मनोचिकित्सक डॉक्टर रसेल ग्रीन को मकड़ियों से फ़ोबिया था. फ़ोबिया यानी किसी चीज़ से बेवजह बेहद अधिक डर लगना. रसेल को एक घटना अभी तक याद है, जिसके बाद उन्होंने काम पर जाना ही छोड़ दिया था.
उन्होंने बताया, "एक दिन मैंने देखा कि मेरी सहयोगी के सैंडविच बॉक्स में मकड़ी है. जैसे ही मुझे पक्का विश्वास हुआ, मैं अस्पताल से भाग खड़ा हुआ."
डॉक्टर ग्रीन को मकड़ी से इतना ज़्यादा डर लगता है कि वो उसकी तस्वीर मात्र देखकर डर जाते हैं.
लेकिन डॉक्टर ग्रीन ने अपने फ़ोबिया का सामना करने के लिए एक मोबाइल ऐप 'फ़ोबिया फ़्री' विकसित कर लिया है. ये ऐप इसी तरह की समस्या से जूझने वाले अन्य लोगों की मदद के लिए बनाया गया.
इस ऐप में एक ऐसी विधि को अपनाया गया है, जिसमें फ़ोबिया से पीड़ित व्यक्ति को जिस चीज़ से फ़ोबिया है उससे धीरे-धीरे रूबरू कराया जाता है. इस विधि को सिस्टेमेटिक डीसेंसिटाइजेशन (प्रक्रियागत तरीके से कम संवेदनशील बनाना) कहते हैं.
मोबाइल गेम
अगर किसी को मकड़ी से फ़ोबिया है तो मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति पहले मकड़ी के कार्टून वाला एक गेम खेलता है. शुरुआती गेम में ये कार्टून बहुत प्यारे और सुंदर दिखते हैं, लेकिन-धीरे धीरे ये और वास्तविक होते जाते हैं.
डॉक्टर ग्रीन के सहयोगी मनोचिकित्सक आंद्रेज़ फोंसेका का मानना है कि ख़ुद की मदद थोड़ा मुश्किल काम होता है, क्योंकि इसके लिए बहुत प्रेरणा और इच्छा शक्ति की ज़रूरत होती है.
अब दोनों मनोचिकित्सक 'अगोराफ़ोबिया फ्री' ऐप पर काम कर रहे हैं, जो ऐसे लोगों की मदद करेगा जो किसी ऐसी परिस्थिति से भयभीत होते हैं, जिससे छुटकारा पाना बेहद कठिन होता है.
अन्य कई प्रोग्रामर अलग-अलग किस्म के फ़ोबिया से निपटने वाले ऐप विकसित कर रहे हैं.
कम्प्यूटर प्रोग्रामर साइमन फॉक्स नहीं जानते कि छह वर्ष पहले जब उन्हें पहला दौरा पड़ा था तब क्या हुआ था.
नए साल की पार्टी के दौरान बेचैनी के बाद वो एकांत कमरे में चले गए. वो बताते हैं, "मुझे लगा कि मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं."
साइमन बताते हैं, "30 मिनट लंबे दौरे में मुझे लगा कि मैं मर रहा हूं."
कुछ महीनों तक रोज़ाना ये दौरे आते रहे. इसके बाद वो एक मनोचिकित्सक से मिले जिन्होंने उन्हें सांस का व्यायाम करने की सलाह दी.
इलाज ज़रूरी
साइमन अब एक फ्लोवी ऐप बनाने में जुटे हैं, जो सिखाता है कि हाइपरवेंटिलेशन(अतिवातायनता) से कैसे निपटा जाए.
वो इस ऐप से यूज़र्स को यह बताने की कोशिश करेंगे कि कैसे छाती और पेट की बड़ी मांसपेशियों के इस्तेमाल से गहरी सांस ली जाए.
"लोग अपने फ़ोन और टैबलेट्स से काफ़ी जुड़ जाते हैं. जुड़ाव की यह भावना ही पीड़ित को इन परिस्थितियों में अपने फ़ोन पर भरोसे को बढ़ाती है, जो शायद अपने परिवार और मित्रों के साथ वो साझा न कर सकते हों."
फ़िल टोफ़म, मनोचिकित्सक
इस सॉफ्टवेयर का कुछ ही हफ़्तों में क्लीनिकल मूल्यांकन किया जाएगा.
हालांकि, कुछ विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि ये ऐप भले ही परंपरागत तरीक़ों के साथ-साथ प्रभावी सिद्ध हों, लेकिन ये नहीं समझा जाना चाहिए कि ये उन तरीकों की जगह ले लेंगे.
मनोचिकित्सक एलिज़ाबेथ ग्रे कहती हैं, "मुझे नहीं लगता है कि बिना समुचित इलाज के यह ठीक हो जाता है."
कुछ लोगों का मानना है कि हम में से ज़्यादातर लोगों का मोबाइल फ़ोन से गहरा रिश्ता होता है और इसमें बीमारी से उबरने में मददगार साबित होने की पर्याप्त संभावना है.
मनोचिकित्सक फ़िल टोफ़म वेस्टर्न इंग्लैंड विश्वविद्यालय में शोधकर्ता हैं. फिल 'सेल्फ़ हेल्प फ़ॉर एंक्ज़ाइटी मैनेजमेंट' (सैम) ऐप विकसित करने वाली टीम के मुखिया हैं.
वो बताते हैं, "लोग अपने फ़ोन और टैबलेट्स से काफ़ी जुड़ जाते हैं. जुड़ाव की यह भावना ही पीड़ित को इन परिस्थितियों में अपने फ़ोन पर भरोसे को बढ़ाती है, जो शायद अपने परिवार और मित्रों के साथ वो साझा न कर सकते हों."
उनका कहना है, "तनाव और बेचैनी के साथ थोड़ी झिझक भी जुड़ी होती है और यह समस्या को और बढ़ा देती है."
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