इस विवादित बयान के मद्देनज़र जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता यासिन मलिक ने बीबीसी हिंदीके कार्यक्रम दिन भर में कहा, "भारतीय जनता पार्टी राम मंदिर, समान नागरिक संहिता, और कश्मीर को एकीकृत करना- इन तीनों मुद्दों को पूरा करना चाहेगी तो पूरे बर्रे सगीर (दक्षिण एशिया) में बहुत बड़ी आग लग सकती है, वो फिर कोई बुझा नहीं पाएगा.''
उन्होंने कहा, ''इसलिए यह फ़ैसला करना है नई सरकार को कि वो शांतिपूर्ण तरीके से मसले का हल चाहती है या पूरे बर्रे सगीर में आग लगाना चाहती है."
हालांकि उन्होंने कहा कि उन्हें अनुच्छेद 370 में कोई खास दिलचस्पी नहीं है. हम तो आज़ादी की मांग कर रहे हैं.
श्रीनगर से भाजपा के नेता फ़याज अहमद भट्ट ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "अनुच्छेद 370 का फ़ायदा यहाँ के चुनिंदा लोगों को है. यहाँ की आम जनता को नहीं.''
अलगाववाद को मज़बूती
इससे पहले जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने विवादित बयान के संदर्भ में केंद्र सरकार से अपना रुख़ स्पष्ट करने को कहा.
उमर ने कहा, "आप तब तक अनुच्छेद 370 नहीं हटा सकते जब तक आप संविधान सभा को नए सिरे से कायम नहीं करते. संविधान सभा ने जो जम्मू कश्मीर के साथ भारत का इलहाफ हुआ उसको मंजूरी दी. अगर आप नए सिरे से खोलना चाहते हैं तो बिस्मिल्लाह कर के लाइए न संविधान सभा. हम भी आपसे बात करेंगे."
जम्मू-कश्मीर से बीबीसी संवाददाता रियाज मसरूर ने बताया कि पक्ष और विपक्ष दोनों इस पर एक राय हैं कि अगर अनुच्छेद 370 हटाया गया तो अलगाववाद को मज़बूती मिलेगी.
उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में यह कहा जा रहा है कि अगर अनुच्छेद 370 हटाया गया तो जम्मू-कश्मीर भारत से अलग हो जाएगा.
जितेंद्र सिंह का बयान
इस बहस की शुरुआत प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री डॉक्टर जितेंद्र सिंह के उस बयान के साथ हुई, जिसमें उन्होंने कहा है कि केंद्र की नई सरकार अनुच्छेद 370 की ख़ूबियों और ख़ामियों पर खुली बहस को तैयार है.
उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार राज्य में हर वर्ग के साथ बातचीत के माध्यम से 'असहमति' को 'सहमति' में बदलने की कोशिश करेगी.
बाद में उन्होंने सफाई देते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री ने इस संबंध में कुछ नहीं कहा है. उन्होंने बयान पर उठे विवाद को भी बेबुनियाद बताया.
अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा हासिल है.
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