फिल्म : रूही
कलाकार : जाह्नवी कपूर, राजकुमार राव, वरुण शर्मा, मानव विज
निर्माता :
निर्देशक : हार्दिक मेहता
रेटिंग : 2 स्टाररूही का रिव्यु
स्त्री फिल्म की अपार सफलता के बाद से ही बॉलीवुड में हॉरर कॉमेडी वाला फॉर्मूला खूब अपनाया जा रहा है। लेकिन किसी भी लिहाज से रूही उसके आस-पास भी नहीं पहुंचती है। सिवाय राजकुमार और फिल्म के निर्माता दिनेश विजन के, मगर अफसोस कि उनका विजन इस बार काम नहीं आता है। फिल्म में कुछ भी स्त्री जैसा नहीं है। निर्देशक और निर्माता ने एक संदेश देने की भी कोशिश की है। लेकिन वह इस तरह उलझी हुई बात लगती है कि कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पाता है। न ही फिल्म के संवाद, न ही कलाकार और न ही कहानी की पृष्ठभूमि आकर्षित करती है। इससे इतर कलाकारों की बेतुकी बातें और हरकतें बोर करती हैं। रूही की कहानी भी चुड़ैल पर आधारित है। एक छोटा सा इलाका है और वहां के लोग एक चुड़ैल से परेशान है। चुड़ैल का एक ही इरादा है। क्या वह कामयाब हो पाता है। इस फिल्म की सबसे बड़ी खामी यही है कि यह फिल्म स्त्री की तुलना में अंधविश्वास के खिलाफ ठीक से व्यंग्य भी नहीं कर पाती है, बल्कि देखते हुए अंधविश्वास को बढ़ावा मिल रहा है, ऐसा लगता है।
क्या है कहानी
फिल्म की कहानी उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव की है। भंवरा पांडे (राजकुमार राव ) और कटनी( वरुण शर्मा ) पेशे से पत्रकार है, लेकिन वह पकड़ाई शादी, जिसमें लड़की को अगुवा करके शादी कराई जाती है, पत्रकारिता की आड़ में यह भी काम करते हैं। इसी क्रम में वह रूही( जाह्नवी कपूर) को भी किडनैप करते हैं। लेकिन कहानी में यही से ट्विस्ट शुरू होते हैं, जब उन्हें पता चलता है कि रूही के अंदर एक अफ्जा नाम की लड़की की आत्मा है। वह आत्मा किसकी है, क्यों है, और वह रूही का पीछा कबतक करती है, इसी के इर्द-गिर्द पूरी कहानी का ताना बाना रचा गया है।
क्या है अच्छा
राजकुमार राव हमेशा की तरह बेहतरीन अभिनय करते नजर आये हैं। शेष फिल्म में कुछ भी अच्छा नहीं है। सिर्फ एक दो कॉमेडी पंच अच्छे हैं। हालाँकि हॉरर कॉमेडी में और अधिक कॉमेडी की डिमांड की जाती है। फ़िल्म का गीत संगीत अच्छा है।
क्या है बुरा
सबसे पहले तो निर्देशक का विजन ही स्पष्ट नहीं है। वह कुप्रथा को गलत साबित करना चाहते थे या फिर नहीं, स्पष्ट नहीं होता। अफ्जा की जिंदगी की कोई बैक स्टोरी नहीं है। दर्शक खुद ही अनुमान लगाते रहें कि क्या हो रहा है। संवाद बेतुके और बचकाने हैं। राजकुमार जैसे काबिल कलाकार से ऐसा बचकाना अभिनय करवाना। स्पष्ट ही नहीं है कि अंधविश्वास के विरूद्ध फिल्म है या फिर पक्ष में। एक रूही न डराती है, ना ही कुछ पाठ पढ़ाती है, बल्कि दर्शकों के दिमाग को सिर्फ थकाती है। किरदारों को गढ़ने में भी खास मेहनत नहीं हुई है।
अदाकारी
राजकुमार राव ने अपनी पूरी क्षमता दिखाई है। लेकिन कमजोर स्टोरी लाइन के कारण उनकी मेहनत एकदम बेकार लगती है। वरुण शर्मा कब फुकरे के हैंगओवर से निकलेंगे पता नहीं। जाह्नवी कपूर के लिए यह बेहतरीन मौका था, उन्हें टाइटल किरदार निभाने का मौका मिला है। लेकिन उन्होंने निराश किया है। उन्हें पूरी फिल्म में एक ही एक्सप्रेशन में देखना, उबाऊ था। उन्हें दो किरदारों में जो मेहनत दिखानी थीं, वह उससे बचती आई हैं। अफ्जा के एक भी संवाद सुनाई नहीं देते हैं।जितनी मेहनत एक गाने के लिए जाह्नवी ने की है, उतनी अगर फिल्म में अपने अभिनय पर भी करतीं तो क्या बात होती। मानव विज का किरदार भी बचकाना लगता है।
वर्डिक्ट
स्त्री के फैंस निराश ही होंगे, वह इसे स्त्री का सीक्वल या उस कड़ी में अगली फिल्म समझ कर न ही देखें तो अच्छा होगा।
Review By: अनु वर्मा
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