अमरीका की नेशनल डोमेस्टिक वर्कर्स अलाएंस नामक संस्था की साथ करीब एक दर्जन संस्थाओं ने इस प्रदर्शन में भाग लिया.
ये प्रदर्शनकारी घरेलू कामगारों के अधिकारों की सुरक्षा की मांग कर रहे थे. उनका कहना था कि राजनयिकों को दी जाने वाली विशेष छूट समाप्त की जानी चाहिए और भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े को घरेलू कामकाज करने वाली भारतीय महिला संगीता रिचर्ड का कथित शोषण करने के अभियोग में भारत सरकार की ओर से भी सज़ा दी जानी चाहिए.
इन प्रदर्शनकारियों ने बैनर और पोस्टर भी थामे हुए थे जिनपर घरेलू कामकाज करने वाली भारतीय महिला संगीता रिचर्ड और घरेलू काम करने वालों के अधिकारों के हक में नारे लिखे थे.
प्रदर्शनकारियों ने यह भी मांग की है कि भारत में घरेलू कामगारों के अधिकारों को सार्वजनिक तौर पर मान्यता दी जानी चाहिए और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के कनवेंशन-189 को भी सरकारी तौर पर मंज़ूरी दी जानी चाहिए.
'इतना हंगामा क्यो'
बंग्लादेशी मूल की एक प्रदर्शनकारी नहर आलम न्यूयॉर्क में एक स्वयं सेवी संस्था चलाती हैं. वह खुश हैं कि भारतीय राजनयिक को घरेलू कामगार का कथित शोषण करने के लिए गिरफ़्तार कर लिया गया.
नहर आलम कहती हैं, "हम बहुत खुश हैं और आज अमरीकी विदेश मंत्रालय का शुक्रिया अदा करने आए हैं. भारतीय राजनयिक को 2 घंटे के लिए गिरफ़्तार किया गया तो सारे विश्व में हंगामा मच गया, लेकिन घरेलू कामगार वर्षों तक शोषण झेलते रहते हैं, उनका कोई पूछने वाला नहीं होता."
प्रदर्शनकारियों में अधिकतर महिलाएं थीं और इनमें से कुछ ऐसी महिलाएं भी थीं जो अन्य देशों से अमरीका आने के बाद घरेलू कामकाज कर चुकी थीं. प्रदर्शन के दौरान इनमें से कुछ ने आपबीती भी सुनाई कि किस प्रकार घरेलू काम करने के दौरान उनका शोषण किया गया और कैसे वे उस जंजाल से बाहर निकलीं.
नहर आलम 1990 के दशक में बंग्लादेश से अमरीका आईं और कई वर्षों तक घरेलू कामगार के तौर पर काम किया. वह बताती हैं कि घरेलू कामगारों का शोषण बहुत लंबे समय से चल रहा है.
वह कहती हैं, "अमरीका में घरेलू कामगारों का शोषण 20 वर्षों से भी अधिक समय से चल रहा है. हमारी संस्था साल 1998 में शुरू हुई और हमने बहुत से घरेलू कामगारों को शोषण से बचाया. इनमें से कई को विभिन्न देशों के राजनयिकों के चंगुल से छुड़वाया."
अदालत से ज़मानत पर रिहा भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े पर आरोप है कि उन्होंने अपनी घरेलू नौकरानी संगीता रिचर्ड के लिए वीज़ा आवेदन पत्र में कथित तौर पर फ़र्ज़ी दस्तावेज़ शामिल किए औऱ ग़लतबयानी भी की.
उस समय वह उप वाणिज्य दूत के तौर पर काम कर रही थीं.
अदालती दस्तावेज़ के अनुसार साल 2012 में घरेलू कामगार के लिए वीज़ा हासिल करने के लिए जो दस्तावेज़ पेश किए गए, उनमें कहा गया कि उसे अमरीकी क़ानून के अनुसार 4500 डॉलर वेतन दिया जाएगा लेकिन असलियत में उसे 600 डॉलर से भी कम वेतन दिया जाता था.
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