सबसे पहले इंद्र के पुत्र जयंत ने कौए का रूप धरा

श्राद्ध पक्ष में कौओं का बड़ा ही महत्व है, श्राद्ध पक्ष में कौआ यदि आपके द्वारा दिया गया भोजन ग्रहण कर ले, तो ऐसा माना जाता है कि पितरों की कृपा आपके ऊपर है। पितृ प्रसन्न हैं, इसके विपरीत यदि कौवे भोजन करने नही आये तो यह माना जाता है, कि पितर विमुख हैं या नाराज हैं। काक अर्थात् कौऐ को भारतीय तन्त्रों में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, तन्त्र में काकतंत्र के नाम से एक विषय आता है। काक शब्द शुद्ध चैतन्य को ईंगित करता है। भारतीय मान्यता के अनुसार व्यक्ति मरकर सबसे पहले कौऐ के रूप में जन्म लेता है और कौऐ को खाना खिलाने से वह भोजन पितरों को मिलता है। इसका कारण यह है कि पुराणों में कौऐ को देवपुत्र माना गया है। इन्द्र के पुत्र जयंत ने ही सबसे पहले कौए का रूप धारण किया था।

श्राद्ध के में कौओं की कहानी के पीछे है ये कथा

यह कथा त्रेतायुग की है जब भगवान् श्रीराम ने अवतार लिया और जयंत ने कौए का रूप धारण कर माता सीता के पैर में चोंच मारा था। तब भगवान श्रीराम नें तिनके का बाण चलाकर जयंत की आँख फोड़ दी थी। जब उसने अपने किये की माफी माँगी तब राम ने उसे यह वरदान दिया कि तुम्हे अर्पित किया भोजन पितरों को मिलेगा। तभी से श्राद्ध में कौओं को भोजन कराने की परम्परा चली आ रही है। यही कारण है कि श्राद्ध पक्ष में कौओं को ही पहले भोजन कराया जाता है।

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श्राद्ध में खीर-पूड़ी आदि पकवान बना कर कौओं को भोग लगाते हैं

श्राद्ध पक्ष पितरों को प्रसन्न करने का एक उत्सव है। यह वह अवसर होता है जब हम खीर-पूड़ी आदि पकवान बनाकर उसका भोग अपने पितरों को अर्पित करते हैं जिससे तृप्त होकर पितृ हमें आशीर्वाद देते हैं। श्राद्ध पक्ष से जुड़ी कई परम्परायें भी हमारे समाज में प्रचलित हैं। ऐसी ही एक परम्परा है जिसमें कौओं को आमंत्रित कर उन्हे श्राद्ध का भोजन खिलाया जाता है। लेकिन वर्तमान में प्रदूषण व दूषित वातावरण के चलते कौओं की संख्या में कमी आई है, कई शहरों से कौओं का पलायन हो चुका है, अब एक्का दुक्का शहरों में ही कौऐ दिखाई देते हैं।

-ज्योतिषाचार्य पंडित गणेश प्रसाद मिश्र

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