मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का विवाह मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की पंचमी को जनकपुर मे संपन्न हुआ। तब से लोग इस दिन को विवाह पंचमी के नाम से प्रतिवर्ष मनाते चले आ रहे हैं। जो इस वर्ष बुधवार 12 दिसम्बर को है।
सीता स्वयंवर में भगवान राम के धनुष तोड़ने पर विदेहराज जनक जी के द्वारा अयोध्या दूत भेजने पर महाराज दशरथ बारात लेकर जनकपुर पधारते हैं। इसके अनन्तर विवाह की विधि पंचमी को सम्पन्न होती है, इसीलिए श्रीअवध में तथा जनकपुर में विवाह पंचमी का महोत्सव प्रत्येक मंदिर में मनाया जाता है।
भक्तगण भगवान् की बारात निकालते हैं तथा भगवान की मूर्तियों द्वारा रात्रि में विधि पूर्वक भंवरी (फेरा) कराते हैं। अपनी परम्परा के अनुसार, विवाह के पूर्व तथा बाद की सारी विधियां कुंवरमेला, सजनगोठ आदि सम्पन्न करते हैं।
विवाह की लीला भी कई स्थानों में इस अवसर पर होती है। देश के विभिन्न भागों में रामभक्त यह महोत्सव अपने—अपने ढंग से आनन्द और उल्लासपूर्वक मनाते हैं।
उपरोक्त पंचमी को नाग पंचमी के रूप मे भी लोग मनाते हैं। यद्यपि यह व्रत श्रावण में ही प्रसिद्ध है, परंतु स्कन्द पुराण के अनुसार,
'शुक्ला मार्गशिरे पुण्या श्रावणे या च पंचमी।
स्नानदानैर्बहुफला नागलोक प्रदायिनी।।'
यानी मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को भी नागों का पूजन और एकभुक्त व्रत करना फलदायक होता है।
- ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र, शोध छात्र, ज्योतिष विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
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