ऐसे निकाला हल
मालवेयर टेक के नाम से काम करने वाले इस शख्स ने रैनसमवेयर की एक कमजोरी का पता लगाया और उसी के बूते इस वायरस को फैलने से रोका। 22 साल का यह लड़का एक आईटी कंपनी में काम करता है। हालांकि लड़के का नाम अभी गोपनीय रखा गया है। मालवेयर की मानें तो उनकी टीम इस साइबर हमले की जांच में जुटी थी। तभी उन्होंने इस वायरस का एक किल स्विच पा लिया, जो रैंसमवेयर को रोकने में कामयाब हो गया। दरअसल मालवेयर एक खास वेब एड्रेस 'gwea.com' से लगातार कनेक्ट होने की कोशिश कर रहा है। जिसकी वजह से नए कंप्यूटर में प्रॉब्लम आ रही थी।
686 रुपये में मिल गया हल
रिपोर्ट की मानें तो इस वेब एड्रेस से जुड़ने की कोशिश के दौरान इसके अक्षरों में कुछ गड़बड़ थी और ये रजिस्टर्ड नहीं थे। ऐसे में मालवेयर टेक ने इस वेब एड्रेस को सिर्फ 686 रुपये में रजिस्टर कर लिया। रजिस्टर करने के बाद उन्होंने ये पता लगाया कि यह वायरस किन-किन कंप्यूटर तक अपनी पहुंच बना रहा है। इसके बाद इसे एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर में जाने से रोका जा सका। कंपनी की मानें तो उस लड़के को ईनाम के तौर पर एक हफ्ते की छुट्टी दे दी है।
कौन-कौन देश हैं चपेट में
दुनिया के 100 देश इस साइबर अटैक की चपेट में हैं। हैकर्स ने सबसे ज्यादा तगड़ा झटका रूस को दिया है। सबसे पहले ब्रिटेन के हेल्थ सिस्टम को बेअसर किया। उसके बाद अमेरिकी इंटरनेशनल कूरियर सर्विस फेडेक्स के सिस्टम को लॉक कर दिया। इसके अलावा भारत, स्वीडन, ब्रिटेन और फ्रांस समेत कई बड़े-बड़े देशों में यह साइबर अटैक हुआ है।
इस तकनीक से किया हैक
मीडिया रिपोर्ट्स से मिल रही जानकारी के मुताबिक हैकर्स ने अमेरिका की नेशनल सिक्यॉरिटी एजेंसी जैसी तकनीक का इस्तेमाल कर इतने बड़े पैमाने पर साइबर अटैक किया। माना जा रहा है कि अमेरिका की नेशनल सिक्यॉरिटी एजेंसी जिस तकनीक का इस्तेमाल करती थी वह इंटरनेट पर लीक हो गई थी और हैकर्स ने उसी तकनीक का इस्तेमाल किया है।
जानिए क्या है रैंसमवेयर?
रैंसमवेयर एक कंप्यूटर वायरस है जो कंप्यूटर्स फाइल को बर्बाद करने की धमकी देता है। धमकी दी जाती है कि यदि अपनी फाइलों को बचाना है तो फीस चुकानी होगी। यह वायरस कंप्यूटर में मौजूद फाइलों और वीडियो को इनक्रिप्ट कर देता है और उन्हें फिरौती देने के बाद ही डिक्रिप्ट किया जा सकता है। बता दें कि इसमें फिरौती चुकाने के लिए समय सीमा निर्धारित की जाती है और अगर समय पर पैसा नहीं चुकाया जाता है तो फिरौती की रकम बढ़ जाती है। हैकर्स ने यह फिरौती बिटक्वाइन के रूप में मांगी है। ताकि उन्हें आसानी से ट्रैक न किया जा सके।
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