अगर सर्वे के नतीजों का विश्लेषण किया जाए तो जो बातें उभरकर सामने आती हैं उनमें प्रमुख हैं, किसी अन्य मतावलंबी की अपेक्षा मुस्लिम अपने धर्म के प्रति अधिक आस्थावान हैं, धर्म परिवर्तन कर ईसाई बने हिंदुओं का बड़ा हिस्सा दक्षिण भारत से है, हिंदू से ईसाई बनने वालों में अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों की संख्या अधिक है। सर्वे में दक्षिणी राज्यों में धर्म के प्रति बढ़ती उदासीनता की भी झलक मिलती है। वहीं जो लोग हिंदू बन रहे हैं उनमें शादी के बाद ऐसा करने वालों की अधिक संख्या है।
धर्म बदलकर ईसाई बने तीन चौथाई हिंदू दक्षिणी राज्यों से
सर्वेक्षण में शामिल 0.4 प्रतिशत लोगों ने माना कि वह हिंदू धर्म बदलकर ईसाई बने हैं। जबकि 0.1 प्रतिशत ईसाईयों ने धर्म बदला है। धर्म बदलकर ईसाई बने तीन चौथाई हिंदू (74 प्रतिशत) दक्षिणी राज्यों से हैं। सर्वेक्षण की अवधि के दौरान इसमें हिस्सा लेने वाले दक्षिण भारतीयों में ईसाई धर्म मानने वाले की संख्या में मामूली बढ़त देखी गई। 6 प्रतिशत ने माना कि वे ईसाई धर्म में पले बढ़े वहीं 7 प्रतिशत ने यह कहा कि वे वर्तमान में ईसाई धर्म को मानते हैं।
अनुसूचित जाति व जनजातियां हिंदू धर्म बदलकर बन रहीं ईसाई
सर्वे में शामिल ईसाई मत को अपनाने वाले 16% लोग देश के पूर्वी हिस्से (बिहार, झारखंड, ओडिसा व पश्चिम बंगाल) से आते हैं। यहां इस धर्म को अपनाने वाले 64% लोग अनुसूचित जनजाति से हैं। अगर सर्वेक्षण को आधार बनाकर राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो धर्म बदलकर ईसाई बने हिंदुओं में अनुसूचित जाति (48%), अनुसूचित जनजाति (14%) अथवा अन्य पिछड़ी जाति (26%) का बड़ा हिस्सा है।
धर्म के प्रति मुस्लिम अधिक आस्थावान
सर्वेक्षण में यह बात भी निकलकर आई कि ज्यादातर भारतीयों की धर्म में गहरी आस्था है। भारतीय मुस्लिमों के जीवन में हिंदुओं की तुलना में धर्म की भूमिका अधिक है (91% बनाम 84%)। मुस्लिमों में हिंदुओं की अपेक्षा अपने धर्म के बारे पर्याप्त जानकारी रखने का दावा करने वालों की संख्या भी अधिक है (84% बनाम 75%)। लगभग सभी धर्मावलंबियों में नियमित पूजा पाठ करने वालों की बड़ी संख्या है। ईसाईयों में यह सबसे अधिक है (77%) बावजूद इसके कि धर्म को जीवन में महत्वूपर्ण बताने वालों में उनका हिस्सा कम है (76%)। ज्यादातर हिंदू व जैन भी नियमित प्रार्थना (59% व 73%) और दैनिक पूजा पाठ करते हैं (57% व 81%), घर अथवा मंदिर में।
दक्षिण भारतीयों के जीवन में धर्म की भूमिका सीमित
देश के किसी अन्य हिस्से के मुकाबले दक्षिण भारतीयों के जीवन में धर्म की भूमिका सीमित है (69%), यहां आधे से भी कम लोग नियमित पूजा-पाठ करते हैं। दक्षिण भारत में 10 में से 3 हिंदू (30%) ही रोज पूजा पाठ करते हैं जबकि शेष भारत के लिए यह आंकड़ा 68% है।
विवाह के बाद अपनाया हिंदू धर्म
हिंदू धर्म को मानने वालों की संख्या में कोई गुणात्मक बदलाव देखने को नहीं मिला। 0.7 प्रतिशत लोगों ने माना कि वे पले बढ़े हिंदू धर्म में लेकिन अब किसी और धर्म को मानते हैं। वहीं 0.8 प्रतिशत ने कहा कि वे हिंदू धर्म में पले बढ़े नहीं लेकिन अब उसका पालन करते हैं, इनमें से बड़ी संख्या उनकी है जिनका विवाह किसी हिंदू से हुआ है। इसी तरह 0.3 प्रतिशत लोगों ने बचपन से अब तक इस्लाम छोड़ने की बात मानी वहीं लगभग इतने ही लोगों ने उसे अपनाने की बात कही।
कैसे किया गया सर्वे
प्यू रिसर्च सेंटर का भारत में धर्म पर सर्वेक्षण 30000 वयस्कों से किए साक्षात्कार पर आधारित है, जो 2019 के अंत से
2020 के आरंभ (कोविड महामारी के पहले) के बीच किए गए। इसमें धर्म परिवर्तन के असर को समझने के लिए दो सवाल शामिल किए गए थे। पहला आपका वर्तमान धर्म क्यां है? दूसरा आप किस धर्म में पले बढ़े? सर्वे में शामिल 98 प्रतिशत लोगों ने दोनों ही सवालों का जवाब एक जैसा दिया। 82 प्रतिशत ने जवाब में कहा कि वे पले बढ़े हिंदू धर्म में, वहीं लगभग इतने ही लोगों ने माना कि वह वर्तमान में हिंदू धर्म मानते हैं। अन्य धार्मिक समूहों में भी कमोबेश ऐसा ही देखा गया। सर्वे धार्मिक आबादी के प्रतिशत में बदलाव के पीछे धर्मांतरण की बजाय विभिन्न धार्मिक समूहों में फर्टिलिटी रेट या प्रजनन दर को कारण मानता है।
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