फिल्म : रात अकेली है
कलाकार : नवाजुद्दीन सिद्दीकी, राधिका आप्टे, श्वेता त्रिपाठी, आदित्य श्रीवास्तव, श्रीधर दुबे, ईला अरुण, खालिद तैयब जी, निशांत दहिया, स्वानंद किरकिरे, पद्मावती राव, शिवानी रघुवंशी, तिग्मांशु धूलिया।
निर्देशक : हनी त्रेहन
लेखन : स्मिता सिंह
निर्माता : अभिषेक चौबे, रोनी स्क्रूवाला
रेटिंग : तीन स्टार
ओटीटी : नेट फ्लिक्स
क्या है कहानी : रात को यहां मेटाफर के रूप में इस्तेमाल किया गया है। यहां रात अकेली नहीं है। अपने आगोश में कई सच छुपाये हुए है और वे सारे घिनौने सच हैं। इस फिल्म के पुरुष पात्र महिलाओं पर धाक जमा रहे होते हैं और अय्याश हैं। महिलाएं बार-बार दबाई जा रही हैं। जटिल (नवाज) की शादी की चिंता मां (ईला) को सताती रहती है। वह जटिल के काले रंग से परेशान है। इसी बीच रघुवीर सिंह (खालिद तैयब जी), जो कि शहर का ठाकुर है, उसका खून हो जाता है। उसने अपने से बेहद छोटी उम्र की लड़की राधा (राधिका आप्टे) से जबरन शादी कर ली है। परिवार में करुणा (श्वेता) बेटी, वसुधा भतीजी (शिवानी), विक्रम (निशांत) भतीजा, भाभी (पद्मावती), साला (स्वानंद किरकिरे) शेष रह जाते हैं। केस जटिल (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) को हैंड ओवर कर दिया जाता है। जटिल एक पुलिस ऑफिसर (श्रीधर दुबे) के साथ मिल कर केस सुलझाने में लग जाते हैं। सबका शक राधा पर है, सब चाहते हैं कि उस पर ही खून का इल्जाम आये। मगर जटिल को पता है कि केस में पेंच है। कहानी में ट्विस्ट मुन्ना राजा (आदित्य श्रीवास्तव) की एंट्री से आता है। आखिर किसने मर्डर किया है और क्यों, सच जानने के बाद रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
क्या है अच्छा : लम्बे समय के बाद एक अच्छी मर्डर मिस्ट्री फिल्म दर्शकों के सामने आई है। हनी की यह पहली फिल्म है। उस लिहाज से उन्होंने एक बेहतरीन कहानी कही है। कहानी बोर नहीं करती। थ्रिलर फिल्मों का क्लाइमेक्स मजेदार हो तो संतुष्टि मिलती है। इस फिल्म में वह बात है। फिल्म केवल पारिवारिक राजनीति पर नहीं बल्कि एक बेहद संवेदनशील मुद्दे को छूती है। बाल यौन शोषण के अलावा शादी में रंगभेद पर भी बात रखी गई है।
क्या है बुरा : राधिका आप्टे उत्तर प्रदेश को लहजे में फिट नहीं बैठ पाई हैं। स्वानंद किरकिरे का किरदार अचानक फिल्म से गायब हो जाता है। कहानी के नैरेटिव में थोड़ी रफ्तार होती तो फिल्म और अच्छी हो सकती थी। तिग्मांशु के किरदार का औचित्य समझ ही नहीं आया। कहानी में कुछ और ट्विस्ट आते तो और मजा आता।
अदाकारी : नवाजुद्दीन सिद्दीकी एक गंभीर और ईमानदार, निडर पुलिस ऑफिसर की भूमिका में पूरी तरह जंचे हैं। पूरी फिल्म में उन्होंने शानदार संवाद बोले हैं और अच्छा एक्शन किया है राधिका का अभिनय कमजोर लगा, वह रस्टिक टच दे नहीं पाई हैं। इस फिल्म के असली हीरो फिल्म के सहायक कलाकार हैं। श्रीधर दुबे की प्रतिभा के इस फिल्म में सही इस्तेमाल हुआ है। नवाज के साथ उनकी जोड़ी दिलचस्प है। श्रीधर ने कुछ कमाल के दृश्य दिए हैं। श्वेता त्रिपाठी के हिस्से कम दृश्य आये हैं। उन्हें और स्क्रीन स्पेस मिल सकता था। निशांत दहिया, शिवानी और पद्मावती इस फिल्म की जान हैं। स्वानंद और तिग्मांशु को केवल नाम के लिए रखा गया है। ईला अरुण ने अच्छा मनोरंजन किया है। आदित्य श्रीवास्तव को और फिल्में करनी चाहिए। धाकड़ अभिनय किया है उन्होंने।
वर्डिक्ट : फिल्म को दर्शक निश्चित तौर पर पसंद करेंगे।
फिल्म समीक्षा : अनु वर्मा
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