बलिया का शेर चित्तू पांडेय
अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन अपने चरम पर था। ऐसे में कुछ क्रांतिकारी ऐसे थे जिन्होंने अंग्रेजों की सत्ता को चुनौती देने के लिए आजादी से पहले ही स्वतंत्र सरकार बनाने का निर्णय लिया। इतना ही नहीं उन्होंने अंग्रेजों को मुंह चिढ़ाते हुए अपनी स्वतंत्र सरकार बनाई भी। ये कोई और नहीं बलिया के शेर चित्तू पांडेय थे। जिनके नाम से भी अंग्रेज थर-थर कांपते थे। चित्तू पांडेय को प्यार से शेर-ए-बलिया यानि बलिया का शेर कहते हैं। बलिया के रट्टूचक गांव में 10 मई 1865 को जन्मे चित्तू पांडेय ने 1942 के ब्रिटिश विरोधी आंदोलन में स्थानीय लोगों की फौज बना कर अंग्रेजों को खदेड दिया था।
अंग्रेजों ने किए अत्याचार
19 अगस्त,1942 को वहां स्थानीय सरकार बनी तब कुछ दिनों तक बलिया में चित्तू पांडेय का शासन भी चला लेकिन बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने गदर को दबाने के क्रम में आंदोलनकारियों को उखाड फेंका। चित्तू पांडेय की मृत्यु 1946 में हुई थी। नाना पाटील भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी तथा सांसद थे। उन्हें क्रांतिसिंह के नाम से जाना जाता है। ब्रिटिश सत्ता को सीधे चुनौती देते हुए उन्होंने अंग्रेजी शासन प्रशासन को अस्वीकार कर दिया। 1940 में ही सांगली में प्रति सरकार नाम से एक स्वतंत्र सरकार की स्थापना की। उन्होंने सतारा में भी स्वतंत्र सरकार बनाई थी।
महिलाओं पर बरसाई गई गोलियां
मातंगीनी हजारा के नेतृत्व में हजारों की संख्या में लोग जिनमें से ज्यादातर महिलाएं थी अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारे लगा रहीं थीं। भीड़ को रोकने के लिए पुलिस की ओर से चलाई गई गोलियों में से एक गोली मातंगीनी को लगी। उन्होंने हाथों में तिरंगा लिए हुए अपने प्राण त्याग दिए। इसके बाद सुचेता कृपलानी ने इस मुहिम की कमान संभाली जो बाद में भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी। डॉ. राममनोहर लोहिया, जय प्रकाश नरायण, अरुणा आसफ अली देश के कई हिस्सों में अपनी-अपनी सरकार चला रहे थे।
National News inextlive from India News Desk
National News inextlive from India News Desk