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PRAYAGRAJ: रमजान के पाक महीने में अल्लाह की इबादत के बदले तोहफा के रूप में मिले ईद जैसे खास त्यौहार पर जब अपनों को साथ मिल जाए, तो ईद की खुशियां भी कई गुना बढ़ जाती हैं. ईद पर सिटी में कई लोग सालों के बाद अपनों के बीच ईद मनाने के लिए पहुंचे. इन लोगों का कहना है कि फैमिली के साथ फेस्टिवल सेलीब्रेट करने से बेहतर कुछ नहीं है.
अपनो के बीच पहुंच जाना ही 'ईदी'
त्यौहार परिवार के साथ ईद मनाने पहुंचे तारिक अहमद अब्बासी ने दैनिक जागरण आई नेक्स्ट से अपने एक्सपीरिएंस शेयर किये. करेली के शोला मार्केट एरिया के रहने वाले तारिक अहमद अब्बासी सउदी अरब के दम्माम में अपनी वाइफ उजमा जया और बेटी मरियम अब्बासी के साथ रहते है. वहीं पर फ्रेड कम्पनी में असिस्टेंट मैनेजर के पोस्ट पर वर्क करते हैं. उन्होंने बताया कि ईद जैसा त्योहार अपनों के साथ ही मनाना सबसे शानदार रहता है. फैमिली के बीच पहुंच जाना ही सबसे बड़ी ईदी है.
अपने शहर जैसी रौनक विदेश में नहीं
दम्माम में रहने वाले तारिक अहमद अब्बासी बताते हैं कि पिछले चार सालों से वह लगातार ईद पर घर आने की कोशिश करते थे, लेकिन जॉब के कारण नहीं आ पाते थे. इस बाद उन्हें छुट्टी मिली कि वह अपनी फैमली के साथ ईद मना सके. वह बताते हैं कि मुस्लिम कंट्री होने के बाद अपने शहर जैसी रौनक विदेशों में ईद के मौके पर नहीं मिलती है. वहां पर लोग ईद की नमाज के बाद अपने-अपने घर चले जाते हैं. उसके बाद जिसे भी सेलिब्रेट करना है, वह अपने घर में ही करता है. लेकिन अपने शहर की बात ही निराली है.
हमेशा याद आता है टर्र का मेला
सिटी में ईद के मौके पर लगने वाले टर्र के मेले को लेकर तारिक बताते हैं कि हमेशा ईद के मौके पर उन्हें इसकी याद आती थी. तारिक ने अपना एमबीए बाबू बनारसी दास इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी से किया है. वह कहते है कि स्कूलिंग और कालेज लाइफ के बाद जब एमबीए करने चले गए. उस समय तक तो ईद पर अपने शहर आने का मौका मिलता था. विदेश में जॉब लगने के बाद कम चांस ही मिलता है. टर्र के मेले को लेकर उनका कहना है कि बचपन में पापा के साथ मेला देखने जाते थे, स्कूल और कालेज के समय में दोस्तों के साथ जाया करते थे. मेले में मिलने वाले चाट और झूलों की याद आज भी आती है. तारिक की तरह ही सिटी में कई लोग ईद के मौके पर फैमली के साथ इंज्वाय करने को सबसे ज्यादा तरजीह देते हैं.