स्वतंत्रता दिवस पर लाल क़िले की प्राचीर से उनका दूसरा भाषण उनके पहले भाषण से कुछ ज़्यादा अलग नहीं था।
69वें स्वतंत्रता दिवस पर शनिवार को उनके भाषण में वही जोश, शब्दों का वही प्रभावी प्रयोग और ग़रीबों पर वही अधिक ध्यान सुनने को मिला जो पिछले साल के भाषण में मिला था।
संसद के मानसून सत्र के दौरान विपक्ष के ज़बरदस्त विरोध के कारण मोदी सरकार इन दिनों हताश नज़र आती है। लेकिन आज सुबह जब प्रधानमंत्री लाल क़िले की प्राचीर से बोलने आए तो उनकी आवाज़ और बॉडी लैंग्वेज पर इसका असर नहीं नज़र आया।
'टीम इंडिया'
कुछ मायने में आज का भाषण पिछले साल के भाषण से काफी अलग था।
इस बार का भाषण एक घंटा, 26 मिनट तक चला जो पिछले साल के मुकाबले 20 मिनट अधिक लम्बा था। पिछली बार देश की उन्नति में पूर्व सरकारों के योगदान का ज़िक्र किया था। इस बार ये उदारता नहीं सुनाई दी।
आज का भाषण एक मायने में काफी दिलचस्प था -- इस बार मोदी ने दो वाक्यांश का अपने लम्बे भाषण में बार-बार इस्तेमाल किया- '125 करोड़' देशवासी और 'टीम इंडिया'।
टीम इंडिया से उनका मतलब उनकी कैबिनेट नहीं था। उन्होंने बार-बार जताया कि इस टीम इंडिया में देश के पूरे 125 करोड़ लोग शामिल हैं। ज़ाहिर है वो पूरे देश को सम्बोधित कर रहे थे तो 125 करोड़ लोगों से सीधे संपर्क करना कोई नई बात नहीं।
चुनाव जीतने के तुरंत बाद अहमदाबाद मे एक रैली में भी उन्होंने 125 करोड़ लोगों को साथ ले चलने की बात कही थी। लेकिन आज उन्होंने अपनी कल्पनात्मक टीम इंडिया में आम लोगों को शामिल करके उनका समर्थन बरक़रार रखने की भरपूर कोशिश की है।
56 इंच का सीना
नरेंद्र मोदी को आम नागरिकों से सीधा संपर्क करना ख़ूब आता है। पिछले साल 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस पर उन्होंने ऐसा प्रयास पूरे देश के छात्रों और शिक्षकों को रेडियो और टीवी के माध्यम से एक साथ संबोधित करके किया था।
वो लगभग हर महीने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' के ज़रिए भी आम लोगों से सीधे जुड़ते हैं। आज एक गाँव में रहने वाला एक साधारण नागरिक अगर प्रधानमंत्री की ज़ुबान से ये सुने कि वो भी टीम इंडिया का हिस्सा है तो उसका सीना फूल कर 56 इंच का ज़रूर हो जाएगा।
हाँ, ये बात और है कि उनकी ये कोशिश रंग लाएगी या नहीं, ये कहना मुश्किल है। लेकिन 'टीम इंडिया' और देश के '125 करोड़' के शब्दों का कई बार इस्तेमाल इस बात की तरफ़ इशारा है कि इनका इस्तेमाल महज़ एक संयोग नहीं है।
शायद इसकी ज़रूरत इसलिए पड़ी क्योंकि एक साल तीन महीने सत्ता में रहने के बाद उनकी सरकार की लोकप्रियता कम हुई है।
उपलब्धियां
उनके बारे में कहा जाने लगा है कि वो बोलते तो हैं लेकिन अहम मुद्दों पर ख़ामोश रहते हैं। शायद उन्हें एहसास है कि विपक्ष, ख़ासतौर से कांग्रेस पार्टी की आवाज़ लौट रही है।
हो सकता है कि व्यापमं घोटाला और ललितगेट ने उनके आत्म विश्वास को थोड़ा हिला दिया हो। ये भी संभव है कि आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए ये जनसंपर्क की कोशिश की गई।
पिछले साल का भाषण नई योजनाओं के एलान और नए वादों पर आधारित था। इस बार का संबोधन अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाने में निकल गया। लेकिन उनके कई दावों को चुनौती दी जा सकती है।
उन्होंने स्कूलों में लड़के और लड़कियों के लिए शौचालय बनवाने के वादे को पूरा करने पर अपनी सरकार को बधाई दी। लेकिन ये नहीं स्वीकार किया कि इनमे से 70 प्रतिशत स्कूलों के शौचालयों में पानी नहीं है।
इसी तरह अपने वित्तीय समावेशन प्रोग्राम को लागू करने के वादे के बारे में उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने 17 करोड़ नए बैंक खाते खुलवाए हैं। ये नहीं बताया कि लगभग 47 प्रतिशत खातों में पैसे नहीं हैं।
नए वादे
प्रधानमंत्री ने इस बार भी कुछ नए वादे किए हैं। पहले कहा ऊपर की सतह पर भ्रष्टाचार ख़त्म हो गया है। फिर ये स्वीकार किया कि भ्रष्टाचार दीमक जैसी एक बीमारी है जिसके इलाज के लिए समय चाहिए।
उन्होंने वादा किया कि उनकी सरकार भारत को भ्रष्टाचार-मुक्त बनाने के लिए बाध्य है। उन्होंने रिटायर्ड सैनिकों को विश्वास दिलाया कि वो उनकी वन-पेंशन-वन-रैंक की मांग को पूरी करेंगे।
उन्होंने ये भी वादा किया कि जिन 18,000 से अधिक गाँवों में बिजली नहीं आई है वहां 1,000 दिनों में बिजली पहुंचाई जाएगी।
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