इस महिला ने दायर की याचिका
बता दें कि कोर्ट एक पारसी महिला गोलरोख गुप्ता द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसे पारसी ट्रस्ट ने समुदाय के बाहर शादी करने के चलते फायर मंदिरों और साइलेंस टावरों में प्रवेश करने से मना किया गया था। गुप्ता ने एक हिंदू लड़के से शादी की थी, लेकिन अपने धर्म के प्रति आस्था को बरकरार रखा। उसके समुदाय का मानना था कि जो लड़की किसी अलग समुदाय के लड़के से शादी करती है तो उसकी पहचान लड़के के समुदाय से बन जाती है, इसलिए उस लड़की को शादी के बाद साइलेंस टावर में प्रवेश करने की इजाजत नहीं है।
जजों ने कहा कठोरता हल नही है
इस महीने की शुरुआत में भारत के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीश संविधान खंडपीठ ने ट्रस्ट के वकील गोपाल सुब्रह्मण्यम से 14 दिसंबर को यह जानकारी देने को कहा था कि समुदाय से बाहर शादी करने वाली महिलाओं को टॉवर ऑफ़ साइलेंस में प्रवेश करने की इजाजत देनी चाहिए, जहां आराम करने के लिए उनके समुदाय की मृतक रखी गई हो।" इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि आपको ट्रस्टी को बताना चाहिए, कठोरता हमेशा धर्म की एक अवधारणा को समझने का सही सिद्धांत नहीं है कम कठोरता अधिक आकर्षित करती है"। इसके बाद वहां मौजूद न्यायमूर्ति ए के सीकरी, ए एम खानविलकर, डी वाई चंद्रचुद और अशोक भूषण सहित सभी संविधान खंडपीठ ने भी कहा, "ऐसा कोई कानून नहीं है जो कहता है कि एक महिला किसी अन्य धर्म के आदमी से शादी करने के बाद अपना धार्मिक पहचान खो देती है।"
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