पिता से सीखा संगीत का अर्थ
8 मई 1929 को बनारस के संगीत घराने में पैदा हुईं गिरिजा देवी बहुत कम उम्र में ही संगीत की विधा में माहिर हो गईं. उन्होंने संगीत की प्रारम्िभक शिक्षा अपने पिता रामदेव राय से ली, जिन्हें हारमोनियम मे महारत हासिल थी. हालांकि गिरिजा देवी ने अपने करियर की शुरुआत 1949 में ऑल इंडिया रेडियो इलाहाबाद से की. बताते चलें कि गिरिजा देवी के करियर में एक रुकावट भी आई, जब उनकी शादी हुई. ससुराल वालों ने गिरिजा देवी को पब्िलकली परफॉर्म करने से मना कर दिया, क्योंकि घर वाले नहीं चाहते थे कि कोई अपर क्लॉस महिला सबके सामने ऐसी कोई परफॉर्मेंस दे. हालांकि बाद में धीरे-धीरे वह पब्िलक कंसर्ट में हिस्सा लेने लगीं और एक बेहतरीन शास्त्रीय गायक बनकर उभरीं.
और बन गई 'ठुमरी की रानी'
शास्त्रीय संगीत में ठुमरी स्टाईल के गायक बहुत कम मिलते हैं. लेकिन गिरिजा देवी ने इस टिपिकल स्टाईल में महारत हासिल की और बन गई ठुमरी देवी. हालांकि इसके अलावा उन्होनें kajri, chaiti और tappa स्टाईल में भी गाना गाया है. गिरिजा देवी को साल 1972 में पद्मश्री और 1989 में पद्म भूषण अवार्ड से सम्मानित किया गया. इसके अलावा 1977 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड से भी नवाजा गया.
खत्म हो रहे घरानों की चिंता
5 साल पहले एक समाचार एजेंसी को दिए गए इंटरव्यू के दौरान ठुमरी देवी ने घरानों की परंपरा को लेकर चिंता जताई थी. गिरिजा देवी का मानना है कि, संगीत अब पूरी तरह से मिश्रण बन गया है. घरानों की परंपरा अब सिर्फ पुरानी पीढ़ी के कुछ लोगों ने कायम रखी हुई है. शास्त्रीय संगीत में माहिर गायिका गिरिजा देवी इस युवा पीढ़ी को भटका हुआ मानती हैं. ये सभी युवा कलाकार कम समय में लोकप्रियता पाना चाहते हैं. जिसके चलते हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की उपेक्षा कर रहे हैं. हालांकि ठूमरी देवी ने इस विचार पर भी जोर दिया कि एक संगठित प्रारूप होना चाहिए, जिसमें घराने के गुरू जिसे अपना शिष्य बनाए उनके बारे में यह सुनिश्चित करें कि शिष्य घराने की परंपरा को कायम रखें. इस बारे में गंभीरता से विचार करने की जरूरत है. वहीं गिरिजा देवी को यह उम्मीद भी है कि उनके शिष्य उनके घराने की परंपरा को आगे बढ़ाएंगे.
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