ये ग़ज़ल राम प्रसाद बिस्मिल का प्रतीक सी बन गई है। लेकिन बहुत कम ही लोगों को पता होगा कि इसके रचयिता रामप्रसाद बिस्मिल नहीं, बल्कि शायर बिस्मिल अज़ीमाबादी थे।

राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान पर शोध कर चुके सुधीर विद्यार्थी कहते हैं, "सरफ़रोशी की तमन्ना को राम प्रसाद बिस्मिल ने गाया ज़रूर था, पर ये रचना बिस्मिल अज़ीमाबादी की है।"

इतिहासकार प्रोफ़ेसर इम्तियाज़ भी तस्दीक करते हैं कि यह ग़ज़ल बिस्मिल अज़ीमाबादी की ही है।

प्रोफ़ेसर इम्तिाज़ के मुताबिक़, उनके एक दोस्त स्व. रिज़वान अहमद इस ग़ज़ल पर शोध कर चुके हैं, जिसे कई क़िस्तों में उन्होंने अपने अख़बार ‘अज़ीमाबाद एक्सप्रेस’ में प्रकाशित किया था।

बिस्मिल अज़ीमाबादी के पोते मुनव्वर हसन बताते हैं कि ये ग़ज़ल आज़ादी की लड़ाई के वक़्त काज़ी अब्दुल गफ़्फ़ार की पत्रिका ‘सबाह’ में 1922 में छपी, तो अंग्रेज़ी हुकूमत तिलमिला गई।

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तो किसने लिखी थी 'सरफ़रोशी की तमन्ना..'

संपादक ने ख़त लिखकर बताया कि ब्रिटिश हुक़ूमत ने प्रकाशन को ज़ब्त कर लिया है।

दरअसल, इस ग़ज़ल का देश की आज़ादी की लड़ाई में एक अहम योगदान रहा है।

यह ग़ज़ल राम प्रसाद बिस्मिल की ज़ुबान पर हर वक़्त रहती थी। 1927 में सूली पर चढ़ते समय भी यह ग़ज़ल उनकी ज़ुबान पर थी।

बिस्मिल के इंक़लाबी साथी जेल से पुलिस की लारी में जाते हुए, कोर्ट में मजिस्ट्रेट के सामने पेश होते हुए और लौटकर जेल आते हुए एक सुर में इस ग़ज़ल को गाया करते थे।

बिस्मिल अज़ीमाबादी का असली नाम सैय्यद शाह मोहम्मद हसन था।

वो 1901 में पटना से 30 किमी दूर हरदास बिगहा गांव में पैदा हुए थे।

लेकिन अपने पिता सैय्यद शाह आले हसन की मौत के बाद वो अपने नाना के घर पटना सिटी आ गए, जिसे लोग उस समय अज़ीमाबाद के नाम से जानते थे।

जब उन्होंने शायरी शुरू की तो अपना नाम बिस्मिल अज़ीमाबादी रख लिया और उसी नाम से मशहूर हुए।

बिस्मिल अज़ीमाबादी की लिखी असल ग़ज़ल-

तो किसने लिखी थी 'सरफ़रोशी की तमन्ना..'

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