कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। Sawan 2023 : श्रावण या सावन का महीना 4 जुलाई से शुरू हो रहा है। यह हिंदू चंद्र कैलेंडर का पांचवां महीना है। सावन का महीना हिंदुओं के लिए एक शुभ महीना होता है। सावन के दौरान भगवान शिव की पूजा करने का विशेष महत्व है। पूरे महीने भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा की जाती है। इस दाैरान भक्त बेल पत्र, धतूरा, दूध, चावल, चंदन और अन्य चीजें चढ़ाते हैं। इतना ही नहीं भक्त सावन के हर सोमवार को भगवान शिव के लिए व्रत रखते हैं ताकि शिव जी उनकी हर मनोकामना पूरी करें। उनके जीवन में खुशियां बनी रहें। इस साल सावन का महीना 4 जुलाई मंगलवार से शुरू होकर 31 अगस्त गुरुवार तक चलेगा। इस बार सावन खास होगा, क्योंकि 19 साल के लंबे अंतराल के बाद अधिक सावन मास के कारण सावन का शुभ समय दो महीने तक रहेगा।

महत्व
सावन के दौरान देशभर के मंदिरों में भगवान शिव और उनके परिवार की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव चालीसा और शिव आरती का जाप किया जाता है। इस महीने में लोग धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियां करते हैं। अविवाहित महिला श्रद्धालु मनचाहा पति पाने के लिए मंगलवार का व्रत भी रखती हैं, जिसे मंगला गौरी व्रत के नाम से जाना जाता है और यहां तक कि नवविवाहित श्रद्धालु भी मंगला गौरी व्रत करते हैं। सावन को कांवर यात्रा के लिए भी जाना जाता है। कांवरिया भक्त मीलों पैदल चलकर गंगा जल लाते हैं। गंगा जल ले जाने के लिए कांवरिये के कंधे पर कांवर रखी जाती है ताकि वे श्रावण मास में कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी तिथि की शिवरात्रि पर भगवान शिव को गंगा जल चढ़ा सकें। इससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। भक्तों की हर इच्छा पूरी करते हैं।

इतिहास
सावन में शिव पूजन के पीछे मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय जब देवता और अमृत की तलाश में एक साथ आए थे। मंथन के दाैरान रत्न, आभूषण, पशु, देवी लक्ष्मी, धन्वंतरि समेत कई अन्य चीजें सामने आईं। हालांकि इस दाैरान हलाहल यानी कि घातक जहर का उद्भव भी हुआ। इस दाैरान जो भी इस जहर के संपर्क में आया वह नष्ट होने लगा। इस पर भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु चिंतिंत हो गए। उन्होंने भगवान शिव से मदद मांगी और विचार किया कि केवल वह ही इसे सहन कर सकते हैं। जनकल्याण के लिए भगवान शिव ने जहर को पीने का फैसला किया। जहर पीते ही उनका शरीर नीला पड़ने लगा। भगवान के पूरे शरीर में जहर फैलने से देवी पार्वती चिंतित होने लगी। इस दाैरान उन्होंने विष को शिव जी के गले में ही रोक दिया। इस घटना के बाद भगवान शिव को नीलकंठ कहा जाने लगा।


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