दुनिया की सबसे नन्हीं टीनेजर

2 साल की उम्र से ही नन्ही निवेह डेंटोन का शारीरिक विकास होना शुरु हो गया था। निवेह की मां बताती हैं कि उनकी बेटी 4 साल की उम्र में ही किसी टीनेजर जैसी दिखने लगी है। निवेह के शरीर में समय से पहले हार्मोंस ने अपना काम करना शुरु कर दिया। जिसके चलते बहुत ही कम उम्र में उसका शारीरिक विकास शुरु हो गया था। निवेह को हार्मोंस को कम करने वाली दवाइयां दी जा रही हैं। जिससे उसके बड़ते शारीरिक विकास पर अंकुश लगाया जा सके। इस अवस्था के कारण वो अपने बचपन जी नहीं पा रही है। 4 साल की उम्र में उसे 6 साल की उम्र के बच्चों के कपड़े पहनने पड़ते हैं।

हफ्ते में लगते हैं 12 इंजेक्शन

निवेह की मां बताती हैं कि वह बिलकुल एक टीनेजर की तरह नखरें करने लगी है। उसका छोटा सा शरीर टीनेज हार्मोंस के कारण आ रहे इन बदलावों के साथ सहज नहीं हो पा रहा है। वो समझ नहीं पा रही है कि शरीर में हो रहे इन बदलावों को वो कैसे स्वीकार करे। उसे सामान्य रखने के लिए हर हफ्ते 12 इंजेक्शन दिए जाते हैं। इन इंजेक्शन की सहायता से उसके शारीरिक बदलाव तो रुक गए हैं पर वो अक्सर मूडी हो जाती है। उसके साथ जो हो रहा है उसे समझने के लिए अभी वो बहुत छोटी है। अगर इस बीमारी का इलाज नहीं किया गया तो स्थिति और भी बिगड़ भी सकती है।

यूके में फैल रही है ये बीमारी

यह बीमारी यूके में तेजी से फैल रही है। यूके में कई बच्चों में समय से पहले किशोरावस्था के लक्षण नजर आने लगे हैं। निवेह शायद दुनिया की सबसे नन्ही टीनेजर है। इस असाधारण अवस्था को प्रिकोशियस प्रीबर्टी कहा जाता है। जिसमें 8 साल की उम्र से ही बच्चों में किशोरावस्था के बदलाव आने लगते हैं। जैसे स्तनों का विकसित होना, मासिक धर्म शुरू होना, मुहांसे आना, लिंग का विकसित होना, बगलों और गुप्तांगों पर बालों का आना आदि। विशेषज्ञ कहते हैं कि इस अवस्था में बच्चे दिमागी रूप से इन लक्षणों के लिए तैयार नहीं हुए होते हैं। एक रिसर्च के अनुसार किशोरावस्था के लक्षण दिखना शुरू होने की औसत उम्र पहले से 4 साल घट कर अब 11 साल हो गई है।

पांच हजार में से कोई एक होता है शिकार

एक रिपोर्ट की माने तो पहले ये बदलाव 15 साल की उम्र से बच्चों में नजर आते थे। वैज्ञानिक इस बीमारी का कारण जानने के लिए शोध कर रहे हैं। प्रिमैच्योर सेक्सुअल माच्युरेशन के पीछे कई संभावित कारण हो सकते हैं। निवेह की मां कहती हैं कि उन्हें उम्मीद है कि इलाज के बाद वो एक सामान्य बच्चे की तरह अपनी ज़िन्दगी जी पायेगी। प्रिकोशियस प्रीबर्टी को प्रिमैच्योर सेक्सुअल माच्युरेशन या पीउसएम के नाम से भी जाना जाता है। यह बीमारी 5000 में से किसी एक बच्चे होती है। कोपेनहेगन यूनिवर्सिटी की एक स्टडी की माने तो मोटापा इस बीमारी के होने की सम्भावना को कई गुना बढ़ा देता है। इस बीमारी का मुख्य कारणों का अभी तक पता नहीं चल सका है।

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