इन नियमों के हिसाब से ही पितृपक्ष का पूजन अर्चन और पुण्य कमाना चाहिए। मार्कंडेय पुराण में और अन्य धर्म ग्रंथों में पित्र पक्ष के पूजन में श्राद्ध में होने वाली गलतियों और उसके प्रभाव बताए गए हैं। यदि तर्पण के दौरान सावधानी रखी जाए तो पूजन में पूर्ण लाभ हासिल हो सकता है, अन्यता पुरखों का श्राद्ध अधूरा ही रह जाएगा।
दक्षिण दिशा की ओर ढाल वाली जगह चुने
याद करते समय हमेशा ऐसे स्थान का चुनाव करना चाहिए, जिसकी ढाल दक्षिण दिशा की ओर हो। इससे तर्पण के दौरान दिया गया जल दक्षिण की ओर जाता है। मान्यता है कि पितरों का श्राद्ध करते समय आसन भी खास महत्व रखता है। तर्पण के समय हमेशा उसका इस्तेमाल करें व पित्रों लिए लकड़ी का आसन बनाना चाहिए। तिल का प्रयोग बिल्कुल नहीं होना चाहिए।
बिना कुश पहने श्राद्ध रह जाता है अधूरा
कुश अवश्य पहनें। उसकी अंगूठी का आज तक कोई विकल्प नहीं है। लोग अक्सर इसके स्थान पर धातु की अंगूठी से काम चला लेते हैं। यदि कुश की अंगूठी नहीं है तो तर्पण अधूरा ही माना जाता है। श्राद्ध के समय कभी अकेले बैठकर आहुति ना दें। इससे पित्रों को आने में कष्ट होता है। जब भी श्राद्ध करें तो कम से कम 2 लोगों को अवश्य शामिल करें।
-पंडित दीपक पांडेय