कहानी : एक सुपरमैन टाइप आदमी है जो चुन-चुन के भ्रष्ट पुलिस वालों की भजिया बना रहा है और उसे रोकने के लिए हैं, ब्योमकेश बख्शी टाइप एक और पॉलिस ऑफिसर
समीक्षा : फिल्म है किलर का 'कैटलॉग'
ये फिल्म, फिल्म कम एक किलर का कैटलॉग जैसा है, किस-किस तरह से आपके प्राण लिए जा सकते हैं, यूं कह लीजिए कि ये फिल्म 'फाइनल डेस्टिनेशन' का इंडियन वर्जन है, बस इसमे सारा काम जॉन अब्राहम करते हैं, और मजाल है की कोई हाथ से निकल जाए। जॉन आपको चुन-चुन के मारेंगे, ऐसा मरेंगे की चुनने लायक अस्थियां न बचेंगी। ये फिल्म एक अलग ही किस्म के पेट्रियोटिक आतंकवाद के बूटकैम्प जैसी है। कहानी के लेवल पे छिछली और स्क्रीनप्ले और डायलॉग तो पूछिये ही मत।
स्वाद : 'संवाद' हैं बचकाने
एक वक्त पे आके आप बहुत ही बोर हो जाते हैं और मन करता है कि कोई अच्छा सा नाइ मिल जाये जो आपको इस सर दर्द से निपटने के लिए एक अच्छी सी चम्पी कर दे तो बात हो लेकिन ऐसा करना खतरे से खाली नहीं है, हर चटकती हड्डी के साथ आपको एक टूटती हुई हड्डी की एक इमेज आपको फिल्म से याद आ ही जाएगी। फिल्म के संवाद बचकाने हैं, और कहीं पे भी आपकी देशभक्ति को कोई आग नहीं देते।
अदाकारी : रॉकी हैंडसम की कॉपी
इस फिल्म में अदाकारी के लिए कुछ खास जगह है नहीं, जॉन का काम है बस हड्डियां कड़काना, और वीभत्स तरीके से कत्ल करना जो कि इससे पहले हम 'रॉकी हैंडसम' में देख चुके हैं। मनोज वाजपेयी का भी वही हाल है, पिछली कई फिल्मों में हम उन्हें ये सब करते देझ चुके हैं।
मिलाप झावेरी जी, आप सेक्स कॉमेडी पे ही कंसन्ट्रेट कीजिये, एयर अगर आप मारधाड़ और सूडोपेट्रियोटिक हैं तो शायद आप झेल सकें सत्यमेव जयते।
रिव्यू : 1.5 स्टार्स
Reviewed by : Yohaann Bhaargava
Twitter : yohaannn
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