कानपुर। राधिका मदान ने एक खास इंटरव्यू में अपने बॉलीवुड डेब्यू के बारे में खुलकर बताया। जब उनसे पूछा गया कि 'पटाखा' से पहले यह फिल्म साइन की थी। इस फिल्म का ऑफर कैसे मिला था?
'पटाखा' फिल्म का ऑफर जब आया था, तब तक इस फिल्म के दो शेड्यूल पूरे हो चुके थे। मैं इम्तियाज अली की फिल्म 'लैला मजनू' के ऑडिशन के लिए गई थी। इस दौरान वहां मुझ से पूछा गया कि एक्शन आता है? मैंने कहा नहीं। एक्शन से लगाव नहीं है। मैं डांसर हूं इसलिए मेरा शरीर लचीला है। उन्होंने दो-तीन किक्स मारने के लिए कहा। फिर 'लैला मजनू' का ऑडिशन दिया। अगले दिन मुझे 'लैला मजनू' के निर्देशक से मिलना था। मुझ से कहा गया कि वासन सर से भी मिल लेना। मैं उनसे मिलने गई। थोड़ी देर बातचीत के बाद मुझे 'मर्द को दर्द नहीं होता' है में रोल मिल गया। - इस फिल्म में आपने स्टंट्स किए हैं। एक्शन फिल्मों से कितना लगाव रहा है?
फिल्म को लेकर आपकी ट्रेनिंग कैसी रही?
मैंने लाइफ में एक भी एक्शन फिल्म नहीं देखी थी। इस फिल्म के मिलने के बाद मैं हर रात सोने से पहले एक एक्शन फिल्म देखती थी। मुझसे एक्शन फिल्में देखी नहीं जाती थीं, इसलिए 20 मिनट पर ब्रेक ले लेती थी। वासन सर, अभिमन्यु और मेरे मार्शल आर्ट्स के टीचर ने मुझे एक्शन फिल्मों की एक लिस्ट दी थी। 'द थर्टीसिक्स्थ चेंबर ऑफ शावलिन', 'कुंग फू हसल', 'कराटे किड' जैसी फिल्में देखीं। मैंने 9-10 महीने तक जिटकोंडू, मिक्स मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग ली। इस दौरान कई बार चोट भी लगी।
अपने किरदार के बारे में बताएं?
रुढि़मुक्त और स्वच्छंद किरदार है। ऐसे रोल आमतौर पर अभिनेत्रियों को नहीं मिलते हैं। मेरे किरदार का नाम सुप्री है। वह स्टंट करती है। लेकिन टॉमब्वॉय नहीं है।
अभिमन्यु दसानी स्टार किड हैं। उनके साथ काम करना कैसा रहा?
पहली बार वासन सर ने उनसे मिलवाया था। अभिमन्यु टी-शर्ट और टोपी पहने खड़े थे। मैंने पूछा सर हीरो कौन हैं। उन्होंने कहा यही हीरो हैं। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। मुझे लगा यह तो सीधा-साधा है, एक्शन कैसे करेगा? वह ऑटो रिक्शा से आते थे। मैं गाड़ी से आती थी। फिल्म साइन करने के तीन महीने बाद हम अभिमन्यु के घर मीटिंग के लिए गए, तब देखा कि वह आलीशान कोठी में रहते हैं। बाहर गाडि़यां खड़ी थीं। भाग्यश्री जी के साथ उनकी फोटो लगी थी। मैंने पूछा उनके साथ तुम्हारी फोटो क्यों है। उन्होंने कहा कि यह मेरी मां हैं। तब पता चला कि मैं स्टार किड के साथ काम कर रही हूं।
यह फिल्म किन्हीं कारणों से बंद हो गई थी। पहली फिल्म थी, ऐसे में उस वक्त क्या बातें मन में आई थीं?
पहले यह फिल्म कोई और प्रोडक्शन हाउस बना रहा था। फिर फिल्म बंद हो गई। रॉनी सर ने फिल्म में विश्वास दिखाया। फिल्म का कॉन्सेप्ट नया होने के कारण ज्यादा लोगों को इस पर भरोसा नहीं था। जब फिल्म को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में चुना गया, तब थोड़ा सुकून मिला। मामी फिल्म फेस्टिवल में लोगों ने इसके लिए खड़े होकर तालियां बजाई। इन बातों से समझ में आया कि अपनी क्षमता पर शक नहीं करना चाहिए। जो दिल में हो, उसे अच्छे से करना चाहिए।
फिल्म में अभिमन्यु दसानी का किरदार 'कॉन्जेनाइटल इंसेंसिटिव टु पेन' नामक बीमारी से पीडि़त है। इस बीमारी के बारे में पहले से कितना जानती थीं?
मैं इस बीमारी के बारे में बिल्कुल नहीं जानती थी। मैंने गूगल किया तब पता चला।
'पटाखा' फिल्म की असफलता को किस तरह से देखती हैं?
मैंने परिणाम के बारे में उतना सोचा नहीं था। मुझे फिल्म को शूट करने की पूरी प्रक्रिया में बहुत मजा आया था। 'पटाखा' मेरे दिल के बहुत करीब थी। जब दर्शक फिल्म नहीं पसंद करते हैं, तो दिल टूटता है। इस बात की खुशी जरूर है कि इस फिल्म को वेब पर काफी देखा गया है।
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