कहानी :
संजय दत्त की अविश्वनीय ज़िन्दगी पे एक फिल्म।
क्या क्या था लाजवाब:
संजय दत्त की ज़िन्दगी है तो बिलकुल फ़िल्मी, और शायद यही कारण है कि जीतेजी उसपर फिल्म भी बनाई गई और वो भी उस निर्देशक ने बनाई जिसने बॉक्स ऑफिस और लोगों के दिलों पे कब्ज़ा किया हुआ है। कहानी के लिहाज़ से देखें या स्क्रीनप्ले के हिसाब से या डायलॉग के हिसाब से, फिल्म अच्छे से लिखी गई है, ऊपर से फिल्म में शॉक वैल्यू भी है, जिस स्टार की ज़िन्दगी को हम जानने का दावा करते हैं, उसकी भी लाइफ के कई पहलु हैं, जिनके बारे में हमको नहीं पता और ऐसे मौके जहां वो स्टार हमारे आपके जैसे हालातों में रहा तो कैसे रहा, ये सब भी बड़े सलीके से दिखाया है। फिल्म में संजू का किरदार उतना ही ग्रे है जितना मग्ज़िनज़ के पन्नो में संजू का चरित्र,इसलिए फिल्म काफी रियल लगती है। फिल्म का प्रोस्थेटिक और मेकअप डिपार्टमेन्ट भी लाजवाब है, कई मौकों पर तो रणबीर बिलकुल संजय दत्त ही लगते हैं, फिल्म की एडिटिंग भी काफी अच्छी है। साथ ही फिल्म में हर वो मसाला है जिससे ये फिल्म इस साल की सबसे मनोरंजक फिल्म बनके भी उभरती है।
क्या रह गई कमी:
इतना सब कुछ था कहने को, की कई जगह पर ऐसा लगता है कुछ कुछ रह गया। नायक से खलनायक बनने का सफर कुछ ज़्यादा जल्दी ही बीत गया। संगीत साधारण है।
अदाकारी :
रणबीर कपुर के बारे में तो क्या ही कहा जाए, क्या ज़बरदस्त काम किया है। पूरी तरह से संजय दत्त बन गए, कहीं कहीं तो ऐसा लगता है कि वो खुद ही संजू हैं। सह कलाकारों में दिया और विक्की चमक के निकल के आते है, दोनो ने ही अवार्डवर्दी काम किया है। अनुष्का के करने के लिए फिल्म में ज़्यादा कुछ नहीं था। परेश टॉप नोच हैं।
कुलमिलाकर इस फिल्म को देखने का अगर एक ही रीज़न देना पड़े तो वो रीज़न है रणबीर कपूर। इस हफ्ते ज़रूर देखिये ये फिल्म। रेस के सदमे से आसानी से उबर जाएंगे।
रेटिंग : 4 स्टार
Reviewed by
Yohaann Bhaargava and Suraj Naik
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