फिल्म घूमती है दो ठग चेतन चौहान (संजय दत्त) और भगत भोसले (अजय देवगन) के इर्द-गिर्द, जो कार, सूटकेस और जिस पर भी आसानी से हाथ मार सकते हैं, चुराते फिरते हैं. जल्दी ही दोनों एक-दूसरे से मिलते हैं और एक-दूसरे को धोखा देना शुरू करते हैं. उन्हें एक ही लडक़ी खुशी (कंगना रनाउत) से प्यार हो जाता है, जो अपने आस-पास सिक्योरिटी गाड्र्स लिए बिकिनी में घूमती-फिरती है. वह कौन है और इतने सिक्योरिटीगाड्र्स लेकर क्यों घूमती हैं, डायरेक्टर ने ऑडिएंस को ये बताने की जरूरत भी नहीं समझी.
खराब सिचुएशनल कॉमेडी अलग बात है लेकिन इसे बेसिर-पैर के डायलॉग्स के साथ जोडऩा अलग. काश डायरेक्टर संजय छैल ने थोड़ा सा सेंस ऑफ ह्यïूमर यूज किया होता (जैसा उन्होंने खूबसूरत जैसी फिल्मों में यूज किया था). क्योंकि ह्यïूमर की कमी में जो अब बनकर तैयार हुआ है वह कहीं से भी फनी नहींहै ना ही हमें हंसाने में कामयाब होता है: सच कहें तो जबरदस्ती क्रिएट की हुई सिचुएशंस बॉलीवुड की कॉमेडी के गिरते लेवल पर शर्मिंदा होने पर मजबूर कर देती हैं. संजय दत्त ने काफी इस तरह के रोल किए हैं इसलिए उनके लिए इतना खराब काम करना जरूर मुश्किल रहा होगा. उनका गूफी चार्म अभी भी बरकरार है लेकिन बार-बार वही देखना थकाऊ लगने लगा है. अजय देवगन ने कहीं-कहीं इस सेंसलेस फिल्म में सेंस डालने की कोशिश की है.
कंगना की परफॉर्मेंस आपको रोने पर मजबूर कर देगी: उनका अजीब सा कैरेक्टर और अजीबोगरीब एक्सेंट दोनों ही. लीसा हेडेन जिन्होंने इस फिल्म से बतौर चीप कॉल गर्ल डेब्यू किया है, उन्हेें एक बार अपनी करियर च्वॉइसेस के बारे में फिर से सोचने की जरूरत है. अगर आप ये फिल्म देखने का प्लान बना रहे हैं एग्जिट के पास वाली सीट लीजिएगा क्योंकि कहीं-कहीं आपको उठकर भाग जाने का मन करेगा.
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