एक प्रसिद्ध मान्यता है कि क्रोध का आरम्भ मूढ ̧ता से व अंत पश्चाताप से होता है। इसी प्रकार से गीता में भी कहा गया हैं की क्रोधाद्भवति सांमोहात्स्मृतिविभ्रम:। स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।2।63।। आर्र्थात क्रोध से संमोह (मूढ़भाव) उत्पन्न होता है, संमोह से
स्मृति भ्रम होता है (भान भूलना), स्मृतिभ्रम से बुद्धि अर्थात ञ्जरूाानशक्ति का नाश होता है, और बुद्धिनाश होने से सर्वनाश हो जाता है। चिकित्सा विञ्जरूाान के अनुसार भी क्रोध का हमारी ग्रन्थियों पर, हमारे रक्त पर, हमारी नसों पर व हमारी पाचन शक्ति पर अत्यंत बुरा असर पड ̧ता है। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति की कार्यक्षमता भी नष्ट होती है। मनोविञ्जरूाान के अनुसार भी क्रोधी व्यक्ति के हाथ कांपते हैं, वह स्थिर भी नहीं रह पाता, उसका स्वयं पर से नियंत्रण भी हट जाता है, इसलिए उसकी कार्यशक्ति नष्ट हो जाती है।
कहा गया है कि क्रोध पानी के मटके भी सुखा देता है। अर्थात जहां क्रोध की गर्म लू चलती हो, वहां शीतल जल का अस्तित्व भला कब तक रहेगा। क्रोधी व्यक्ति सुनाने की शक्ति तो रखता है, परन्तु कुछ भी सुनने की शक्ति व धैर्य उसमें जरा भी नहीं होता और उसकी यही कमजोरी उसे जीवन के हर मोड़ पर हार का सामना करवाती है और उसका सुख-चैन छीन लेती है। ऐसा व्यक्ति अपनी ही जलाई हुई क्रोधाग्नि में स्वयं भी जलता है व दूसरों को भी जलाता है। वह अपने घर में भी आग लगाता है और दूसरों के घर में भी। कहते हैं की क्रोध आने का मूल कारण है 'नकारात्मक विचारधारा' जी हां! जिन लोगों को बार-बार असफलता मिलती है, बार-बार अपमान सहना पड़ता है और बार-बार मनोवांछाएं अधूरी छोड़नी पड़ती हैं, उनके गुप्त मन में एक प्रकार का आघात पहुंचता है।
एक प्रकार का मानसिक जख्म हो जाता है और इन्हीं सब वजहों से फिर वे लोग अपनी नकारात्मक भावनाओं को गुस्से के रूप में बाहर निकालते हैं । जब हम दूसरों से अधिक अपेक्षाएं रखने लगते हैं और जब वे पूरी नहीं होती, तो निराशा के कारण हम तनाव ग्रस्त हो जाते हैं। दूसरों पर क्रोध करने लगते हैं। ऐसा करते समय हम यह भूल जाते हैं कि हम स्वयं भी तो निपुण नहीं हैं, हम भी तो गलतियां करते हैं और दूसरों की अपेक्षायें पूरी नहीं कर पाते हैं। अत: हमें इस हकीकत को स्वीकार करना चाहिए की इस दुनिया में कोई भी वास्तव में सर्वगुण सम्पन्न नहीं है। इसलिए हरेक को उसकी त्रुटियों के साथ सहर्ष स्वीकार करने में ही हमारा सुख और शांति समाई हुई हैं।
इंटरव्यू देने जाएं तो हल्के रंग के वस्त्र पहनें, जाॅब और प्रोफेशनल रिश्ते होंगे मजबूत
स्मरण रहे! क्रोध की अवस्था ड्डर्जा की एक ऐसी अवस्था है जिसका शमन रूपांतरण से ही संभव है। अत: क्रोध को बलपूर्वक दबाने की कोशिश करना महामुर्खता है। ऋिष-मुनियों के अनुसार मनुष्य आत्मा के शरीर और मन पर क्रोध रूपी महाव्याधि का जो दूषित असर होता है, उससे मुक्ति पाने के लिए आध्यात्मिकता का सहारा लेना आवश्यक है, जिससे कि उन्हें आत्मिक शांति मिले और क्रोध का स्थान प्रेम, सहनशीलता, प्रेम, पवित्रता और आपसी समझ जैसे गुण ले लें। क्योंकि क्रोध को क्रोध से नहीं अपितु दैवीय गुण एवं शांतिरूपी ब्रह्मात्र से ही जीता जा सकता हैं।
राजयोगी ब्रह्माकुमार योगी
सारस ने बचाई भेड़िये की जान तो मिला ये ईनाम, जानें कहानी क्या सीख देती है
Spiritual News inextlive from Spiritual News Desk