ऐसा आरोप है कि इस साल 25 अक्तूबर को उन्होंने एक बार में अपने जूनियर पहलवान की खोपड़ी तोड़ दी थी। मामला पुलिस में गया और जापानी अख़बारों में इस ख़बर ने काफ़ी सुर्ख़ियां बटोरी।
इस वाक़ये से जापान के प्राचीन राष्ट्रीय खेल पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है।
एक दशक पहले एक प्रशिक्षु पहलवान को उसके सीनियरों ने बीयर की बोतल और बेसबॉल के बल्ले से पीट-पीटकर मार डाला था।
वह प्रशिक्षु पहलवान महज़ 17 साल का था और इस मामले पर तब काफ़ी चिंता जताई गई थी।
सूमो का खेल
साल 2010 में सूमो के खेल का नाम अवैध सट्टे से जोड़ा गया। इसके तार जापान के याज़ुका गैंग से मिले होने की बात भी कही गई।
इसी साल हारुमाफुड्ज़ी कोहेई के गुरु और मंगोलिया के चैंपियन पहलवान अससहोरयु ने टोक्यो के एक नाइटक्लब के बाहर झगड़ा होने के बाद इस्तीफ़ा दे दिया था।
ये वो घटनाएं हैं जिनसे लगता है कि सूमो का खेल अपनी ही ज़मीन पर दम तोड़ रहा है।
जिस अनुशासन को कभी सूमो की विधा के साथ जोड़ा गया था, अब वो तार-तार होता हुआ लग रहा है।
15 सौ साल के बाद आख़िरकार इस खेल का स्याह पक्ष अब दुनिया के सामने आने लगा है।
इन सवालों के जवाब खोजने के लिए पहले ये जानना ज़रूरी है कि सूमो पहलवान आते कहां से हैं?
कैसी ट्रेनिंग से गुज़रकर कोई सूमो पहलवान बनता है?
सूमो के खेल की शुरुआत डेढ़-दो हज़ार साल पहले जापान के मठों में हुई।
लेकिन सूमो के अखाड़े में अब जापान का बोलबाला नहीं रह गया है।
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मंगोलियाई आ रहे हैं...
इस हफ्ते हारुमाफुड्ज़ी कोहेई के रिटायर होने से पहले तक, वहां चार सूमो ग्रैंड चैंपियन थे।
हारुमाफुड्ज़ी कोहेई समेत उनमें से तीन मंगोलियाई हैं।
पूर्वी यूरोप, रूस और हवाई जैसी जगहों से नए पहलवान जापान सूमो का खेल सीखने आते हैं। उगते हुए सूरज के देश जापान में सूमो कोई खेल नहीं है, ये परंपरा का हिस्सा है।
जापानियों के लिए सूमो के बहुत मायने हैं।
कड़े नियम सूमो पहलवानों के आचरण की मर्यादा तय करते हैं और जापान से बाहर पैदा होना लापरवाही की दलील नहीं हो सकता है।
सभी सूमो पहलवान सार्वजनिक तौर पर पारंपरिक लिबास पहनते हैं। उन्हें बातचीत में मर्यादापूर्ण और मधुरभाषी होने की तालीम दी जाती है।
उनका रुतबा कुछ ऐसा होता है कि जब वे सड़कों पर निकलते हैं तो अजनबी भी उन्हें देखकर सिर झुकाते हैं।
जापान में सूमो की ट्रेनिंग देने वाले 45 केंद्र हैं और जापान सूमो एसोसिएशन के नियम के तहत ये सभी केंद्र एक बार में केवल एक ही विदेशी नागरिक को सूमो की ट्रेनिंग के लिए दाखिला दे सकते हैं।
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सूमो की ट्रेनिंग
यहां दाखिला ज़्यादातर केवल 15 साल के उम्मीदवारों को दिया जाता है।
23 साल से बड़े पहलवान की उम्मीदवारी पर विचार भी नहीं किया जाता।
दाखिले के बाद वे जापानी बोलते हैं, जापानी खाना खाते हैं, जापानी कपड़े पहनते हैं, मतलब उनकी दुनिया पूरी तरह से जापानी हो जाती है।
सूमो के खेल के जानकार मार्क बुकटोन कहते हैं, "शुरुआती ट्रेनिंग में वे जूनियर सिपाही की तरह होते हैं। वे खाना बनाते हैं, सफ़ाई करते हैं, आलू छीलते हैं। हर कोई जापानी सीखता है। वे बहुत खाते हैं और वो खाने के बाद
सोने के लिए चले जाते हैं। सूमो पहलवान नाश्ता नहीं करते, सुबह वे सिर्फ़ अभ्यास करते हैं।"
उनकी जीवनशैली के बारे में मार्क ने बताया, "हर पहलवान अपने बाल बढ़ाता है। वे अपने बाल हफ़्ते में केवल एक या दो बार धो सकते हैं। उनके खाने में मांस और सब्ज़ियां काफ़ी रहती हैं। वे लंच करते हैं, फिर सो जाते हैं।
उनके खाने में चावल बहुत होता है। वे दोपहर के वक़्त उठते हैं और शाम में फिर खाते हैं। वे जल्दी सोते हैं और जल्दी उठते हैं।"
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तनख़्वाह नहीं, गर्लफ़्रेंड नहीं, फ़ोन नहीं
जापान में साल में छह टूर्नामेंट होते हैं। खेल में तरक्की के लिए हारे गए मुक़ाबलों से ज़्यादा मैचों में जीतना ज़रूरी होता है।
प्रतिद्वंदी को रिंग के बाहर करने वाला या उसे बिना पैरों का इस्तेमाल किए धूल चटाने वाला पहलवान विजेता बनता है।
विजेताओं का एक श्रेष्ठता क्रम होता है जिसके छह स्तर होते हैं।
तक़रीबन 650 पहलवान लड़ते हैं और केवल 60 लोग ही ऊपर की श्रेणी में आते हैं।
नीचे के चारों स्तरों पर विजेता बनने से कोई आर्थिक फ़ायदा नहीं है।
लगातार दो या तीन साल तक जीतने पर ही कोई पहलवान उस मुक़ाम तक पहुंचता है जहां तनख़्वाह मिलती है।
लेकिन जब वो मुक़ाम आ जाता है तो श्रेष्ठता क्रम के दूसरे डिविज़न में तक़रीबन 12 हज़ार डॉलर मिलते हैं और शीर्ष पर अंदाज़न 60 हज़ार डॉलर हर महीने।
इसमें स्पॉन्सरशिप डील भी शामिल है। इसके अलावा और भी फ़ायदे हैं।
जूनियर पहलवानों को जाड़े में भी पतले सूती कपड़े और लकड़ी के सैंडल पहनने होते हैं।
सख़्त नियम, कड़ी पाबंदी
उन्हें गाड़ी चलाने की इजाज़त नहीं है लेकिन बेहतरीन खिलाड़ियों के पास ड्राइवर होते हैं।
ये स्टेटस सिंबल भी है और ज़रूरत भी क्योंकि उनकी तोंद स्टीयरिंग व्हील तक पहुंच नहीं पाती है।
श्रेष्ठता क्रम के पहले और दूसरे डिविज़न के पहलवानों को छोड़कर किसी को भी मोबाइल फ़ोन रखने या लड़की से दोस्ती करने की इजाज़त नहीं होती।
महिलाएं उनके प्रशिक्षण केंद्रों में नहीं रह सकतीं।
एक पहलवान शादी नहीं कर सकता या दूसरे डिविज़न तक पहुंचने से पहले अपनी पत्नी के साथ बाहर नहीं रह सकता।
इससे भी मुश्किल नियम ये है कि अगर वो घायल हो जाता है या श्रेष्ठता क्रम में गिरकर तीसरे डिविज़न में पहुंच जाता है तो उसे अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़ना होगा।
इसके बाद सूमो पहलवान को फिर से प्रशिक्षण केंद्र में आकर रहना होता है।
क्या होता है, अगर कोई प्रशिक्षु पहलवान अपने गुरु की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाता?
सूमो के जानकार मार्क बुकटोन कहते हैं कि ''उनके साथ बहुत बुरा होता है। 2007 में उस लड़के की मौत से पहले सूमो पहलवानों को पीटने की घटनाएं आम थीं।''
क़ायदे बदल रहे हैं...
पिछले साल एक प्रशिक्षु पहलवान की एक आंख उसके साथ हुई बदसलूकी के कारण चली गई थी।
तब उसे 288,000 डॉलर का मुआवज़ा दिया गया।
मंगोलियाई सूमो पहलवान हाकुहो ने 2007 की घटना के बाद कहा था, "आज मेरी जीत के बाद आप मेरे खुश चेहरे को देख रहे हैं लेकिन एक वक़्त ऐसा भी था जब मैं रोज़ रोता था।"
उन्होंने बताया, "पिटाई के पहले 20 मिनट में बहुत दर्द होता है लेकिन इसके बाद चीज़ें आसान हो जाती हैं। भले ही आप पीटे जा रहे हों लेकिन दर्द कम हो जाता है। हां, मुझे भी पीटा गया था। मेरे सीनियर पहलवानों ने बताया कि ये मेरे भले के लिए है और मैं फिर रोया।"
तो फिर लोग चुप क्यों रहते हैं?
सूमो के खेल पर लिखने वाले क्रिस गोउल्ड कहते हैं कि खामोशी का नियम बहुत सख्त है। सूमो की विधा के पतन के बारे में फ़िलहाल कुछ कहना जल्दबाज़ी होगा। यह भविष्य को लेकर आशंकित होने का समय नहीं हैं।
जापान सूमो एसोसिएशन को ये समझने की ज़रूरत है कि सूमो के पक्ष में और उसके विरोध में क्या है?
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