-यह योग आठ अक्टूबर को सर्व पितृ अमावस्या पर दोपहर 1:33 बजे से सायं 5:56 बजे तक रहेगा
-24 सितम्बर से 8 अक्टूबर तक रहेंगे पितृ पक्ष, विधि विधान से श्राद्ध करने पर मिलेगा लाभ
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BAREILLY : शास्त्रों में मनुष्य के तीन ऋण कहे गये हैं। देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण। इसमें से पितृ ऋण को श्राद्ध करके उतारना आवश्यक है। ब्रह्मा पुराण के अनुसार आश्रि्वन मास के कृष्ण पक्ष में यमराज यमपुरी से पितृों को मुक्त कर देते हैं और वे अपनी संतानों तथा वंशजों से पिण्ड दान लेने के लिए पृथ्वी पर आते हैं। सूर्य के कन्या राशि में आने के कारण ही आश्रि्वन मास के कृष्ण पक्ष का नाम 'कनागत' पड़ गया। क्योंकि सूर्य के कन्या राशि में आने पर पितृ पृथ्वी पर आकर अमावस्या पर घर पर ठहरते हैं। भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से प्रारम्भ करके आश्रि्वनी कृष्ण अमावस्या तक 16 दिन पितृों का तर्पण और विशेष तिथि को श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। ऐसा करने से पितृ व्रत पूण्र्1ा होता है।
कैसे करें श्राद्ध
श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध वाले दिन सुबह घर स्वच्छ कर पुरुषों को सफेद वस्त्र एवं स्त्रियों को पीले अथवा लाल वस्त्र धारण करना चाहिए। श्राद्ध का सही समय कुतुप काल मध्याह्न होता है। भोज्य सामग्री बनाने के बाद सबसे पहले हाथ में कुश, काले तिल और जल लेकर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके संकल्प लेना चाहिए। जिसमें अपने पितृों को श्राद्ध ग्रहण करने के लिए इनका आह्वान करने और श्राद्ध से संतुष्ट होकर कल्याण की कामना करनी चाहिए। इसके बाद जल, तिल और कुश को किसी पात्र में छोड़ दें एवं श्राद्ध के निमित्त तैयार भोजन सामग्री में से पंचबली निकालें। देवता के लिए किसी उपले अथवा कोयले को प्रज्ज्वलित कर उसमें घी डालकर थोड़ी-थोड़ी भोज्य सामग्री अर्पित करनी चाहिए। शेष जिनके निमित्त है उन्हें अर्पित कर देनी चाहिए। श्राद्ध के लिए पंचबली विधान के बाद ब्राह्माणों को भोजन करवाना चाहिए। ब्राह्माणों को अपना पितृ मानते हुए ताम्बूल और दक्षिणा देकर उनकी चार परिक्रमाएं करनी चाहिए। साथ ही श्रद्धा के अनुसार उन्हें दान करना चाहिए। श्राद्ध पक्ष में किसी विशेष परिस्थिति में शास्त्रों के अनुसार घास से श्राद्ध हो सकता है, अर्थात घास काटकर गाय को खिला दें तो भी पितृों को तृप्ति मिल जाती है।
इन मंत्रों का करें जाप
ऊँ सर्व पितृ प्रं प्रसन्नों भव ऊँ।
ऊँ ह्मों क्लीं ऐं सर्व पितृभ्यो स्वात्म सिद्धये ऊँ फट।
24 सितम्बर से पितृ पक्ष
पितृ पक्ष 24 सितंबर से आरम्भ होकर आठ अक्टूबर तक रहेगा। बालाजी ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्मा ने बताया कि इस वर्ष पितृ पक्ष में गज छाया का विशेष योग का होना अति उत्तम है। यह योग आठ अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या पर दोपहर 1:33 बजे से सायं 5:56 बजे तक रहेगा। इस योग में श्राद्ध करने एवं दान करने वालों को अनंत फल प्राप्त होगा। पितृ को मोक्ष प्राप्त होगा और परिवार में किसी प्रकार का कष्ट नहीं आएगा।
कैसे करें तर्पण
श्राद्ध में भोजन के उपरांत पितृेश्वरों को पानी पिलाना जरूरी होता है। पितेृश्वरों को पानी पिलाने की प्रक्रिया को 'तर्पण' कहते हैं। तर्पण की महिमा गया, पुष्कर, प्रयाग, हरिद्वार आदि तीर्थो में विशेष है। घर में रहकर तर्पण करना है तो पीतल की परात, थाली या पात्र में शुद्ध जल भर दें, उसमें थोड़े काले तिल, थोड़ा दूध डालकर अपने सामने रखें तथा उसके आगे दूसरा खाली पात्र रखें। तर्पण करते समय दोनों हाथ के अंगूठे और तर्जनी के मध्य कुश को लेकर दोनों हाथों को परस्पर मिलाकर उसमें जल लें और पितृ का नाम लेकर तृप्यन्ताम कहते हुए जल को दूसरे खाली पात्र में छोड़ दें इस तरह कम से कम एक-एक व्यक्ति के लिए तीन तर्पण अवश्य करें।
किस तिथि पर किसका श्राद्ध करें
आश्रि्वनी कृष्ण प्रतिपदा: यह तिथि नाना-नानी के श्राद्ध के लिए उत्तम मानी गई है
आश्रि्वनी कृष्ण पंचमी : इस तिथि में परिवार के उन पितृों का श्राद्ध करना चाहिए जिनकी अविवाहित अवस्था में ही मृत्यु हुई हो
आश्रि्वनी कृष्ण नवमी: यह तिथि माता एवं परिवार की अन्य महिलाओं के श्राद्ध के लिए उत्तम मानी गई है
एकादशी व द्वादशी: आश्रि्वनी कृष्ण एकादशी व द्वादशी को उन पितृों का श्राद्ध किया जाता है जिन्होंने सन्यास ले लिया हो
आश्रि्वनी कृष्ण चतुर्दशी: इस तिथि को उन पितृों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो
आश्रि्वनी कृष्ण अमावस्या: इस तिथि को सर्व पितृ अमावस्या भी कहते हैं। इस दिन सभी पितृों को श्राद्ध किया जाना चाहिए।