संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि मूसल, जहाँ से क़रीब पांच लाख लोग पलायन कर चुके हैं, वहां की मानवीय स्थिति बहुत ही गंभीर है और पल-पल बिगड़ती जा रही है.
इस बीच इराक़ के प्रधानमंत्री नूरी मलीकी ने आईएसआईएस के चरमपंथियों के खिलाफ लड़ने की प्रतिबद्धता जताई है. उन्होंने कहा कि वो भागने वाले और प्रतिरोध न करने वाले सैनिकों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे.
लगातार बिगड़ती स्थिति
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने एक बयान में मूसल में हाल में हुई घटनाओं की कड़े शब्दों में निंदा की है. वहीं संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने गंभीर सुरक्षा स्थिति का सामना कर रहे इराक़ के साथ एजुटता दिखाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से एक होने की अपील की है.
इराक़ में बच्चों के लिए काम करने वाली सुक्त राष्ट्र की संस्था यूनीसेफ़ के प्रतिनिधि ने मूसल की स्थिति को चिंताजनक बताया है.
उन्होंन कहा,''स्थिती लगातार ख़राब होती जा रही है. हमें बच्चों के पास पानी, टैंट,खाद्य पदार्थ और सुरक्षा के साथ पहुंचना होगा, वो इंतजार नहीं कर सकते हैं. ''
तिकरित पर हमला
इराक़ के दूसरे बड़े शहर मोसूल पर नियंत्रण करने के बाद इस्लामी चरमपंथियों ने तिकरित शहर पर हमला किया है. अधिकारियों के मुताबिक़ चरमपंथियों ने शहर के कुछ हिस्सों पर नियंत्रण कर लिया है.
तिकरित पूर्व शासक सद्दाम हुसैन गृह नगर है और ये राजधानी बग़दाद से उत्तर में 150 किलोमीटर दूर है.
जिन चरमपंथियों ने मोसूल पर हमला किया, उनका संबंध इस्लामिक स्टेट ऑफ़ इराक़ और लेवेंट (आईएसआईएस) समूह से है, जो अल क़ायदा से जुड़ा है. पूर्वी सीरिया और पश्चिमी व केंद्रीय इराक़ के बहुत से इलाक़ों पर इस संगठन का नियंत्रण है. हालांकि अभी इसकी पुष्टि नहीं हुई है कि तिकरित पर हमला किसने किया.
लाखों का पलायन
प्रधानमंत्री नूरी मलिकी ने संसद से आपातकाल की घोषणा करने को कहा है.
क्या है आईएसआईएस
-आईएसआईएस यानी कि इस्लामिक स्टेट इन इराक़ एंड दी लीवेंट एक जिहादी संगठन है, जो कि इराक़ और सीरिया में सक्रिय है.
-अबु बकर अल बग़दादी इस संगठन के प्रमुख के तौर पर काम करते हैं.
-आईएसआईएस की स्थापना अप्रैल 2013 में की गई थी. यह इराक़ में अल-क़ायदा का सहयोगी संगठन है.
-यह सीरिया में सरकारी सुरक्षा बलों से लड़ रहे संगठनों में प्रमुख संगठन है.
-इसका वास्तविक आकार क्या है, यह तो पता नहीं है. लेकिन माना जाता है कि इसके लड़ाकों की संख्या तीन से पांच हज़ार है. इसमें विदेशी जिहादी भी शामिल हैं.
इराक़ के दूसरे सबसे बड़े शहर मूसल के निवासियों ने बताया, "जिहादियों का झंडा इमारतों पर लहरा रहा था और चरमपंथियों ने लाउडस्पीकर से घोषणा कर रहे थे वे शहर को 'मुक्त कराने के लिए आए' हैं."
सरकारी कर्मचारी उम कारम ने कहा, "शहर के अंदर स्थिति अराजक है, और हमारी मदद करने वाला कोई नहीं है हम डरे हुए हैं."
कई पुलिस स्टेशनों में आग लगा दी गई हैं और हिरासत में लिए सैकड़ों लोगों को छोड़ दिया गया है.
मोसूल से पलायन करने वाले एक निवासी महमूद नूरी ने एएफ़पी समाचार एजेंसी को कहा, "सेना ने अपने हथियार फेंक दिए हैं, अपने कपड़े बदल लिए हैं, अपने गाड़ियों को छोड़ दिया है और शहर छोड़ कर चले गए हैं."
बीबीसी के जिम म्यूर का कहना है कि इराक़ी सुरक्षा बल आईएसआईएस चरमपंथियों के ख़िलाफ़ लड़ने में लगता है कि पूरी तरह असमर्थ हैं.
रॉयटर्स समाचार एजेंसी के अनुसार आईएसआईएस के कुछ चरमपंथियों ने नज़दीक के बैजी शहर में घुसकर अदालतों और पुलिस स्टेशन को जला दिया और कई क़ैदियों को रिहा कर दिया.
बैजी के एक निवासी ज़ासीम अल-कैसी ने रॉयटर्स को कहा कि चरमपंथियों ने शहर में कबायली नेताओं को फ़ोन करके कहा, "हम बैजी आ रहे है या तो मरेंगे या बैजी पर नियंत्रण करेंगे. इसलिए हम आपको सलाह देते हैं कि पुलिस और सेना में शामिल आप अपने बेटों को कहिए कि वे हथियार डाल दे."
सहयोग की अपील
अमरीका के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता जेन पास्की ने कहा कि इराक़ में स्थिति "बहुत गंभीर" है और इस आक्रमण का मुक़ाबला करने के लिए अमरीका एक मज़बूत और समन्वित प्रतिक्रिया का समर्थन करता है.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून के प्रवक्ता ने इराक़ के दूसरे बड़े शहर मोसूल में बिगड़ते सुरक्षा हालात पर चिंता व्यक्त की है.
सूत्रों ने बीबीसी को बताया कि दसियों हज़ार लोग पड़ोसी कुर्दिस्तान के तीन शहर की ओर जा रहे हैं, जहाँ अधिकारियों ने उनके लिए अस्थायी शिविरों का इंतज़ाम किया है.
कुर्दिस्तान के प्रधानमंत्री नचोरविन बारज़ानी ने एक बयान जारी कर संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संस्था से सहयोग की अपील की है.
पांच दिन की लड़ाई के बाद उन्होंने क़रीब 18 लाख की आबादी वाले मूसल शहर के महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों पर क़ब्ज़ा कर लिया है.
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ मई में हुई सांप्रदायिक हिंसा में क़रीब आठ सौ लोगों की मौत हो गई इनमें 603 नागरिक शामिल हैं. पिछले साल इस तरह की हिंसा में 8860 लोगों की मौत हुई थी.
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