'रा’ का अर्थ है रोशनी, रश्मि और 'म’ का अर्थ है मैं। रेज और रेडियंस जैसे अंग्रेजी शब्दों की उत्पत्ति राम से हुई है। राम का अर्थ है मेरे भीतर का प्रकाश, मेरे दिल के भीतर का प्रकाश। आप के भीतर का ओज ही राम है। इस सृष्टि के कण-कण में और हर प्राणी में समाया जो ओज है, वही राम है।
भगवान राम अपनी सत्यनिष्ठा के लिए जाने जाते हैं, उनको मर्यादा पुरुषोत्तम और एक आदर्श राजा माना जाता है। महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि यदि तुम मुझ से सब कुछ छीन लो तो मैं जी सकता हूं। लेकिन यदि तुम मुझसे राम को दूर ले जाओगे तो मैं नहीं रह सकता। भगवान राम ने दशरथ और कौशल्या के यहां जन्म लिया था। दशरथ का अर्थ है दस रथ। दस रथ पांच ज्ञान इंद्रियों और पांच कर्म इंद्रियों का प्रतीक है। कौशल्या का अर्थ है 'कौशल’। यानी दस रथों को कुशलतापूर्वक नियंत्रित करने के लिए राम का जन्म होता है। पांच ज्ञान इंद्रियों और कर्म इंद्रियों के कुशल प्रयोग से भीतरी ओज प्रकट होता है।
राम का जन्म 'अयोध्या’ में हुआ, जिसका अर्थ है जहां कोई युद्ध नहीं हो सकता। जब मन में कोई विवाद नहीं होता है, तब प्रकाश का उदय होता है। बस इतना जान लो कि तुम ओजवान हो। यह पूरी सृष्टि पांच तत्वों और दस इंद्रियों से बनी हुई है। क्या अधिक महत्वपूर्ण है विषय वस्तु या ज्ञान इंद्रियां? विषय वस्तुओं की तुलना में ज्ञान इंद्रियां अधिक महत्वपूर्ण हैं। तुम्हारी आंखें टीवी से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। कान संगीत या ध्वनि की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हैं। कई लोग यह समझ नहीं पाते हैं, वे समझते हैं कि वस्तु इंद्रियों से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। वे जानते हैं कि बहुत ज्यादा टीवी देखना आंखों के लिए अच्छा नहीं है। तो मन की गति को कैसे रोका जाए। इसका उत्तर है ध्यान और श्वास प्रक्रियाएं। इससे लोगों को परमानन्द का अनुभव मिल सकता है।
परमानन्द में रहना पूर्ण विश्राम है। इससे अच्छा स्वास्थ्य मिलने के साथ ही तुम्हारे मन, बुद्धि, भावनाएं और भीतर के आकाश की शुद्धि होती है। उस आकाश की जो तुम्हारे जीवन को संचालित करता है। तुम्हारे सभी विचार और भावना इसी आकाश से उभरते हैं, जिसकी तुम एक कठपुतली हो। जब तुम्हारी भावनाएं उभरने लगती हैं तो तुम अपनी ही भावनाओं के शिकार हो जाते हो। अगर तुम्हारी विचारशैली पक्षपातपूर्ण है तो तुम्हारा व्यवहार भी वैसा ही हो जाता है। हम शायद ही कभी अपनी भावनाओं को, अपनी विचारशैली को, अपने भीतर के संसार को देखने के लिए समय निकालते हैं। हम सोचने से पहले ही अपना कदम उठा लेते हैं। हम अपनी भावनाओं को शांत किये बिना ही प्रतिक्रिया कर देते हैं।
न ही घर में और न ही स्कूल में हमको अपने लालच, क्रोध, ईष्र्या, कुंठा और रोष को संभालना सिखाया जाता है। कोई भी हमें अपने मन को संभालना नहीं सिखाता, जिसके द्वारा सभी कार्य किये जाते हैं। यह जानने के लिए कि यह पृथ्वी बहुत छोटी है और हम सब एक दूसरे के लिए हैं उसके लिए बाह्य अंतरिक्ष में जाने की जरूरत नहीं है। हम अपने भीतर के अंतरिक्ष में जाकर यह सजगता पा सकते हैं। हमें दुख से छुटकारा पाना है। जब छोटा मन हावी रहता है तब दुख है और जब बड़ा मन हावी रहता है तब सुख है। छोटा मन खुशी का वादा देता है और तुम्हें खाली हाथ छोड़ देता है।
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इंद्रियों से ज्यादा महत्वपूर्ण है मनुष्य का मन
मन इंद्रियों से ज्यादा महत्वपूर्ण है। जब मन की परवाह नहीं करते हुए केवल इंद्रियों पर ध्यान दिया जाता है तो तुम अवसादग्रस्त हो जाते हो। जब तुम मन से ज्यादा वस्तुओं के लिए लालायित होते हो। यह अवसाद का कारण बनता है। मन की गति इच्छाओं और राग व द्वेष से बनती है-यह होना चाहिए व यह नहीं होना चाहिए से। इस पूरे ब्रह्माण्ड को चलाने वाला बड़ा मन है और हमारे जीवन को चलाने वाला छोटा मन है।
- श्री श्री रविशंकर
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