अब बात कहानी की. नया क्या है? कुछ भी नहीं. बॉलीवुड की फॉर्मूला फिल्मों की तर्ज पर कुछ नाच-गाना, एक्शन, डबल रोल, ईमानदार पुलिस ऑफिसर, खराब सिस्टम, सब कुछ इस फिल्म में है. अक्षय का डबल रोल भी ऐसा है कि दोनों कैरेक्टर में कुछ खास अंतर नहीं दिखता. दोनों लगभग एक जैसे दिखते हैं. अंतर सिर्फ नीयत का है, इनमें से एक ईमानदार पुलिस ऑफिसर है और एक चोर. फिल्म में सोनाक्षी नाच-गाने और अक्षय कुमार के चोर कैरेक्टर का लव इंट्रेस्ट बनने के लिए ही हैं.
उन्होंने इस फिल्म में वह सब किया है जो उनसे रिक्वॉयर्ड था. प्रॉब्लम ये है कि इस रोल में शायद इससे ज्यादा कुछ उनसे चाहिए ही नहीं था. फिल्म में अक्षय का फॉर्मूर्ला वैसे ही चला है जैसे 90 के दशक में उनकी कुछ खिलाड़ी टाइप फिल्मों में दिखा था. अगर आप दिमाग लगाकर फिल्म देखना चाहते हैं तो फस्र्ट हाफ में ही आपकी समझ में आ जाएगा कि दिमाग का इस फिल्म में कुछ खास काम नहीं है.
हां, अगर आप बिना दिमाग लगाए फिल्म देखना चाहते हैं और अक्की के फैन हैं तो एक चांस ले सकते हैं. फिल्म का एक्शन थोड़ा धूम-धड़ाके वाला है और अक्षय का कैरेक्टर पोर्टे्रयल थोड़ा लाउड है. बावजूद इसके उनका परफॉर्मेंस अच्छा है. सोनाक्षी अच्छी दिखती हैं, मगर फिल्म में उनके लिए कुछ खास नहीं था. फिल्म के विलेन, नासेर ने ठीक-ठाक काम किया है. मगर फिल्म की कास्ट अपने रोल को प्ले करने के लिए थोड़ा ज्यादा एफर्ट करती सी लगती है. अगर कुछ याद रह जाने वाला है तो वह हैं अक्षय. बीच-बीच में कॉमेडी का पुट भी है, मगर कुछ भी लम्बा नहीं चलता..
हां, प्रोड्यूसर के तौर पर संजय लीला भंसाली का नाम फिल्म के कंटेंट या प्रेजेंटेशन से बिल्कुल मैच नहीं करता. सांवरिया और गुजारिश जैसी फिल्मों के फ्लॉप होने से संजय भी मनी मेकिंग स्क्रिप्ट की ओर मुड़ गए लगते हैं. क्या करें: हल्की-फुल्की कॉमेडी, शोर-शराबे वाले एक्शन के साथ अक्की के फैन हों तो जा सकते हैं.
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