जनरल मेडिकल काउंसिल ने 5,000 प्रत्याशियों के परिणामों की समीक्षा के दौरान ऐसा पाया. इससे पहले नस्लीय अल्पसंख्यक प्रत्याशियों ने शिकायत की थी कि यह परीक्षा पक्षपातपूर्ण है.
ब्रिटेन में किसी डॉक्टर को सामान्य मेडिकल प्रैक्टिस करने के लिए जीपी परीक्षा पास करनी होती है.
इस जांच की अगुवाई करने वाले प्रोफेसर अनीज़ इस्माइल ने कहा है कि नतीजों की व्याख्या "अनजाने में किए गए पक्षपात" के रूप में की जा सकती है.
लेकिन इस परीक्षा का आयोजन करने वाले रॉयल कॉलेज ऑफ जीपी (आरसीजीपी) ने परीक्षा के पक्षपातपूर्ण होने से इनकार किया है.
कॉलेज की सफाई
"इस क्षेत्र में काम करने वाले हम में से कई लोगों ने पाया कि अनजाने में पक्षपात की समस्या है."
-प्रोफेसर अनीज़ इस्माइल, जांचकर्ता
आरसीजीपी की अध्यक्ष डॉक्टर क्लेयर गेराडा ने बताया है कि कॉलेज समानता और विविधता के मसलों पर "बेहद गंभीरता" के साथ ध्यान देता है.
उन्होंने कहा है कि कॉलेज जोरदार ढंग से इस आरोप का खंडन करता है कि परीक्षा किसी भी रूप में भेदभावपूर्ण है.
ब्रिटेन में 2010 में क्लीनिकल स्किल असेस्मेंट (सीएसए) के रूप में एक प्रायोगिक परीक्षा की शुरुआत की गई थी, जिसका मकसद सामान्य प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों का मूल्यांकन करना था.
इस परीक्षा को पास करने के लिए उन्हें चार मौके मिलते हैं.
इस परीक्षा की छह महीने तक समीक्षा करने के दौरान प्रोफ़ेसर इस्माइल ने पिछले दो साल के दौरान सीएसए परीक्षा में बैठने वाले 5,000 से अधिक उम्मीदवारों के आंकड़ों का विश्लेषण किया.
अनजानी गलती
उन्होंने बीबीसी को बताया, "इस क्षेत्र में काम करने वाले हममें से कई लोगों ने पाया कि अनजाने में पक्षपात की समस्या है."
प्रोफ़ेसर इस्माइल ने, "इसलिए मैं सोचता हूं कि गोरे ब्रितानी स्नातकों की तुलना में नस्लीय अल्पसंख्यक ब्रिटिश स्नातकों के साथ अलग ढंग से बर्ताव किया जा रहा है और शायद इसका उन्हें आभास भी न हो."
उन्होंने कहा, "मैं यह नहीं सोचता हूं कि परीक्षक ऐसा कहते हैं कि 'हम जातीय अल्पसंख्यकों को पसंद नहीं करते हैं' किसी भी मायने में ऐसा नहीं है."
इस्माइल ने बताया कि, "यह अनजाने में हुई घटना है और हमें इसके प्रति सजग रहने की ज़रूरत है."
उन्होंने परीक्षा में भेदभाव को रोकने के लिए कई सिफारिशें की हैं, जिसमें नस्लीय अल्पसंख्यक समुदाय के परीक्षकों को अधिक संख्या में नियुक्त करने का सुझाव शामिल है.
आरसीजीपी की डॉ. क्लेयर गेराडा ने कहा है कि "हमने पहले ही सभी प्रत्याशियों के लिए निष्पक्ष और समतामूलक परीक्षा आयोजित करने के लिए व्यापक उपाय किए हैं."
भेदभाव का कारण
उन्होंने कहा, "इस परीक्षा को उन डॉक्टरों के लिए बनाया गया है जो स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस करना चाहते हैं. यह ऐसी परीक्षा नहीं है जिसे सभी को पास करना है. मैं सोचती हूं कि यह बेहद महत्वपूर्ण मसला है."
गेराडा बताती हैं कि, "हम जानते हैं कि यह एक संस्कृति विशेष की परीक्षा है. यही वजह है कि अगर आप इस देश में पैदा हुए हैं और पले-बढ़े हैं तो आपको फायदा मिलेगा."
उन्होंने कहा कि, "अगर मैं भारत जाऊंगी और भारत में डॉक्टरों के प्रैक्टिस के लिए तैयार की गई परीक्षा में बैठूंगी तो मुझे प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना ही पड़ेगा."
इस बीच जीपी डॉक्टर उना कोल्स ने कहा, "चूंकि आमतौर पर परीक्षक गोरे होते हैं और हो सकता है कि गोरे परीक्षकों को भी इस बात का आभास न हो कि उनके अंदर विदेशियों के लिए भेदभाव छिपा है."
बदलाव की उम्मीद
उन्होंने कहा कि उदाहरण के लिए अगर वो एक भारतीय उच्चारण सुनते हैं तो हो सकता है कि वो उसे ढंग से समझ न पाएं और वो अवचेतन रूप से पूर्वाग्रह का शिकार हो जाएं.
ब्रिटिश एसोसिएशन ऑफ फ़िजिशियन ऑफ़ इंडियन ओरिजिन (बीएपीआईओ) के अध्यक्ष रमेश मेहता का कहना है कि सैकड़ों डॉक्टरों का करियर इसलिए बर्बाद हो जाता है क्योंकि वो बार-बार सीएसए परीक्षा में नाकाम रहते हैं.
उन्होंने कहा, "वो संस्थागत भेदभाव के शिकार हैं और अत्यधिक प्रशिक्षण और ज्ञान के बाद भी भेदभावपूर्ण ढंग से परीक्षा में फेल हो जाते हैं."
जनरल मेडिकल काउंसिल ने कहा है कि वह स्वतंत्र समीक्षा के नतीजों को वह गंभीरता से ले रहा है.
International News inextlive from World News Desk