सदाबहार अभिनेता अमिताभ बच्चन की फिल्म 'कुली' की स्क्रीप्ट भी रेल के इर्द-गिर्द ही थी. इसी फिल्म का एक बेहद लोकप्रिय गाना था- 'न तेरा कसूर, न मेरा कसूर, न तून सिग्नल देखा, न मैंने सिग्नल देखा, एक्सीडेंट हो गया रब्बा-रब्बा'. संयोगवश, बुधवार को रेल बजट पेश होने के बाद जो स्थितियां पैदा हुईं, वे इस गाने की याद ताजा कर गईं.

त्रिवेदी का यह पहला रेल बजट था. वह तृणूमल कांग्रेस की अध्यक्ष व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बेहद करीबी रहे नेताओं में माने जाते हैं लेकिन बतौर रेल मंत्री उन्होंने जब रेल यात्री किराया बढ़ाए जाने की घोषणा की तो यह ममता को कुछ यूं नागवार गुजरा कि उन्होंने नंदीग्राम में सार्वजनिक मंच से दावा कर डाला कि 'सरकार को मूल्य वृद्धि वापस लेनी ही होगी'.

केंद्र सरकार के हर फैसले पर सवाल खड़े कर उसकी फजीहत कराने में आगे रहने वाली ममता एक बार फिर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की फजीहत का कारण बन रही हैं. ऐसे में सरकार के सामने तो संकट पैदा हो ही गया है, ममता पर भी सवाल उठने लगे हैं.

जिस रेल बजट की प्रधानमंत्री सराहना कर रहे हों, विपक्षी दल सिर्फ 'विरोध के लिए विरोध' कर रहे हों, उस पर 'दीदी' बिफर गई हैं लेकिन त्रिवेदी हैं कि टस से मस नहीं हो रहे. त्रिवेदी ने ममता के ऐतराजों के बावजूद कहा कि लोगों में गलतफहमी है कि रेल मंत्रालय राईटर्स बिल्डिंग से चलता है, जबकि ऐसा है नहीं. बकौल त्रिवेदी, "किराया बढ़ाने का फैसला मेरा अपना फैसला था. इस सिलसिले में ममता बनर्जी से कोई चर्चा नहीं हुई."

त्रिवेदी ने तो एक समाचार चैनल से बातचीत में इतना तक कहा, "मेरे लिए देश सर्वोपरि है, न कि पार्टी." उन्होंने आगे कहा, "मैं इस्तीफे से नहीं घबराता." ममता बनर्जी के बिफरने की सबसे बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि पहले तो त्रिवेदी ने किराया बढ़ाए जाने पर उनसे कोई चर्चा नहीं की, दूसरा यह कि पार्टी के विरोध के बावजूद उन्होंने किराया वापस लेने से परोक्ष रूप से इंकार कर दिया और  तीसरा यह कि ममता बनर्जी द्वारा कथित तौर पर कोलकाता तलब किए जाने के बाद उन्होंने वहां जाने से इंकार कर दिया है.

बहरहाल, त्रिवेदी को यदि इस्तीफा देना पड़ा तो रेल बजट पेश करने के बाद अपने पद से इस्तीफा देने वाले देश के इतिहास में वह पहले ऐसे रेल मंत्री होंगे.

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