संघ कई संगठनों के जरिए समाज में अपने विचारों का प्रसार करता है.
संघ के उद्देश्यों और उसके संगठनों के काम करने के तरीकों पर प्रकाश डाल रहे हैं संघ के वरिष्ठ विचारक एमजी वैद्य.
एमजी वैद्य का विश्लेषण
पहली बात यह है कि आरएसएस को पूर्ण रूप से समझना आसान नहीं, थोड़ा कठिन ही है.
क्योंकि मौजूदा संस्थाएं कहिए या संगठन कहिए, उनके ढांचे में आरएसएस बैठता नहीं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, संघ जैसा ही है.
संघ का उद्देश्य पूरे समाज को एक करना है. समाज के अंदर किसी संगठित गुट या वर्ग को खड़ा करना, यह उसका उद्देश्य नहीं है.
समाज अनेक क्षेत्रों के माध्यम से अपना जीवन चलाता है. राजनीति इसी तरह के क्षेत्रों में से एक क्षेत्र है. महत्व का क्षेत्र है, किन्तु एकमात्र क्षेत्र नहीं.
सामाजिक जीवन के और भी क्षेत्र होते हैं, जैसे धर्म, शिक्षा, उद्योग, व्यापार, कृषि आदि.
समाज के कई घटक भी होते हैं. महिलाएं हैं, विद्यार्थी हैं, उद्योगपति हैं, तो मजदूर भी हैं. ग्रामवासी हैं, वनवासी हैं, वकील हैं, डॉक्टर हैं, ऐसे कई क्षेत्र होते हैं.
संगठन
पूरे समाज को एक करने का मतलब है, इन सब क्षेत्रों का संगठन. मेरी जानकारी में उन क्षेत्रों की, जहां संघ के कार्यकर्ताओं की पहुँच है, संख्या 32 है.
सारे क्षेत्रों को संघ ने एकदम से छुआ नहीं है. पहले विद्यार्थी जगत में विद्यार्थी परिषद बनी.
साल 1951 में डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी, तत्कालीन सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर जी से मिलने आए.
एक नई राष्ट्रीय विचार वाली पार्टी की स्थापना की इच्छा उन्होंने व्यक्त की और संघ की ओर से कुछ कार्यकर्ताओं को देने का अनुरोध किया.
डॉक्टर मुखर्जी के कथन से गोलवलकर जी सहमत हुए और उन्होंने पंडित दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, नानाजी देशमुख, जगन्नाथराव जोशी, सुंदर सिंह भंडारी, कुशाभाऊ ठाकरे जैसे कुछ कार्यकर्ता दिए और भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई.
फिर दो-तीन साल बाद, संघ के एक वरिष्ठ प्रचारक दत्तोपंत ठेंगड़ी को लगा कि मजदूरों के क्षेत्र में काम करना चाहिए. उनको अनुमति मिली. ठेंगड़ी जी को मजदूर क्षेत्र में काम करने का अनुभव नहीं था.
इसलिए पहले वे 'इंटक' में गए. वहां से अनुभव लेकर उन्होंने 1954 या 1955 में भारतीय मजदूर संघ की स्थापना की.
सांस्कृतिक मूल्य
उत्तर प्रदेश से संघ के एक वरिष्ठ प्रचारक भाउ राव देवरस को लगा कि अपने सांस्कृतिक मूल्यों को ध्यान में रख कर स्कूल होने चाहिए.
उन्होंने सरस्वती शिशु मंदिर की श्रृंखला शुरू की. शिशु मंदिरों के इतर भी अनेक स्कूल और कॉलेजों का निर्माण हुआ. उनकी 'विद्या भारती' अखिल भारतीय संस्था बनी.
इसी समय बालासाहब देशपांडे नामक सरकारी अधिकारी गोलवलकर जी से मिलने आए.
वे छत्तीसगढ़ के जशपुर में 'ट्राइबल ऑफिसर' थे. वहां के इसाई मिशनरियों की राष्ट्र को हानि पहुंचाने वाली कार्रवाइयां देखी.
उन्होंने उनका विरोध किया, तो सरकार पर दबाव डालकर उनका वहां से तबादला कर दिया.
उस समय वे गोलवलकर जी से मिलने आए. गोलवलकर जी ने उन्हें सलाह दी कि आप सरकारी नौकरी छोड़ दें, जसपुर में ही वकालत करें और वनवासी बंधुओं की सेवा करें.
उन्होंने वह सलाह मान ली और वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना हुई.
उनकी सहायता के लिए गोलवलकर ने उनको दो कार्यकर्ता दिए. करीब दो दशकों बाद यह वनवासी कल्याण आश्रम अखिल भारतीय संगठन बना.
संघ का उद्देश्य
'एकल विद्यालय' यह इस आश्रम का एक महत्वपूर्ण प्रकल्प है. और भी संगठन उस से जुड़ गए.
अब पचास हज़ार से ऊपर 'एकल विद्यालय' चल रहे हैं. धर्म के क्षेत्र में स्वयं गोलवलकर ने ही पहल की और विश्व हिंदू परिषद की स्थापना हुई.
शंकराचार्यों, महन्तों, मठाधीशों को उन्होंने एक मंच पर लाया. किन्तु वे उसके अध्यक्ष नहीं बने.
पहले विहिप के अधिवेशन के अध्यक्ष थे राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज और उसके अग्रगण्य नेताओं में थे मुंबई के स्वामी चिन्मयानंद और कर्नाटक के स्वामी विश्वेशतीर्थ महाराज.
संगठनों का यह वटवृक्ष फिर बढ़ता ही गया. हरेक संगठन स्वतंत्र है और स्वायत्त है. सभी संगठनों का अलग संविधान है. सभी की धनसंग्रह की अलग विधि है.
संघ का उद्देश्य यही है कि प्रत्येक संगठन को हमेशा राष्ट्र को सर्वोपरि मानना चाहिए. सभी संगठनों की गतिविधियां राष्ट्र की पोषक रहें, यही संघ की इच्छा है.
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