कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। Paris Olympic 2024: पेरिस ओलंपिक 2024 में भारत के खिलाड़ियों ने मेडल जीतकर देश का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है। इसके साथ ही वे लगातार अपना बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। भारत ने अभी तक 3 ब्रान्ज मेडल जीते हैं। भारतीय सिनेमा भी खिलाड़ियों के जीत के जज्बे को दिखाने में पीछे नहीं है। जब भारत के लोग अपने खिलाड़ियों की मेहनत और उनके हौसले को फिल्मों के माध्यम से देखते हैं,तो बेहद प्राउड फील करते हैं। जीत के जज्बे को बयान करती इन फिल्मों को बनाना इतना आसान नहीं होता ,न तो डायरेक्टर के लिए और न ही एक्टर के लिए। इसके लिए उन्हें फेस करनी पड़ती हैं बहुत सारी प्राब्लम्स और करनी पड़ती है बहुत सारी मेहनत ।

खिलाड़ियों की सफलता से बेहद खुश है बालीवुड
ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों के मेडल जीतने से बालीवुड में भी खुशी की लहर है। बालीवुड सेलिब्रिटीज ने भी अपने सोशल मीडिया अकांउट से खिलाड़ियों को बधाई दी है। अजय देवगन,आलिया भट्ट,करीना कपूर ,राजकुमार राव और अनुपम खेर ने अपने सोशल मीडिया पर खिलाड़ियों की जीत पर खुशी जाहिर की।

जीत पर क्या बोलीं मनु
ओलंपिक में शूटिंग में मेडल जीतने वाली मनु ने कई सारे इंटरव्यू में कहा कि एक दौर था जब उन्हें हार के साथ मायूसी होती थी,पर श्रीमद्भगवद्गीता नें उन्हें फल का विचार त्यागकर बस अपने कर्म पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित किया। वास्तव में हार और जीत के विचार से आगे बढ़कर जब खिलाड़ी प्रयास करते हैं तो अन्य लोगों के लिए प्रेरणा बन जाते हैं।

मिल्खा के संघर्ष की कहानी
ओलंपिक में खिलाड़ियों के सफर को दिखाने वाली फिल्मों में सबसे पहले नाम आता है ,भाग मिल्खा भाग का। इस फिल्म में फरहान अख्तर नें मिल्खा सिंह का रोल प्ले किया था। मिल्खा सिंह 1960 में ओलंपिक में 400 मीटर दौड़ में भले ही पदक नहीं जीत पाए। इसमें वो चौथे स्थान पर रहे मगर फिर भी उन्होंने ऐसा रिकार्ड बनाया जो करीब 40 साल बाद टूटा। फिल्म बाक्स आफिस पर न सिर्फ सफल हुयी,बल्कि फिल्म ने मिल्खा सिंह की मेहनत और उनके जज्बे को भी बेहतर तरीके से दिखाया।

रूढ़िवादी सोच को तोड़ती मैरी कॉम
मैरी कॉम मणिपुर की एक साधारण सी लड़की मैरी कॉम की अभिलाषा को दिखाती फिल्म है। मैरी कॉम ने साल 2012 में लंदन ओलंपिक में महिला मुक्केबाजी में भारत को पहला पदक दिलाया था। इस फिल्म में न सिर्फ मैरी की मेहनत और उनके जुनून को दिखाया गया है बल्कि उनके पति के सपोर्ट को भी दिखाया है। इस फिल्म नें समाज की इस सोच पर भी चोट की जो महिलाओं को केवल घर की चाहरदीवारी के भीतर कैद करना चाहता है।

दिलजीत बने सूरमा
बात जब जीत के सफर पर बनी फिल्मों की हो रही है तो सूरमा को कैसे भूला जा सकता है। फ्लिकर सिंह के नाम से विख्यात हॉकी टीम के पूर्व कप्तान संदीप सिंह 2004 के एथेंस ओलंपिक में हिस्सा लेने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी थे। ट्रेन में लगी गोली ने उनकी जिंदगी की दिशा बदल दी। इसके बाद भी संदीप ने हिम्मत ना हारते हुए टीम में न सिर्फ वापसी की बल्कि टीम को ओलंपिक में जगह भी दिलाई।

अक्षय की गोल्ड
अक्षय कुमार की फिल्म गोल्ड 1948 में लंदन ओलंपिक में भारत की जीत की कहानी है। फिल्म में हाकी खिलाड़ी बने विनीत कुमार सिंह का कहना कि खेल किसी की भी लाइफस्टाइल को सुधार सकता है। खेलों से लाइफ में हार –जीत दोनों को एक्सेप्ट करने का जज्बा मिलता है। उन्होंने ये भी कहा कि अगर इन फ्यूचर मनु भाकर पर फिल्म बनती है तो ये भी यूथ को मोटीवेट करेगी।

कार्तिक बने चंदू चैंपियन
चंदू चैंपियन साल 1972 के पैरालंपिक में तैराकी में गोल्ड मेडल जीतने वाले मुरलीकांत पेटकर के जीवन पर बनी फिल्म है। इस फिल्म में चंदू का रोल प्ले करने वाले कार्तिक ने कहा कि मैं खुद को लकी मानता हूं कि मुझे इस फिल्म में काम करने का मौका मिला। आने वाले दिनों में निशानेबाज अभिनव बिंद्रा पर भी फिल्म बनाने की तैयारी है।

मैदान की चुनौतियां
मैदान फिल्म में अजय देवगन ने 1950 से 1963 तक भारतीय फुटवाल टीम के कोच रहे सैयद अब्दुल रहीम का रोल प्ले किया। अब्दुल की वजह से ही भारतीय टीम ने 1956 में मेलबर्न ओलंपिक में सेमीफाइनल में जगह बनाई थी। भारतीय टीम सेमीफाइनल तक पंहुचने वाली पहली एशियाई टीम थी। इसके साथ ही इस फिल्म को बनाने मे भी कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। पहले कोरोना की वजह से लॉकडाउन ,फिर टाक्टे तूफान इन सब परेशानियों के बीच बनी इस फिल्म ने बेहतर प्रदर्शन किया।