कानपुर। देश को परमाणु शक्ति से पूरी तरह सम्पन्न देश बनाने में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जो किया उसे देश कभी भुला नहीं सकता। तमाम अंतर्राष्ट्रीय दबावों के साथ साथ अमेरिकी खुफिया एजेंसी के सैटेलाइट्स द्वारा रात दिन की निगरानी के बावजूद पूर्व पीएम अटल बिहारी ने पोखरण 2 परमाणु परीक्षण को सफल बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। हालांकि इस परमाणु परीक्षण के बाद देश को तमाम अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध भी झेलने पड़े, लेकिन पूर्व पीएम अटल बिहारी के नेतृत्व में भारत उन प्रतिबंधों से भी पार पाकर प्रगति के पथ आगे बढ़ता रहा। बता दें कि पोखरण 2 के दौरान भारत ने एक के बाद एक कुल 5 परीक्षण किए थे। इस परीक्षण को सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने में भारतीय परमाणु वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम और उनकी टीम ने कमाल का काम किया था। डा. कलाम बाद में देश के राष्ट्रपति बने।
जब CIA सो गया, तब भारत जागा
रातों दिन अपने खुफिया सैटेलाइट्स और एजेंट्स की मदद से पूरी दुनिया का सर्विलांस करने वाली अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA जिस काम पर हर साल करोंड़ो डॉलर खर्च करती है, उसे चकमा देकर भारतीय परमाणु वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम और उनकी टीम ने 11 मई 1998 को राजस्थान की पोखरण जगह पर परमाणु परीक्षण किए। भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश बनाने की दिशा में यह दूसरा बड़ा कदम था। ऑपरेशन शक्ति नाम के इस न्यूक्लियर टेस्ट के सफल होने के बाद राजनीतिज्ञ एमजे अकबर ने अपने लेख में कहा था 'आधी रात के समय जब CIA सो गया, तब भारत जागा। भारत का पहला कदम पोखरण 1 टेस्ट था, जिसे स्माइलिंग बुद्धा के नाम से भी दुनिया जानती है।
अमरीकी जासूसी सैटेलाइट ने देख ली थी पोखरण 2 की तैयारी
दरअसल साल 1995 में एक अमरीकी जासूसी सैटेलाइट ने राजस्थान के पोखरण में होने जा रहे परमाणु परीक्षण की तैयारी भांप ली थी। यह पता चलते हही तुरंत वॉशिंगटन ने भारत के प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव से संपर्क किया। अमरीका ने इस परीक्षण को रुकवाने के लिए पीएम पर काफी दबाव बनाया और वो उसमें सफल रहा। नतीजा यह हुआ कि वैज्ञानिकों को यह परीक्षण टालने का आदेश दे दिया गया। साथ ही हमें यह भी पता चला कि दबाव में अपना फैसला बदलने वाले नरसिम्हा राव ने इस फ्रस्टेशन को उतारने के लिए हवाला केस में फंसे हुए सभी आरोपियों पर अपना गुस्सा निकालना शुरु कर दिया। खैर उस वक्त तो अमरीकी दबाव में परमाणु परीक्षण टल गया, लेकिन आगे बहुत कुछ बदलने वाला था।
1998 में जासूसी सैटेलाइट के हटने के बाद परीक्षण के लिए शुरु हुआ खुफिया मिशन
साल 1998 की गर्मियों में हमारे देश के परमाणु वैज्ञानिकों ने एक बार फिर बहुत ही खुफिया तरीके से पोखरण 2 के लिए काम करना शुरु किया। उस वक्त यह ध्यान रखा गया कि पोखरण की जमीन में दफन परमाणु डिवायसेस और केबल्स किसी भी तरह अमरीकी सैटेलाइट की नजर में न आएं। इसलिए परीक्षण के लिए उस वक्त काम तेज हुआ, जब अमरीकी सैटेलाइट उस इलाके से मूव कर गई। 12 जून को राज चिनगप्पा ने अपनी स्टोरी में खुले शब्दों में बताया था कि इस परमाणु परीक्षण से जुड़े सभी वैज्ञानिक और मुख्य लोग जासूसी फिल्मों के हीरो की तरह मैदान में उतरे थे।
पहचान छिपाने के लिए सभी परमाणु वैज्ञानिक आर्मी ऑफीसर्स के भेष में वहां मौजूद थे
पोखरण 2 परीक्षण से कुछ वक्त पहले सभी लोग एक छोटे से आर्मी बंकर में भयंकर गर्मी के बीच पसीना बहाते हुए बैठे थे। उस बंकर में कई कंप्यूटर, कंट्रोल पैनल, रेड, ग्रीन और ऑरेंज रंगों के स्विेचस मौजूद थे। 11 मई के दिन सुबह उन्हीं पैनल्स में एक स्विच दबाते ही कंप्यूटर पर काउंट डाउन टाइमर दिखने लगा था। उस वक्त उसमें 9 बजे का समय दिख रहा था। इन्हीं पैनल से निकलकर एक इलेक्ट्रिकल करेंट ट्रिगर डिवायसेस पर पहुंचना था और परमाणु विस्फोटों की एक सीरीज ने दुनिया को हिलाने वाली थी। करीब एक घंटे पहले उस रेंज का मौसम विभाग का एक ऑफीसर जिसका नाम अदि मर्जबान था, बंकर में दाखिल हुआ और वो बैठे दो जर्नल्स को सैल्यूट किए बिना ही पास में रखी प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठ गया। उसने बताया कि अचानक से इस वक्त तेज हवा बहने लगी है, इसलिए जब तक हवा न रुके तब तक के लिए हमें परीक्षण रोकना होगा।
दोपहर के 12 बज रहे थे और वहां का तापमान 43 डिग्री पहुंच रहा था ऐसे में सभी लोग पसीने से तर बतर बैठे थे। तभी एटॉमिक एनर्जी कमीशन के चेयरमैन आर चिदंबरम ने चेहरे पर आ रहे पसीने से निजात पाने के लिए अपनी गोरख हैट उतारकर रख दी। दरअसल इस वक्त वो आर्मी के मेजर जनरल नटराज के भेष में थे, ताकि कोई उन्हें आसानी से पहचान न सके। उनके बाईं ओर बैठे थे एपीजे अब्दुल कलाम जो उस वक्त रक्षामंत्री के साइंटिफिक एडवाइजर और DRDO के चीफ थे, लेकिन पोखरण में वो मेजर जनरल पृथ्वीराज के नाम से जाने और पहचाने जा रहे थे। यह बहुत चौंकाने वाली बात थी कि ऑपरेशन शक्ति नाम के इस पोखरण 2 टेस्ट के लिए सभी परमाणु वैज्ञानिकों को आर्मी के टॉप सीनियर ऑफीसर्स के नाम और पहचान के साथ वहां भेजा गया था। वास्तव में इस परमाणु टेस्ट के मुख्य कर्ताधर्ता एपीजे अब्दुल कलाम ने असली रूप में नहीं बल्कि मेजर जनरल पृथ्वीराज बनकर पोखरण टेस्ट साइट पर कई बार विजिट किया था, ताकि वो खुफिया नजरों से बचकर अपना काम और तैयारियां आसानी से कर सकें और किसी को कोई शक भी न हो।
भारत के दूसरे परमाणु परीक्षण पोखरण 2 को सफल बनाने के लिए किया गया यह खुफिया प्लान वाकई शानदार था, जिसने भारत को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बनाने में अहम भूमिका निभाई।
जनक राज राय की पुस्तक 'पोखरण 2 - द एक्प्लोजन दैट रॉक्ड द वर्ल्ड' से साभार..
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