, संस्कृति और खेल मंत्रालय द्वारा किया जाता है, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से घायल होने के बारे में कोई आंकड़ा नहीं रखा जाता.
हालांकि, कुछ अनाधिकारिक आंकड़े ज़रूर उलबल्ध हैं. डाटोरोज डॉट कॉम वेबसाइट के अनुसार, साल 2013 के सीज़न में 31 मैटोडोरों को सींगों से चोटें लगी थीं. इनमें से कुछ मामूली तो कुछ घातक रूप से घायल थे. मैटाडोरों के अलावा उनके 16 सहायक भी घायल हो गए थे.
चोटिल होने की ये 47 घटनाएं स्पेन में 2013 में हुई कुल 661 बुल फ़ाइट प्रतिस्पर्धाओं के दौरान हुई थीं. मंत्रालय यह हिसाब रखता है कि कितनी प्रतिस्पर्धाएं हुई थीं.
ख़तरनाक
आधुनिक दवाओं का शुक्रगुजार होना चाहिए कि यह पेशा अब उतना ख़तरनाक नहीं रहा, जितना पहले था. पेनिसिलिन के अविष्कार से तो मदद मिली ही है, इसके अलावा आजकल बड़े बुलरिंग्स में विशेषज्ञ सर्जन ऑपरेशन करने के लिए तैयार खड़े रहते हैं.
आखिरी स्पेनिश मैटाडोर 1985 में मारा गया था, उसका नाम जोसे क्युबेरो सांचेज़ 'एल यीयो' था.
'इनटू द एरिनाः दि वर्ल्ड ऑफ़ स्पेनिश बुल फ़ाइट' के लेखक अलेक्ज़ेंडर फ़ीस्के-हैरीसन आंकड़ों का उल्लेख करते हुए बताते हैं कि स्पेन में सन् 1700 से अबतक 533 पेशेवर बुल फ़ाइटर मारे गए हैं.
हालांकि वह यह भी कहते हैं कि यह रिकॉर्ड अपूर्ण हो सकते हैं, क्योंकि बुलफ़ाइटिंग का नियमन पिछले 100 साल से ही हो रहा है.
जब मैटाडोर घायल होते हैं तो चोट बहुत भयावह हो सकती है. अक्टूबर, 2011 में जुआन जोसे पाडिला की सींग से चोट लगने से एक आंख फूट गई थी. छह महीने बाद वह वापस रिंग में उतर गए थे.
दुनिया भर में देखें तो रिंग में मारे जाने वाले आखिरी मैटाडोर कोलंबिया के जोसे इसलावा कैसेरेस थे, जो 1987 में रिंग के कोने में फंस गए थे और साँड़ की सींग ने उनके फेफेड़े को चीर दिया था.
बहरहाल मैटाडोर तो रिंग में अपनी मर्ज़ी से उतरता है, लेकिन साँड़ नहीं. असाधारण रूप से अच्छा प्रदर्शन करने के कुछ मामलों को छोड़ कर यह तो हर बार ही मारा जाता है. ऐसे मामलों में साँड़ की जान बख़्श दी जाती है.
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