हुनर विरासत में:
बाईचुंग भूटिया सिक्किम के तिनत्तिम में पैदा हुए थे। फुटबॉलर बॉईचुंग को खेलने का हुनर विरासत में मिला है। उनके बड़े भाई भी फुटबॉल खिलाड़ी ही रहे। शायद यही वजह रही कि उन्हें इस दुनिया में आने के लिए मार्गदर्शन के लिए ज्यादा नहीं भटकना पड़ा।
साई स्कॉलरशिप:
बाईचुंग भूटिया के खेलने का उदारहण यह भी है कि उन्होंने मात्र 11 वर्ष की उम्र में फुटबॉल की दुनिया में छाप छोड़ दी थी। उन्हें ताशी नंग्याल अकादमी (गंगटोक) की ओर से फुटबॉल की साई स्कॉलरशिप मिल गई थी।
गजब का कंट्रोल:
बाईचुंग को अपने पैरों से बाल नचाना बेहद अच्छे से आता है। बाल पर गजब का कंट्रोल है। हमेशा उनकी बाल निशाने पर ही पड़ती थी। उन्होंने भारत को अंतरराष्ट्रीय फुटबाल में एक बड़ी पहचान दिलाई है।
शुरुआती दौर में:
बाईचुंग भूटिया ने 1992 में अंडर-16 सब जूनियर में ढाका (बांग्लादेश) में हुए टूर्नामेंट में भारत का प्रतिनिधित्व किया। वह 16 वर्ष की उम्र में ईस्ट बंगाल क्लब की ओर से खेलने लगे थ्ो। शुरुआती दौर में ही वह छा गए थे।
प्लेयर ऑफ द ईयर:
वर्ष 1995 बाईचुंग राष्ट्रीय टीम में जगह बनाने में सफल रहे। इसके बाद 1996 में काठमांडू में दक्षिण एशियन फुटबॉल फेडरेशन टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन किया। इसमें वह ‘प्लेयर ऑफ द ईयर’ चुने गए।
महत्वपूर्ण भूमिका:
1997 में पहली बार नेशनल फुटबॉल लीग जिताने में भूटिया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1998 व 1999 में सैफ खेलों में इनका अहम रोल रहा। बेहतर प्रदर्शन के लिए 1999 में ‘एशियर प्लेयर ऑफ द मंथ’ पुरस्कार से नवाजे गए।
ये मिले अवार्ड:
बाईचुंग भूटिया ने 2004 में माधुरी टिपनिस से विवाह किया। भूटिया को कई राष्ट्रीय अवार्ड मिले हैं। वह 'अर्जुन अवार्ड' और 'पदमश्री' से भी नवाजे गए हैं। इतना ही नहीं उन्हें 'सिक्कम पुरस्कार' भी दिया गया।inextlive from Sports News Desk